ETV Bharat / state

बस्तर दशहरा: देर रात अदा की गई 'भीतर रैनी' की रस्म, इस रस्म की ये है खासियत - JAGDALPUR news

बस्तर दशहरा में देर रात भीतर रैनी की रस्म अदा की गई. मंगलवार को बाहर रैनी की रस्म के साथ बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा की रस्म खत्म हो जाएगी.

bhitar raini rituals performed late night in bastar dussehra in jagdalpur
'भीतर रैनी' की रस्म
author img

By

Published : Oct 27, 2020, 2:10 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: दशहरा में विजयदशमी के दिन जहां एक ओर पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है. वहीं बस्तर में विजयदशमी के दिन दशहरा की प्रमुख रस्म 'भीतर रैनी' मनाई जाती है, इस साल भी देर रात इस महत्वपूर्ण रस्म की धूमधाम से अदायगी की गई. मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी और यही वजह है कि शांति, अहिंसा और सद्भाव के प्रतीक बस्तर दशहरा पर्व में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है. बल्कि विजयदशमी के दिन बस्तर दशहरा के महत्वपूर्ण रस्म 'भीतर रैनी' की अदायगी देर रात की जाती है.

भीतर रैनी की रस्म हुई पूरी

बस्तर दशहरे में भीतर रैनी बाहर रैनी की रस्म

bhitar raini rituals performed late night in bastar dussehra in jagdalpur
'भीतर रैनी' की रस्म

विजयदशमी के दिन मनाए जाने वाले बस्तर दशहरा पर्व में भीतर रैनी रस्म में 8 चक्के के विशालकाय नये रथ को देर रात शहर में परिक्रमा कराने के बाद आधी रात को इसे चुराकर माड़िया और गोंड जनजाति के लोग शहर से लगे कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं. इस संबंध में हेमंत कश्यप ने बताया कि राजशाही युग में राजा के खातिरदारी से असंतुष्ट ग्रामीणों ने नाराज होकर आधी रात रथ चुराकर एक जगह कुम्हड़ाकोट में जगंल के पीछे छिपा दिया था. इसके पश्चात राजा द्वारा दूसरे दिन कुमड़ाकोट पहुंच और ग्रामीणों को मनाकर एवं उनके साथ भोजकर शाही अंदाज में रथ को वापस जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया गया.

'बाहर रैनी' रस्म के साथ रथ परिक्रमा की रस्म होगी खत्म

bhitar raini rituals performed late night in bastar dussehra in jagdalpur
'भीतर रैनी' की रस्म

बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव द्वारा तिरुपति से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरंभ की गई जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है. दशहरा के दूसरे दिन यानी मंगलवार शाम बाहर रैनी रस्म की अदायगी की जाएगी, इस रस्म में ग्रामीणों द्वारा चुराए गए रथ को वापस लाने के लिए राजा अपने महल से कुम्हड़ाकोट स्थान पहुंचते हैं और वहां पर ग्रामीणों की बात सुनने के साथ उनके साथ नवाखानी "याने की नई चावल की खीर" खाकर शाही अंदाज में रथ को वापस ग्रामीणों द्वारा ही खींचकर दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में लाकर रखा जाता है और इसी रस्म के साथ बस्तर दशहरा में रथ परिक्रमा की रस्म समाप्त की जाती है.

जगदलपुर: दशहरा में विजयदशमी के दिन जहां एक ओर पूरे देश में रावण का पुतला दहन किया जाता है. वहीं बस्तर में विजयदशमी के दिन दशहरा की प्रमुख रस्म 'भीतर रैनी' मनाई जाती है, इस साल भी देर रात इस महत्वपूर्ण रस्म की धूमधाम से अदायगी की गई. मान्यताओं के अनुसार आदिकाल में बस्तर रावण की नगरी हुआ करती थी और यही वजह है कि शांति, अहिंसा और सद्भाव के प्रतीक बस्तर दशहरा पर्व में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता है. बल्कि विजयदशमी के दिन बस्तर दशहरा के महत्वपूर्ण रस्म 'भीतर रैनी' की अदायगी देर रात की जाती है.

भीतर रैनी की रस्म हुई पूरी

बस्तर दशहरे में भीतर रैनी बाहर रैनी की रस्म

bhitar raini rituals performed late night in bastar dussehra in jagdalpur
'भीतर रैनी' की रस्म

विजयदशमी के दिन मनाए जाने वाले बस्तर दशहरा पर्व में भीतर रैनी रस्म में 8 चक्के के विशालकाय नये रथ को देर रात शहर में परिक्रमा कराने के बाद आधी रात को इसे चुराकर माड़िया और गोंड जनजाति के लोग शहर से लगे कुम्हड़ाकोट ले जाते हैं. इस संबंध में हेमंत कश्यप ने बताया कि राजशाही युग में राजा के खातिरदारी से असंतुष्ट ग्रामीणों ने नाराज होकर आधी रात रथ चुराकर एक जगह कुम्हड़ाकोट में जगंल के पीछे छिपा दिया था. इसके पश्चात राजा द्वारा दूसरे दिन कुमड़ाकोट पहुंच और ग्रामीणों को मनाकर एवं उनके साथ भोजकर शाही अंदाज में रथ को वापस जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया गया.

'बाहर रैनी' रस्म के साथ रथ परिक्रमा की रस्म होगी खत्म

bhitar raini rituals performed late night in bastar dussehra in jagdalpur
'भीतर रैनी' की रस्म

बस्तर के राजा पुरुषोत्तम देव द्वारा तिरुपति से रथपति की उपाधि ग्रहण करने के पश्चात बस्तर में दशहरे के अवसर पर रथ परिक्रमा की प्रथा आरंभ की गई जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है. दशहरा के दूसरे दिन यानी मंगलवार शाम बाहर रैनी रस्म की अदायगी की जाएगी, इस रस्म में ग्रामीणों द्वारा चुराए गए रथ को वापस लाने के लिए राजा अपने महल से कुम्हड़ाकोट स्थान पहुंचते हैं और वहां पर ग्रामीणों की बात सुनने के साथ उनके साथ नवाखानी "याने की नई चावल की खीर" खाकर शाही अंदाज में रथ को वापस ग्रामीणों द्वारा ही खींचकर दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में लाकर रखा जाता है और इसी रस्म के साथ बस्तर दशहरा में रथ परिक्रमा की रस्म समाप्त की जाती है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.