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SPECIAL: सादगी से अदा की गई बस्तर दशहरा की मावली परघाव रस्म, फूलों से हुआ स्वागत - रोचक परंपराओं के लिए मशहूर

बस्तर का दशहरा अपनी अनोखी और रोचक परंपराओं के लिए दुनियाभर में मशहूर है. 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे बड़ा लोकपर्व है. 12 से ज्यादा रस्में इस उत्सव को अनूठा बना देती हैं. विजयादशमी को मावली देवी की छत्र डोली रस्म अदा की गई.

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सादगी से अदा की गई बस्तर दशहरा की मावली परघाव रस्म
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Published : Oct 26, 2020, 12:12 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म देर रात अदा की गई. 2 देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में अदा की गई. परंपरा अनुसार इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है. हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूमधाम से मनाई गई.

मावली परघांव रस्म

नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाले रस्म को देखने हर साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है, हालांकि इस बार कोरोना महामारी की वजह से इस रस्म में काफी कम भीड़ देखने को मिली. साथ ही जिला प्रशासन ने दशहरा पर्व के दौरान रस्मों में कोरोना संक्रमण के कारण लोगों को रस्म स्थल तक आने नहीं दिया. बावजूद इसके कोविड 19 पर आस्था भारी रही. इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहुंचे थे.

Mavali Parghaon ceremony of Bastar Dussehra performed at Jagdalpur Danteshwari Temple
बस्तर दशहरा की मावली परघाव रस्म

बस्तर के राजकुमार ने फूलों से किया भव्य स्वागत

दंतेवाड़ा से पहुंची माता की डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया. दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं. मान्यता के अनुसार 600 वर्ष से पूर्व रियासतकाल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह माई की डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है.

Mavali Parghaon ceremony
मावली परघाव रस्म

छत्तीसगढ़ में नवरात्र : मावली परघाव रस्म के लिए माईजी की डोली रवाना

छिंदक नागवंशी राजाओं ने बस्तर में किया शासन

परंपराओं के अनुसार देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी.

Goddess Mavali Ki Doli
देवी मावली की डोली

दंतेवाड़ा से आती है मावली देवी की डोली

मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. विशेष जानकारों के मुताबिक, नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर के राजा, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इनकी ससम्मान विदाई होती है.

Devi Danteshwari
देवी दंतेश्वरी

बस्तर दशहरा: विधि विधान के साथ संपन्न हुई निशा जात्रा की रस्म

मंदिर के प्रांगण में मावली माता का होता है स्वागत

बस्तर राजकुमार ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में मावली माता को शामिल होने के लिए नवरात्रि के पंचमी के दिन बकायदा बस्तर के राजा न्योता देने दंतेवाड़ा जाते हैं. उसके बाद महाष्टमी के शाम मावली माता की डोली और छत्र को शहर के दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिया डेरा नामक एक मंदिर में रखा जाता है. नवमी के दिन शाम को पूरे जोश और आतिशबाजी के साथ श्रद्धालु हाथों में दीए लिए मंदिर के प्रांगण में मावली माता का स्वागत करते हैं.

बस्तर राजकुमार कमलचंद देव

डोली की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा जाता है. दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में माता की डोली और छत्र को शामिल किया जाता है. बस्तर राजकुमार कमलचंद देव ने बताया कि कोविड को देखते हुए इस साल रस्मों के दौरान खास सतर्कता भी बरती जा रही है. साथ ही पूरे विधि-विधान के साथ दशहरा के रस्मों को सम्पन्न कराया जा रहा है.

Goddess Mavali Ki Doli
देवी मावली की डोली

मां दंतेश्वरी मावली माता को देती हैं निमंत्रण

दंतेवाड़ा में विराजमान मावली माता को जगदलपुर में विराजमान दंतेश्वरी देवी से मिलन कराने की इस परंपरा को कई सदियों से यूं ही बस्तर के राजाओं द्वारा निभाया जाता रहा है. दोनों देवियों के मिलन के बाद यह रस्म पूर्ण होती है. इस रस्म की खास बात यह होती है कि स्थानीय लोग अपने हाथों में फूल और दीए रख मावली माता की डोली का स्वागत करते हैं. इस रस्म का मुख्य सार दंतेश्वरी देवी द्वारा मावली माता को दशहरा पर्व के लिए जगदलपुर आमंत्रित करना होता है. सदियों से चली आ रही रस्म में दोनों देवियों के मिलन के बाद दशहरा रस्म की शुरुआत की जाती है.

जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म देर रात अदा की गई. 2 देवियों के मिलन के इस रस्म को जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण कुटरूबाढ़ा में अदा की गई. परंपरा अनुसार इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र डोली और दंतेश्वरी के छत्र को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है. हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूमधाम से मनाई गई.

मावली परघांव रस्म

नवरात्रि के नवमी में मनाए जाने वाले रस्म को देखने हर साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है, हालांकि इस बार कोरोना महामारी की वजह से इस रस्म में काफी कम भीड़ देखने को मिली. साथ ही जिला प्रशासन ने दशहरा पर्व के दौरान रस्मों में कोरोना संक्रमण के कारण लोगों को रस्म स्थल तक आने नहीं दिया. बावजूद इसके कोविड 19 पर आस्था भारी रही. इस रस्म को देखने बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहुंचे थे.

Mavali Parghaon ceremony of Bastar Dussehra performed at Jagdalpur Danteshwari Temple
बस्तर दशहरा की मावली परघाव रस्म

बस्तर के राजकुमार ने फूलों से किया भव्य स्वागत

दंतेवाड़ा से पहुंची माता की डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया. दंतेश्वरी मंदिर के प्रांगण में मनाए जाने वाले इस रस्म को देखने हजारों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं. मान्यता के अनुसार 600 वर्ष से पूर्व रियासतकाल से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह माई की डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है.

Mavali Parghaon ceremony
मावली परघाव रस्म

छत्तीसगढ़ में नवरात्र : मावली परघाव रस्म के लिए माईजी की डोली रवाना

छिंदक नागवंशी राजाओं ने बस्तर में किया शासन

परंपराओं के अनुसार देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी.

Goddess Mavali Ki Doli
देवी मावली की डोली

दंतेवाड़ा से आती है मावली देवी की डोली

मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. विशेष जानकारों के मुताबिक, नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर के राजा, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इनकी ससम्मान विदाई होती है.

Devi Danteshwari
देवी दंतेश्वरी

बस्तर दशहरा: विधि विधान के साथ संपन्न हुई निशा जात्रा की रस्म

मंदिर के प्रांगण में मावली माता का होता है स्वागत

बस्तर राजकुमार ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में मावली माता को शामिल होने के लिए नवरात्रि के पंचमी के दिन बकायदा बस्तर के राजा न्योता देने दंतेवाड़ा जाते हैं. उसके बाद महाष्टमी के शाम मावली माता की डोली और छत्र को शहर के दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिया डेरा नामक एक मंदिर में रखा जाता है. नवमी के दिन शाम को पूरे जोश और आतिशबाजी के साथ श्रद्धालु हाथों में दीए लिए मंदिर के प्रांगण में मावली माता का स्वागत करते हैं.

बस्तर राजकुमार कमलचंद देव

डोली की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के भीतर रखा जाता है. दशहरा के दौरान होने वाली महत्वपूर्ण रस्म भीतर रैनी और बाहर रैनी, कुटुम जात्रा, काछन जात्रा में माता की डोली और छत्र को शामिल किया जाता है. बस्तर राजकुमार कमलचंद देव ने बताया कि कोविड को देखते हुए इस साल रस्मों के दौरान खास सतर्कता भी बरती जा रही है. साथ ही पूरे विधि-विधान के साथ दशहरा के रस्मों को सम्पन्न कराया जा रहा है.

Goddess Mavali Ki Doli
देवी मावली की डोली

मां दंतेश्वरी मावली माता को देती हैं निमंत्रण

दंतेवाड़ा में विराजमान मावली माता को जगदलपुर में विराजमान दंतेश्वरी देवी से मिलन कराने की इस परंपरा को कई सदियों से यूं ही बस्तर के राजाओं द्वारा निभाया जाता रहा है. दोनों देवियों के मिलन के बाद यह रस्म पूर्ण होती है. इस रस्म की खास बात यह होती है कि स्थानीय लोग अपने हाथों में फूल और दीए रख मावली माता की डोली का स्वागत करते हैं. इस रस्म का मुख्य सार दंतेश्वरी देवी द्वारा मावली माता को दशहरा पर्व के लिए जगदलपुर आमंत्रित करना होता है. सदियों से चली आ रही रस्म में दोनों देवियों के मिलन के बाद दशहरा रस्म की शुरुआत की जाती है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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