जगदलपुर: बस्तर संभाग बीते 4 दशकों से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. नक्सली जब शांत बैठते हैं तो उन्हें बैकफुट पर समझा जाता है. लेकिन अचानक से फिर नक्सली एक बड़ी घटना को अंजाम देते हैं. जिससे उनकी दहशत बनी रहे. कौन से हैं वो महीने जिसमें लाल आतंक का तांडव कम और ज्यादा नजर आता है. नक्सल मामलों को समझने वालों की मानें तो नक्सली ज्यादातर बड़ी घटनाओं को जनवरी से मई के बीच में अंजाम देते हैं. इन 5 महीनों को नक्सलियों का TCOC (टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैम्पेन) समय कहा जाता है. बीते 10 सालों के आंकड़ों की बात करें तो अब तक TCOC के दौरान 227 जवान शहीद हो चुके हैं. आखिर क्या होता है TCOC ? क्यों इस दौरान नक्सली बड़ी घटना को अंजाम देते हैं ? देखिए ETV भारत की खास रिपोर्ट में.
बस्तर पुलिस और अर्ध सैनिक बल इस बात को अच्छे से जानते हैं कि जनवरी से मई माह तक के 5 महीने नक्सली गतिविधियों के केंद्र में होते हैं. इस समय नक्सली पूरी तरह अटैकिंग मोड में होते हैं. रणनीतियां बनाकर उन्हें जमीन पर उतारने में अपनी सारी ऊर्जा खर्च करते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो यह उनका टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैम्पेन (TCOC) पीरियड होता है. जिसमें वे हिंसक गतिविधियों के साथ खूनी संघर्ष का तांडव मचा कर पुलिस और आमजनों के बीच दहशत का संदेश देते हैं. इसके साथ ही मौजूदगी दिखाकर अपने संगठन को मजबूत बनाने का काम करते हैं.
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TCOC में क्या करते हैं नक्सली ?
- TCOC टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैंपेन के तहत आमतौर पर पतझड़ के बाद नए लड़ाकों को नक्सली अपने संगठन से जोड़ते हैं.
- नक्सली नए लड़ाकों को सिखाते हैं कि सही समय पर हमला कैसे करना है ? रियल टाइम प्रैक्टिस और एंबुश में कैसे जवानों को फंसा कर मारा जाए ?
- इसके अलावा ट्रेनिंग में ये भी बताया जाता है कि गोलीबारी के बीच में कैसे शहीद हुए जवानों के हथियार लूटने हैं.
- इसी अवधि में नक्सली अपने संगठन का विस्तार करते हैं.
- नए सदस्यों को पुलिस पर आक्रमण, हथियार प्रशिक्षण अन्य शस्त्र कला और गुरिल्ला वार युद्ध कला में प्रशिक्षित करते हैं.
- व्यापारियों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों और सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों से वसूली कर साल भर का फंड इकट्ठा करते हैं.
- बाकी 7 माह नक्सली मौका मिलने या पुलिस की रेकी कर किसी चूक का इंतजार कर छोटी-मोटी वारदातों को अंजाम देते हैं.
5 महीनों में काफी आक्रामक हो जाते हैं नक्सली
नक्सल मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार मनीष गुप्ता बताते हैं कि नक्सली जनवरी से मई माह तक इन 5 महीनों में काफी आक्रामक हो जाते हैं. गुरिल्ला युद्ध करते हैं. पिछले कई सालों के आंकड़ों के मुताबिक अधिकतर पुलिस-नक्सली मुठभेड़ इन्हीं 5 महीनों में होती है. फरवरी से मई महीने में काफी गर्मी होती है. इस दौरान नक्सल ऑपरेशन पर जंगलों में निकले जवान काफी थक जाते हैं. पतझड़ का मौसम होने की वजह से पारदर्शिता बढ़ जाती है. ऐसे में नक्सली इस समय एंबुश लगाकर जवानों पर फायर खोल देते हैं. इस दौरान जवान नक्सलियों के एंबुश में फंस जाते हैं. जवानों को ज्यादा नुकसान पहुंचता है.
क्या होता है TCOC ?
TCOC नक्सलियों का एक अभियान है. इस अभियान के तहत नक्सली ज्यादा से ज्यादा बस्तर में तैनात फोर्स को नुकसान पहुंचाने के लिए पूरी तरह से एक्टिव रहते हैं. इन 5 महीनों में यह भी देखा गया है कि TCOC नक्सलियों के बड़े विंग्स की ओर से अंजाम दिया जाता है. खासकर PLGF प्लाटून नंबर 1 के सभी नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं. ये पूरी तरह से प्रशिक्षण प्राप्त कर लेते हैं. वहीं 5 महीनों में नक्सली नए लड़ाकों को भी प्रशिक्षण देने का काम करते हैं. मुठभेड़ के दौरान उन्हें भी ट्रेनिंग देते हैं. या यूं कहा जाए कि नक्सली इन 5 महीनो में खूनी आंतक मचाते हैं. साथ ही पुलिस और आम जनों के बीच अपने खौफ और दहशत का संदेश देते हैं.
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ऑपरेशन का नाम बदलते रहते हैं नक्सली
पूर्व नक्सली कमांडर और सरेंडर नक्सली रमेश बदरन्ना बताते हैं कि नक्सली समय-समय पर अपने अभियान का नाम बदलते रहते हैं लेकिन अभियान उसी तरह से जारी रहता है. नाम बदलकर अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए नए लड़ाकों की तैनाती करते हैं. उन्हें पूरी तरह से प्रशिक्षण देते हैं और उसके बाद इन 5 महीनों के अंतराल में बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम देते हैं. पूर्व नक्सली का कहना है कि नक्सली यह पैंतरा शुरू से अपना रहे हैं. इसमें बड़ी संख्या में जवानों को नुकसान पहुंचता है. नक्सली इसी दौरान अधिकतर एंबुश में जवानों को फंसाते हैं.
जवानों को काफी नुकसान पहुंचा चुके हैं नक्सली
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि पुलिस ने भी हमेशा से नोटिस किया है कि नक्सली TCOC अभियान के दौरान ज्यादा आक्रामक होते हैं. खासकर मार्च-अप्रैल और मई के महीनों में फोर्स को नुकसान पहुंचाने के लिए अपनी उपस्थिति दिखाते हैं. इस दौरान नक्सलियों के बड़े दलम के कमांडर भी सक्रिय रहते हैं. हालांकि कई बार फोर्स को आभास होने के बाद नक्सलियों के चंगुल से बच निकलने में भी फोर्स को कामयाबी मिली है, लेकिन कुछ घटनाओं में सर्चिंग पर निकले जवान इनके एम्बुश में फंस जाते हैं और बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है.
नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाव दे रही पुलिस
बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सलियों की TCOC के दौरान बस्तर पुलिस को भी काफी उपलब्धि मिली है. इन महीनों में नक्सलियो के बड़े कमांडर भी मारे गए हैं. आईजी का कहना है कि नक्सलियों के इस TCOC को भेदने के लिए बस्तर पुलिस अब ऐसे इलाकों के ग्रामीणों का दिल जीत कर नक्सलियों के मांद में घुसकर उनका मुंह तोड़ जवाब दे रही है. आने वाले सालों में निश्चित रूप से बस्तर पुलिस को नक्सलियों को बैकफुट पर लाने में कामयाबी हासिल होगी. उनका यह TCOC अभियान फेल साबित होगा.
पिछले 10 सालों में TCOC में 227 जवान शहीद
गर्मियों के शुरुआत से ही नक्सली TCOC चलाते रहे हैं. यह उनकी रणनीति का हमेशा से हिस्सा रहा है. इसका मकसद अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के साथ ही फोर्स पर ज्यादा से ज्यादा हमले करना होता है. बीते एक दशक में नक्सलियों की TCOC टैक्टिकल काउंटर ऑफ ऑफेंसिव कैंपेन के दौरान 227 जवान शहीद हो चुके हैं.
TCOC के दौरान बड़ी नक्सली घटनाएं
- 6 अप्रैल 2010 में ताड़मेटला हमले में CRPF के 76 जवानों की शहादत हुई.
- 25 मई 2013 झीरम हमले में 30 से अधिक कांग्रेसी नेता और जवान शहीद हुए.
- 11 मार्च 2014 को टाहकावाड़ा हमले में 15 जवान शहीद हुए.
- 12 अप्रैल 2015 को दरभा में 5 जवानों समेत एंबुलेंस ड्राइवर और एक स्वास्थ्य कर्मचारी शहीद हुए.
- मार्च 2017 में सुकमा के भेज्जी हमले में 11 CRPF जवान शहीद हुए.
- 6 मई 2017 को सुकमा के कसालपाड़ में हमले में 14 जवानो की शहादत हुई.
- 25 अप्रैल 2017 को सुकमा के बुर्कापाल बेस कैंप के पास नक्सली हमले में 32 CRPF के जवान शहीद हुए.
- 21 मार्च 2020 को सुकमा के मीनपा हमले में 17 जवानों की शहादत हुई.
- 23 मार्च 2021 नारायणपुर के कोहकामेटा आईईडी ब्लास्ट में 5 जवान शहीद हुए.
- 3 अप्रैल 2021 को बीजापुर जिले में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हुए.