जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में जारी है इंद्रावती का सफर. देश में मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर बस्तर स्थित चित्रकोट वाटर फॉल को कौन नहीं जानता है. इस जलप्रपात की खूबसूरती को कम होता देख लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया था.
भारी गर्जना के साथ नीचे गिरता यह जलप्रपात शांत इसलिए हो गया था क्योंकि इस साल इंद्रावती नदी का जलस्तर बेहद कम हो चला है, जिसके चलते चित्रकोट जलप्रपात तक पानी ही नहीं पहुंच रहा.
इस बार सूख सा गया था चित्रकोट जलप्रपात
20 सालों से छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर पानी के हक के लिए चल रहे विवाद के बावजूद समय पर निर्णायक फैसला नहीं आने की वजह से बस्तर में गर्मी के दिनों में इंद्रावती नदी सूख जाती है और जिस वजह से चित्रकोट जलप्रपात में जलस्तर घटने के साथ बस्तर में पानी के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है. इस साल हाल ये था कि चित्रकोट वाटर फाल एकदम शांत और सूख सा गया था.
- ओडिशा सरकार के इस रवैये से काफी सालों से बस्तरवासी घटते जलस्तर की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति काफी भयंकर हो गई.
- विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात का अस्तित्व खतरे में होने के साथ बस्तर वासियों में भी पानी के लिए हाहाकार मचा. ऐसे में अब अपने हक की लड़ाई लड़ने बस्तरवासी लामबंद हुए.
- सबसे पहले इंद्रावती जल संकट पर निर्णायक उपाय की मांग के साथ बस्तर के पर्यटन एवं संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्थाओं ने आंदोलन शुरू किया. केवल चित्रकोट जलप्रपात की रक्षा नहीं बल्कि समूचे इंद्रावती नदी के अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ संस्था के सदस्यो ने एक दिवसीय जल सत्याग्रह किया.
- इसके अंतर्गत संस्था के सदस्यों ने इंद्रावती नदी में घुटनों तक डूब कर जल सत्याग्रह भी किया.
- दल के संस्थापक अविनाश प्रसाद ने जानकारी देते हुए बताया कि ओडिशा सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों ही सरकारों ने इस नदी के लिए ईमानदारी नहीं बरती. जिसके फलस्वरूप इसका खामियाजा बस्तर वासियों को और बस्तर के पर्यटन स्थल को भुगतना पड़ रहा है.
- जिस वजह से इसके स्थाई समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाकर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया, जिसमें बस्तर के प्रबुद्ध जनों के साथ स्थानीय लोग भी मौजूद रहे.
- जल सत्याग्रह के बाद कई सामाजिक संगठन के लोग भी आगे आए और अपने-अपने तरीके से विरोध जताने लगे.
- फिर बस्तर के स्थानीय नागरिकों और चेंबर के सदस्यों ने इंद्रावती बचाओ मंच समिति का गठन किया. इस समिति ने इंद्रावती बचाने के लिए शुरू की गई अभियान की गतिविधियों को आगे बढ़ाया.
- अपनी विभीन्न मांगो को लेकर जिसमें राज्य सरकार को ओडिशा सरकार से बातचीत कर इसका समाधान निकालने और जमीनी स्तर पर बस्तर के लोगों द्वारा बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को बचाए रखने के लिए पेड़ लगाने का सुझाव और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई.
- समिति के सभी सदस्यों ने छत्तीसगढ़ ओडिशा सीमा से लेकर चित्रकोट तक लगभग 70 किलोमीटर का पद यात्रा की और बस्तर के लोगों ने इंद्रावती को बचाए रखने के लिए वृहद रूप से आंदोलन की शुरुआत की.
- वहीं विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात भी पानी की कमी से दम तोड़ता नजर आया. इससे परेशान बस्तरवासियों ने एक बड़े जन आंदोलन की तैयारी की और 8 मई से बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए पदयात्रा की शुरुआत कर दी गई.
- शहर की जागरूक जनता छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर स्थित भेजापदर ग्राम से जहां इंद्रावती नदी छतीसगढ़ में प्रवेश करती है. वहां स्थानीय ग्रामीणों के साथ शहरवासियों ने अभियान की शुरुआत की.
- 'इंद्रावती बचाओ, बस्तर बचाओ' के नारे के साथ पदयात्रा इंद्रावती नदी के तट से होते हुए आगे बढ़ी और लगभग 12 दिनों तक हर दिन 5 किमी का सफर तय कर यह पदयात्रा चित्रकोट जलप्रपात पहुची जहां इस पदयात्रा का समापन किया गया.