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नदिया किनारे, किसके सहारे: सूख रही है बस्तर की प्यास बुझाने वाली इंद्रावती

इंद्रावती नदी छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी है, जो आज सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है. इसे बचाने के लिए जगदलपुर और बस्तरवासियों ने इंद्रावती बचाओ अभियान चलाया है जिसमें गांव से लेकर शहरवासी तक हिस्सा ले रहे हैं. इसी कड़ी में ETV भारत ने 'नदिया किनारे, किसके सहारे' नाम से मुहिम चलाई है.

इंद्रावती नदी
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Published : Jun 21, 2019, 3:01 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' इस खास कवरेज में अब बात करते हैं उस नदी की जिसे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी कहा जाता है. जिससे बस्तर की प्यास बुझती है और जिसे बस्तरवासियों ने मां का दर्जा दिया है. ओडिशा कालाहांडी के रामपुर से बहने वाली इंद्रावती की कुल लंबाई 300 किलोमीटर है. जिंदगी देने के साथ यह नदी बस्तरवासियों के लिए आस्था का भी प्रतीक है.

नदिया किनारे, किसके सहारे

बस्तर संभाग में आने वाली जदगलपुर की आधी आबादी को जल भी इसी के जरिए नसीब होता है. इसके अलावा बस्तर के किसान खेती के लिए भी इसी के पानी पर निर्भर रहते हैं. मिनी नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध सूबे का मशहूर पिकनिक स्पॉट चित्रकोट वॉटर फॉल भी इसी नदी की देन है. नदी सूख रही है और बस्तर के 4 लाख लोगों को जल संकट का खतरा सताने लगा है.

इतिहास और विस्तार से जानिए-

  • इंद्रावती नदी के किनारे मौजूद इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के जानवरों के लिए भी यह पेयजल का प्रमुख स्त्रोत है.
  • पिछले कुछ साल में हालत बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और छत्तीसगढ़ की जीवनदायी इंद्रावती नदी तेजी से सूखती जा रही है और अगर यही आलम रहा तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जीवन देने वाली इस नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है.
  • बस्तर मे गहराते जल संकट को देखते हुए साल 1999 में अविभाजित तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने केन्द्रीय जल आयोग को पत्र लिखकर जोरानाला में इंद्रावती नदीं पर स्ट्रक्चर निर्माण की इजाजत मांगी, लेकिन कई सालों तक मंजूरी नहीं मिली.
  • इसके बाद केंद्रीय जल आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ऑडिशा और अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार के बीच मध्यस्था कराई.
  • इस दौरान समझौते के बाद जोरानाला में कंट्रोल स्ट्रक्चर के निर्माण की मंजूरी दी गई और साल 2003 मे कंट्रोल स्ट्रक्चर निर्माण की अनुमति मिलने के बाद जोरा नाला पर काम शुरू किया गया और साल 2015 में इसे मूलस्वरूप मिला.
  • स्ट्रक्चर निर्माण से पहले इंद्रावती नदी का 90 फीसदी पानी जोरा नाला की ओर डायवर्ट हो जाता था, लेकिन स्ट्रक्चर निर्माण के बावजूद भी उडीसा से आने वाली इंद्रावती नदी के पानी का 65 फीसदी हिस्सा आज भी जोरा नाला की ओर जाता है, जबकि मात्र 35 प्रतिशत पानी ही बस्तर की ओर आ रहा है.
  • ओडिशा के लोगों ने कई बार जोरा नाला में बने स्ट्रक्चर को नुकसान पंहुचाने की कोशिश की, ताकि बस्तर की ओर आने वाले पानी में और भी कमी की जा सके और जोरा नाला की ओर साल के बारहों महीने पानी का बहाव बना रह सके.
  • करीब 21 करोड़ की लागत से बने इस स्ट्रक्चर के निर्माण से बस्तरवासियों को कुछ खास फायदा तो नहीं हुआ, बल्कि शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही उनपर जलसंकट का खतरा भी मंडराने लगा.
  • बस्तर की ओर इंद्रावती नदी के बहाव का तेजी से घटने का एक नुकसान यह भी हुआ कि, इंद्रावती नदी के तटीय इलाकों में रेत माफिया और अतिक्रमणकारियों ने नदी में खनन करने के साथ-साथ पेड़ों की कटाई शुरू कर दी, इसका अंजाम यह हुआ कि, धीरे-धीरे इंद्रावती नदी के अस्तिस्व पर ही संकट छा गया.
  • बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि 'इंद्रावती नदी पर उड़ीसा के नवरंगपुर के पास खातीगुड़ा में डेम भी बनाया गया. यह डेम 1980 में बनना शुरू हुआ जिसे पूरा होने में 19 साल का वक्त लग गया.
  • बांध बनने के बाद इंद्रावती नदी में उड़ीसा की ओर से पानी आना बंद हो गया, जबकि दोनों सरकार के बीच हुए समझौते के मुताबिक 45 टीएमसी पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाना था, लेकिन ओडिशा सरकार ने इस समझौते को ताक में रखते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर को उतना पानी नहीं दिया.
  • इस मुद्दे को लेकर दोनों प्रदेशों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन इस दौरान छत्तीसगढ़ सरकार अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाई जिसका नतीजा आप इंद्रावती नदी की हालत देखकर बखूबी लगा सकते हैं.
  • साल दर साल इंद्रावती का दायरा सिमटता जा रहा है और अगर सिस्टम ने इस ओर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जिंदगी की यह धारा इतिहास में दफ्न हो जाएगी और बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस जाएंगे.

जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' इस खास कवरेज में अब बात करते हैं उस नदी की जिसे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी कहा जाता है. जिससे बस्तर की प्यास बुझती है और जिसे बस्तरवासियों ने मां का दर्जा दिया है. ओडिशा कालाहांडी के रामपुर से बहने वाली इंद्रावती की कुल लंबाई 300 किलोमीटर है. जिंदगी देने के साथ यह नदी बस्तरवासियों के लिए आस्था का भी प्रतीक है.

नदिया किनारे, किसके सहारे

बस्तर संभाग में आने वाली जदगलपुर की आधी आबादी को जल भी इसी के जरिए नसीब होता है. इसके अलावा बस्तर के किसान खेती के लिए भी इसी के पानी पर निर्भर रहते हैं. मिनी नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध सूबे का मशहूर पिकनिक स्पॉट चित्रकोट वॉटर फॉल भी इसी नदी की देन है. नदी सूख रही है और बस्तर के 4 लाख लोगों को जल संकट का खतरा सताने लगा है.

इतिहास और विस्तार से जानिए-

  • इंद्रावती नदी के किनारे मौजूद इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के जानवरों के लिए भी यह पेयजल का प्रमुख स्त्रोत है.
  • पिछले कुछ साल में हालत बड़ी तेजी से बदल रहे हैं और छत्तीसगढ़ की जीवनदायी इंद्रावती नदी तेजी से सूखती जा रही है और अगर यही आलम रहा तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जीवन देने वाली इस नदी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है.
  • बस्तर मे गहराते जल संकट को देखते हुए साल 1999 में अविभाजित तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने केन्द्रीय जल आयोग को पत्र लिखकर जोरानाला में इंद्रावती नदीं पर स्ट्रक्चर निर्माण की इजाजत मांगी, लेकिन कई सालों तक मंजूरी नहीं मिली.
  • इसके बाद केंद्रीय जल आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए ऑडिशा और अविभाजित मध्यप्रदेश की सरकार के बीच मध्यस्था कराई.
  • इस दौरान समझौते के बाद जोरानाला में कंट्रोल स्ट्रक्चर के निर्माण की मंजूरी दी गई और साल 2003 मे कंट्रोल स्ट्रक्चर निर्माण की अनुमति मिलने के बाद जोरा नाला पर काम शुरू किया गया और साल 2015 में इसे मूलस्वरूप मिला.
  • स्ट्रक्चर निर्माण से पहले इंद्रावती नदी का 90 फीसदी पानी जोरा नाला की ओर डायवर्ट हो जाता था, लेकिन स्ट्रक्चर निर्माण के बावजूद भी उडीसा से आने वाली इंद्रावती नदी के पानी का 65 फीसदी हिस्सा आज भी जोरा नाला की ओर जाता है, जबकि मात्र 35 प्रतिशत पानी ही बस्तर की ओर आ रहा है.
  • ओडिशा के लोगों ने कई बार जोरा नाला में बने स्ट्रक्चर को नुकसान पंहुचाने की कोशिश की, ताकि बस्तर की ओर आने वाले पानी में और भी कमी की जा सके और जोरा नाला की ओर साल के बारहों महीने पानी का बहाव बना रह सके.
  • करीब 21 करोड़ की लागत से बने इस स्ट्रक्चर के निर्माण से बस्तरवासियों को कुछ खास फायदा तो नहीं हुआ, बल्कि शहर की आबादी बढ़ने के साथ ही उनपर जलसंकट का खतरा भी मंडराने लगा.
  • बस्तर की ओर इंद्रावती नदी के बहाव का तेजी से घटने का एक नुकसान यह भी हुआ कि, इंद्रावती नदी के तटीय इलाकों में रेत माफिया और अतिक्रमणकारियों ने नदी में खनन करने के साथ-साथ पेड़ों की कटाई शुरू कर दी, इसका अंजाम यह हुआ कि, धीरे-धीरे इंद्रावती नदी के अस्तिस्व पर ही संकट छा गया.
  • बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि 'इंद्रावती नदी पर उड़ीसा के नवरंगपुर के पास खातीगुड़ा में डेम भी बनाया गया. यह डेम 1980 में बनना शुरू हुआ जिसे पूरा होने में 19 साल का वक्त लग गया.
  • बांध बनने के बाद इंद्रावती नदी में उड़ीसा की ओर से पानी आना बंद हो गया, जबकि दोनों सरकार के बीच हुए समझौते के मुताबिक 45 टीएमसी पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाना था, लेकिन ओडिशा सरकार ने इस समझौते को ताक में रखते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर को उतना पानी नहीं दिया.
  • इस मुद्दे को लेकर दोनों प्रदेशों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन इस दौरान छत्तीसगढ़ सरकार अपना पक्ष ठीक से नहीं रख पाई जिसका नतीजा आप इंद्रावती नदी की हालत देखकर बखूबी लगा सकते हैं.
  • साल दर साल इंद्रावती का दायरा सिमटता जा रहा है और अगर सिस्टम ने इस ओर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो शायद वह दिन दूर नहीं जब जिंदगी की यह धारा इतिहास में दफ्न हो जाएगी और बस्तर के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस जाएंगे.
Intro:
 
जगदलपुर। इंद्रावती नदी  मध्य भारत की एक बड़ी नदी है और गोदावरी नदी  की सहायक नदी है। इस नदी का उदगम उडीसा राज्य के कालाहाण्डी जिले के रामपुर से हुआ है। उडीसा से बस्तर  आने वाली इस नदी की लंबाई लगभग 300 कि.मी है, यह नदी मुख्य रूप से छत्तीसगढ राज्य के बीजापुर जिले मे प्रवाहित होती है, और बीजापुर के तिमेड से होती हुई तेंलगाना के  भद्राकाली मे स्थित गोदावरी नदी मे इस नदी का संगम होता है, इंद्रावती नदी बस्तरवासियो के लिए आस्था और भक्ति का प्रतीक भी है, जगदलपुर  शहर की आधी आबादी और ग्रामीण अचंल के लोग इस नदी के पानी पर ही निर्भर है। इसके अलावा बस्तर के किसान भी अपनी खेतो की सिचांई के लिए इसी इंद्रावती पानी का उपयोग करते है।  विश्व प्रसिध्द व देश मे मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर चित्रकोट जलप्रपात का विंहगम नजारा इंद्रावती नदी के बदौलत ही लोगो को देखने को मिलता है। वही बीजापुर जिले के भैरमगढ मे मौजुद इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान इंद्रावती नदी के किनारे ही बसा हुआ है, औऱ यंहा के जीव जंतुओ के लिए भी इंद्रावती नदी पेयजल का मुख्य स्त्रोत है। लेकिन कुछ सालो से बस्तर की ओर आने वाली इंद्रावती नदी पूरी तरह से सूखती जा रही है। आलम यह है कि इस नदी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है और लगभग 4 लाख बस्तरवासियो के सर पर एक बडा जल संकट का खतरा मंडराने लगा है।    
 
ओपनिंग पीटीसी ------ अशोक नायडू



Body:वो1- बस्तर के विशेष जानकार विनोद सिंह बताते है कि सन 1977 मे अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार और उडीसा सरकार के बीच एक समझौता हुआ था कि उडीसा सरकार बस्तरवासियो को 45 टीएमसी इंद्रावती नदी का पानी देगी। और कुछ सालो तक तय वायदे के मुताबिक उडीसा सरकार ने 45 टीएमसी पानी भी दिया, लेकिन धीरे धीरे उडीसा सरकार ने केन्द्रीय जल आयोग से लिए गये अनुमति के फलस्वरूप उडीसा के इंद्रावती नदी मे अपने प्रोजेक्ट के मुताबिक  एक एक करके 9 बांध मे से 6 बांध बनाये, जिसमे खातीगुडा डेम, तेलागिंरी डेम बडे स्टॉप डेम मे से एक है।  जबकि छत्तीसगढ सरकार को मिले 9 बांधो की मंजूरी मे एक भी बांध सरकार नही बना पाई, नतीजन उडीसा से छत्तीसगढ की ओर आने वाला पानी का स्तर बांध की वजह से धीरे धीरे घटते चला गया, औऱ वंहा से बस्तरवासियो पर जलसंकट का खतरा मंडराने लगा।
 
बाईट1- विनोंद सिंह, विशेष जानकार
 
WT -1  -- अशोक नायडू
 
वो2- बस्तर मे गहराते जल संकट को देखते हुए सन 1999 मे तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री दिगविजय सिंह ने केन्द्रीय जल आयोग को पत्र लिखकर उडीसा और छत्तीसगढ सीमा मे स्थित इंद्रावती नदी के जोरानाला मे स्ट्रक्चर निर्माण करने की बात रखी, लेकिन कई सालो तक इस पर मंजूरी नही मिली  जिसके बाद केन्द्रीय जल आयोग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दोनो सरकारो के बीच मध्यस्था कराकर जोरानाला मे कंट्रोल स्ट्रक्चर के निर्माण की मंजूरी दी। और फिर सन 2003 मे कंट्रोल स्ट्रक्चर निर्माण की अनुमति मिलने के बाद जोरा नाला मे काम शुरू किया गया, और 2015 मे इसे मुलस्वरूप मिला।  विनोद सिंह बताते है कि कंट्रोल स्ट्रक्चर बनाये जाने का मुख्य कारण उडीसा की ओर से आ रहे पानी को इस स्ट्रक्चर के माध्यम से रोका जाना था। ताकि  उडीसा के जोरा नाला व बस्तर की ओर आने वाली नदी के हिस्से मे बराबर पानी का बंटवारा हो सके। साथ ही इस स्ट्रक्चर से हर मौसम मे जल का भराव हो जिससे की बस्तरवासियो को गैर मानसून काल मे भी पर्याप्त मात्रा मे पानी मिल सके।  चुंकि स्ट्रक्चर निर्माण करने से पहले इंद्रवाती नदी का 90 प्रतिशत पानी  जोरा नाला की ओर डायवर्ट हो जाता था, लेकिन स्ट्रक्चर निर्माण के बावजुद भी उडीसा से आने वाली इंद्रावती नदी के पानी का 65 प्रतिशत हिस्सा आज भी जोरा नाला की ओऱ जाता है जबकि मात्र 35 प्रतिशत ही बस्तर की ओर पानी आ रहा है,औऱ इसमे भी उडीसा के लोगो ने कई बार जोरा नाला मे बने स्ट्रक्चर को नुकसान पंहुचाने की कोशिश की जिससे की बस्तर की ओर आने वाले पानी मे और भी कमी हो जाये और जोरा नाला की ओर 12 महीनो पानी का तेज बहाव रहे।  
 
बाईट2- विनोद सिंह, विशेष जानकार
 
वॉक थ्र----2
 
वो3- लगभग 21 करोड रू की लागत से बने इस स्ट्रक्चर के निर्माण से बस्तरवासियो को कुछ खास फायदा तो हुआ नही बल्कि शहर की आबादी बढने के साथ ही औऱ भी उन पर जलसंकट का खतरा मंडराने लगा। बस्तर की ओर इंद्रावती नदी के बहाव का तेजी से घटने का एक ओऱ नुकसान यह भी हुआ कि इंद्रावती नदी के तटीय इलाको मे अतक्रमणकारियो ने कब्जा करने तेजी से पडो की कटाई शुरू कर दी, पर्यावरण और नदी मे जल का स्त्रोत बढाने के लिए पेड और पौधे सबसे अहम माने जाते है लेकिन अंधाधुंन पेडो की कटाई के वजह से लोगो ने नदी के तट को मैदान मे तब्दील कर दिया। पेडो की कटाई कर अतिक्रमण करने के साथ ही रेत माफिया भी इंद्रावती नदी के अस्तित्व को खत्म करने के लिए कोई कोर कसर नही छोड रहे है। छत्तीसगढ मे गौण खनिज के उत्खनन पर रोक लगने के बाबवुद रेत माफिया खनिज विभाग से मिलीभगत कर धडल्ले से नदी से रेत का अवैध उत्खनन कर रहे है, जिससे की नदी का प्रवाह और भी बिगडता जा रहा है।
 
बाईट2- विनोद सिंह, विशेष जानकार              "
 
वॉक थ्रू----3
 
वो3- बस्तर के विशेष जानकार हेमंत कश्यप बताते हैं कि इंद्रावती नदी पर उड़ीसा के नवरंगपुर के पास खातीगुड़ा में डेम भी बनाया गया है । यह डेम 1980 में बनना शुरू हुआ और इसे पूरा होने में19 साल लग गए । बांध बनने के बाद इंद्रावती नदी में उड़ीसा की ओर से पानी आना बंद हो गया । जबकि दोनों सरकार के बीच हुए समझौता के अनुसार 45 टीएमसी पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाना था लेकिन ओडिशा सरकार ने इस समझौते को ताक में रखते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर को उतना पानी नहीं दे रहा है।  कई बार इस मुद्दे को लेकर दोनों सरकारों के बीच बैठक भी हुई लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दबाव नहीं बना पाने के चलते यह  स्थिति उत्पन्न हुई और अब आलम यह है कि गर्मी के दिनों में बस्तर में पानी के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है। 
 
बाईट3- हेमंत कश्यप, विशेष जानकार. "टोपी पहने हुए"
 



Conclusion:
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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