जगदलपुर: हम आपको बस्तर दशहरे की हर रस्मों और रिवाजों से रूबरू कराते आए हैं. 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर हुई अद्भुत रस्मों में से एक रस्म मुरिया दरबार भी है, जिसे गुरुवार दोपहर को निभाया गया इस रस्म में सैकड़ों की संख्या में अदिवासी शामिल होते हैं. रियासत काल से ये परंपरा चली आ रही है.
700 साल पुरानी परंपरा
- इस रस्म को सिरहसार भवन में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और प्रशासनिक अधिकारी के मौजूदगी में पूरा किया गिया.
- इस रस्म बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सम्मान में 700 साल से सामान्य और वनवासी समाज की ओर से किया जाता रहा है.
समस्याओं का किया जाता है निराकरण
- परंपरा के मुताबिक इस रस्म में मुरिया दरबार कार्यक्रम में बस्तर संभाग से आए विभिन्न गांवों के मांझी, मुखिया और शासन -प्रशासन के सामने अपनी समस्याओं को रखते हैं और उनके निदान के लिए पहल भी करते हैं.
- रियासत काल में ग्रामीण राजा के समक्ष अपनी समस्या रखते थे और वे समस्याओं का निराकरण किया करते थे, लेकिन लोकतंत्र में अब शासन-प्रशासन के नुमाइंदे इस आयोजन में मौजूद रहते हैं और ग्रामीण उनसे अपनी समस्याओं को बताते हैं.
कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रहे अनुपस्थित
इस बार चित्रकोट उपचुनाव के मद्देनजर बस्तर जिले में लगे आचार सहिंता की वजह से स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री इस रस्म में शामिल नहीं हो पाए. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने की वजह से मांझी की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया है.
- इस बार मांझी चालकी ने मुख्य रूप से मानदेय बढ़ाने और समय पर मानदेय दिए जाने की मांग की है.
- इसके साथ ही बस्तर दशहरा के दौरान रथ से नीचे गिरने पर हुई कारीगर की मौत को लेकर उचित मुआवजा देने की मांग की है.
मांझी बलराम कश्यप का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के सामने कारीगरों के मानदेय और और उन्हें भोजन संबंधी आ रही समस्या को लेकर बात रखनी थी, लेकिन आचार संहिता की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए.