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बस्तर दशहरा: निभाई गई मुरिया दरबार की रस्म, मन में रह गई मांझी की परेशानी

बस्तर दशहरा की प्रसिद्ध रस्म मुरिया दरबार गुरुवार को निभाई गई. इस दौरान सैकड़ों की संख्या में आदिवासी मौजूद रहे.

मुरिया दरबार
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Published : Oct 10, 2019, 8:45 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: हम आपको बस्तर दशहरे की हर रस्मों और रिवाजों से रूबरू कराते आए हैं. 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर हुई अद्भुत रस्मों में से एक रस्म मुरिया दरबार भी है, जिसे गुरुवार दोपहर को निभाया गया इस रस्म में सैकड़ों की संख्या में अदिवासी शामिल होते हैं. रियासत काल से ये परंपरा चली आ रही है.

निभाई गई मुरिया दरबार की रस्म

700 साल पुरानी परंपरा

  • इस रस्म को सिरहसार भवन में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और प्रशासनिक अधिकारी के मौजूदगी में पूरा किया गिया.
  • इस रस्म बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सम्मान में 700 साल से सामान्य और वनवासी समाज की ओर से किया जाता रहा है.

समस्याओं का किया जाता है निराकरण

  • परंपरा के मुताबिक इस रस्म में मुरिया दरबार कार्यक्रम में बस्तर संभाग से आए विभिन्न गांवों के मांझी, मुखिया और शासन -प्रशासन के सामने अपनी समस्याओं को रखते हैं और उनके निदान के लिए पहल भी करते हैं.
  • रियासत काल में ग्रामीण राजा के समक्ष अपनी समस्या रखते थे और वे समस्याओं का निराकरण किया करते थे, लेकिन लोकतंत्र में अब शासन-प्रशासन के नुमाइंदे इस आयोजन में मौजूद रहते हैं और ग्रामीण उनसे अपनी समस्याओं को बताते हैं.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रहे अनुपस्थित
इस बार चित्रकोट उपचुनाव के मद्देनजर बस्तर जिले में लगे आचार सहिंता की वजह से स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री इस रस्म में शामिल नहीं हो पाए. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने की वजह से मांझी की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया है.

  • इस बार मांझी चालकी ने मुख्य रूप से मानदेय बढ़ाने और समय पर मानदेय दिए जाने की मांग की है.
  • इसके साथ ही बस्तर दशहरा के दौरान रथ से नीचे गिरने पर हुई कारीगर की मौत को लेकर उचित मुआवजा देने की मांग की है.

मांझी बलराम कश्यप का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के सामने कारीगरों के मानदेय और और उन्हें भोजन संबंधी आ रही समस्या को लेकर बात रखनी थी, लेकिन आचार संहिता की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए.

जगदलपुर: हम आपको बस्तर दशहरे की हर रस्मों और रिवाजों से रूबरू कराते आए हैं. 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर हुई अद्भुत रस्मों में से एक रस्म मुरिया दरबार भी है, जिसे गुरुवार दोपहर को निभाया गया इस रस्म में सैकड़ों की संख्या में अदिवासी शामिल होते हैं. रियासत काल से ये परंपरा चली आ रही है.

निभाई गई मुरिया दरबार की रस्म

700 साल पुरानी परंपरा

  • इस रस्म को सिरहसार भवन में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और प्रशासनिक अधिकारी के मौजूदगी में पूरा किया गिया.
  • इस रस्म बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सम्मान में 700 साल से सामान्य और वनवासी समाज की ओर से किया जाता रहा है.

समस्याओं का किया जाता है निराकरण

  • परंपरा के मुताबिक इस रस्म में मुरिया दरबार कार्यक्रम में बस्तर संभाग से आए विभिन्न गांवों के मांझी, मुखिया और शासन -प्रशासन के सामने अपनी समस्याओं को रखते हैं और उनके निदान के लिए पहल भी करते हैं.
  • रियासत काल में ग्रामीण राजा के समक्ष अपनी समस्या रखते थे और वे समस्याओं का निराकरण किया करते थे, लेकिन लोकतंत्र में अब शासन-प्रशासन के नुमाइंदे इस आयोजन में मौजूद रहते हैं और ग्रामीण उनसे अपनी समस्याओं को बताते हैं.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री रहे अनुपस्थित
इस बार चित्रकोट उपचुनाव के मद्देनजर बस्तर जिले में लगे आचार सहिंता की वजह से स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री इस रस्म में शामिल नहीं हो पाए. बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने की वजह से मांझी की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया है.

  • इस बार मांझी चालकी ने मुख्य रूप से मानदेय बढ़ाने और समय पर मानदेय दिए जाने की मांग की है.
  • इसके साथ ही बस्तर दशहरा के दौरान रथ से नीचे गिरने पर हुई कारीगर की मौत को लेकर उचित मुआवजा देने की मांग की है.

मांझी बलराम कश्यप का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के सामने कारीगरों के मानदेय और और उन्हें भोजन संबंधी आ रही समस्या को लेकर बात रखनी थी, लेकिन आचार संहिता की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाए.

Intro:जगदलपुर। 75 दिनों तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व अब समाप्ति की ओर है । बस्तर दशहरा के एक ओर रस्म आज मुरिया दरबार का आयोजन किया गया ।शहर के सिरहसार भवन में बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और प्रशासनिक अधिकारी के मौजूदगी में इस रस्म को पूरा किया गया। चित्रकोट उपचुनाव के मद्देनजर बस्तर जिले में लगे आचार सहिंता की वजह से इस वर्ष स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री इस रस्म में शामिल होने नही हो पाए।




Body:बस्तर दशहरा 700 वर्षों से सामान्य और वनवासी समाज द्वारा संयुक्त रूप से ये पर्व बस्तर की आराध्य देवी माँ दन्तेश्वरी के सम्मान में यहाँ मनाया जाता रहा है।  जिसमें हजारो की संख्या में आदिवासी शामिल होते हैं । बस्तर दशहरा के रस्मो के अंतर्गत मुरिया दरबार कार्यक्रम में बस्तर संभाग भर से आए विभिन्न गांवों के माँझी , मुखिया , शासन -प्रशासन के समक्ष अपनी समस्याओं को रखते हैं । और उनके निदान के लिए पहल की जाती है।


Conclusion:रियासत काल में ग्रामीण राजा के समक्ष अपनी समस्या रखते थे और वे समस्याओं का निराकरण किया करते थे, लेकिन लोकतंत्र में अब शासन प्रशासन के नुमाइंदे इस आयोजन में मौजूद रहते हैं और ग्रामीण उनसे अपनी समस्याओं को बताते हैं। बस्तर राजपरिवार सदस्य कमल चंद भंजदेव ने बताया कि चुकी इस वर्ष चित्रकूट उपचुनाव के चलते इस रस में स्थानीय जनप्रतिनिधि और मुख्यमंत्री शामिल नहीं हो पाए हैं इस वजह से यहां माझी चाल की के समस्याओं का त्वरित निराकरण नहीं हो पाया है। कमल चंद भंजदेव ने बताया कि मांझी चालकी ने मुख्य रूप से उनके मानदेय बढ़ाने को लेकर और समय पर उन्हें मानदेय दिया जाए । इसकी मांग की है ।साथ ही इस वर्ष बस्तर दशहरा के दौरान रथ के ऊपर सोये रथ कारीगर की नीचे गिरने से हुई मौत को लेकर उसे उचित मुआवजा दिए जाने के साथ भविष्य में ऐसे हादसे न हो इसके लिए भी जिला प्रशासन को ध्यान रखने को कहा गया है। इधर मांझी बलराम कश्यप का कहना है की आचार संहिता लगने की वजह से रथ कारीगरों के मानदेय और उन्हें भोजन संबंधी आ रही समस्या को लेकर जनप्रतिनिधियों के सामने बात रखनी थी। लेकिन आने वाले वर्ष में इस समस्या को रखने की बात मांझी ने कही।

बाईट1-कमलचंद भंजदेव, सदस्य राजपरिवार

बाईट 2-बलराम कश्यप, मांझी


Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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