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नदिया किनारे, किसके सहारे: जब इंद्रावती को बचाने निकल पड़ा बस्तर - छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर पानी के हक के लिए चल रहे विवाद के बावजूद समय पर निर्णायक फैसला नहीं आने की वजह से बस्तर में गर्मी के दिनों में इंद्रावती नदी सूख जाती है, जिसके चलते चित्रकोट जलप्रपात तक पानी ही नहीं पहुंच रहा.

जब इंद्रावती को बचाने निकल पड़ा बस्तर
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Published : Jun 22, 2019, 10:52 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में जारी है इंद्रावती का सफर. देश में मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर बस्तर स्थित चित्रकोट वाटर फॉल को कौन नहीं जानता है. इस जलप्रपात की खूबसूरती को कम होता देख लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया था.

जब इंद्रावती को बचाने निकल पड़ा बस्तर

भारी गर्जना के साथ नीचे गिरता यह जलप्रपात शांत इसलिए हो गया था क्योंकि इस साल इंद्रावती नदी का जलस्तर बेहद कम हो चला है, जिसके चलते चित्रकोट जलप्रपात तक पानी ही नहीं पहुंच रहा.

इस बार सूख सा गया था चित्रकोट जलप्रपात
20 सालों से छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर पानी के हक के लिए चल रहे विवाद के बावजूद समय पर निर्णायक फैसला नहीं आने की वजह से बस्तर में गर्मी के दिनों में इंद्रावती नदी सूख जाती है और जिस वजह से चित्रकोट जलप्रपात में जलस्तर घटने के साथ बस्तर में पानी के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है. इस साल हाल ये था कि चित्रकोट वाटर फाल एकदम शांत और सूख सा गया था.

  • ओडिशा सरकार के इस रवैये से काफी सालों से बस्तरवासी घटते जलस्तर की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति काफी भयंकर हो गई.
  • विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात का अस्तित्व खतरे में होने के साथ बस्तर वासियों में भी पानी के लिए हाहाकार मचा. ऐसे में अब अपने हक की लड़ाई लड़ने बस्तरवासी लामबंद हुए.
  • सबसे पहले इंद्रावती जल संकट पर निर्णायक उपाय की मांग के साथ बस्तर के पर्यटन एवं संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्थाओं ने आंदोलन शुरू किया. केवल चित्रकोट जलप्रपात की रक्षा नहीं बल्कि समूचे इंद्रावती नदी के अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ संस्था के सदस्यो ने एक दिवसीय जल सत्याग्रह किया.
  • इसके अंतर्गत संस्था के सदस्यों ने इंद्रावती नदी में घुटनों तक डूब कर जल सत्याग्रह भी किया.
  • दल के संस्थापक अविनाश प्रसाद ने जानकारी देते हुए बताया कि ओडिशा सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों ही सरकारों ने इस नदी के लिए ईमानदारी नहीं बरती. जिसके फलस्वरूप इसका खामियाजा बस्तर वासियों को और बस्तर के पर्यटन स्थल को भुगतना पड़ रहा है.
  • जिस वजह से इसके स्थाई समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाकर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया, जिसमें बस्तर के प्रबुद्ध जनों के साथ स्थानीय लोग भी मौजूद रहे.
  • जल सत्याग्रह के बाद कई सामाजिक संगठन के लोग भी आगे आए और अपने-अपने तरीके से विरोध जताने लगे.
  • फिर बस्तर के स्थानीय नागरिकों और चेंबर के सदस्यों ने इंद्रावती बचाओ मंच समिति का गठन किया. इस समिति ने इंद्रावती बचाने के लिए शुरू की गई अभियान की गतिविधियों को आगे बढ़ाया.
  • अपनी विभीन्न मांगो को लेकर जिसमें राज्य सरकार को ओडिशा सरकार से बातचीत कर इसका समाधान निकालने और जमीनी स्तर पर बस्तर के लोगों द्वारा बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को बचाए रखने के लिए पेड़ लगाने का सुझाव और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई.
  • समिति के सभी सदस्यों ने छत्तीसगढ़ ओडिशा सीमा से लेकर चित्रकोट तक लगभग 70 किलोमीटर का पद यात्रा की और बस्तर के लोगों ने इंद्रावती को बचाए रखने के लिए वृहद रूप से आंदोलन की शुरुआत की.
  • वहीं विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात भी पानी की कमी से दम तोड़ता नजर आया. इससे परेशान बस्तरवासियों ने एक बड़े जन आंदोलन की तैयारी की और 8 मई से बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए पदयात्रा की शुरुआत कर दी गई.
  • शहर की जागरूक जनता छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर स्थित भेजापदर ग्राम से जहां इंद्रावती नदी छतीसगढ़ में प्रवेश करती है. वहां स्थानीय ग्रामीणों के साथ शहरवासियों ने अभियान की शुरुआत की.
  • 'इंद्रावती बचाओ, बस्तर बचाओ' के नारे के साथ पदयात्रा इंद्रावती नदी के तट से होते हुए आगे बढ़ी और लगभग 12 दिनों तक हर दिन 5 किमी का सफर तय कर यह पदयात्रा चित्रकोट जलप्रपात पहुची जहां इस पदयात्रा का समापन किया गया.

जगदलपुर: 'नदिया किनारे, किसके सहारे' में जारी है इंद्रावती का सफर. देश में मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर बस्तर स्थित चित्रकोट वाटर फॉल को कौन नहीं जानता है. इस जलप्रपात की खूबसूरती को कम होता देख लोगों ने आंदोलन शुरू कर दिया था.

जब इंद्रावती को बचाने निकल पड़ा बस्तर

भारी गर्जना के साथ नीचे गिरता यह जलप्रपात शांत इसलिए हो गया था क्योंकि इस साल इंद्रावती नदी का जलस्तर बेहद कम हो चला है, जिसके चलते चित्रकोट जलप्रपात तक पानी ही नहीं पहुंच रहा.

इस बार सूख सा गया था चित्रकोट जलप्रपात
20 सालों से छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर पानी के हक के लिए चल रहे विवाद के बावजूद समय पर निर्णायक फैसला नहीं आने की वजह से बस्तर में गर्मी के दिनों में इंद्रावती नदी सूख जाती है और जिस वजह से चित्रकोट जलप्रपात में जलस्तर घटने के साथ बस्तर में पानी के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है. इस साल हाल ये था कि चित्रकोट वाटर फाल एकदम शांत और सूख सा गया था.

  • ओडिशा सरकार के इस रवैये से काफी सालों से बस्तरवासी घटते जलस्तर की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति काफी भयंकर हो गई.
  • विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात का अस्तित्व खतरे में होने के साथ बस्तर वासियों में भी पानी के लिए हाहाकार मचा. ऐसे में अब अपने हक की लड़ाई लड़ने बस्तरवासी लामबंद हुए.
  • सबसे पहले इंद्रावती जल संकट पर निर्णायक उपाय की मांग के साथ बस्तर के पर्यटन एवं संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली अग्रणी संस्थाओं ने आंदोलन शुरू किया. केवल चित्रकोट जलप्रपात की रक्षा नहीं बल्कि समूचे इंद्रावती नदी के अस्तित्व की रक्षा के लिए कुछ संस्था के सदस्यो ने एक दिवसीय जल सत्याग्रह किया.
  • इसके अंतर्गत संस्था के सदस्यों ने इंद्रावती नदी में घुटनों तक डूब कर जल सत्याग्रह भी किया.
  • दल के संस्थापक अविनाश प्रसाद ने जानकारी देते हुए बताया कि ओडिशा सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार दोनों ही सरकारों ने इस नदी के लिए ईमानदारी नहीं बरती. जिसके फलस्वरूप इसका खामियाजा बस्तर वासियों को और बस्तर के पर्यटन स्थल को भुगतना पड़ रहा है.
  • जिस वजह से इसके स्थाई समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाकर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया, जिसमें बस्तर के प्रबुद्ध जनों के साथ स्थानीय लोग भी मौजूद रहे.
  • जल सत्याग्रह के बाद कई सामाजिक संगठन के लोग भी आगे आए और अपने-अपने तरीके से विरोध जताने लगे.
  • फिर बस्तर के स्थानीय नागरिकों और चेंबर के सदस्यों ने इंद्रावती बचाओ मंच समिति का गठन किया. इस समिति ने इंद्रावती बचाने के लिए शुरू की गई अभियान की गतिविधियों को आगे बढ़ाया.
  • अपनी विभीन्न मांगो को लेकर जिसमें राज्य सरकार को ओडिशा सरकार से बातचीत कर इसका समाधान निकालने और जमीनी स्तर पर बस्तर के लोगों द्वारा बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी को बचाए रखने के लिए पेड़ लगाने का सुझाव और अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई.
  • समिति के सभी सदस्यों ने छत्तीसगढ़ ओडिशा सीमा से लेकर चित्रकोट तक लगभग 70 किलोमीटर का पद यात्रा की और बस्तर के लोगों ने इंद्रावती को बचाए रखने के लिए वृहद रूप से आंदोलन की शुरुआत की.
  • वहीं विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट जलप्रपात भी पानी की कमी से दम तोड़ता नजर आया. इससे परेशान बस्तरवासियों ने एक बड़े जन आंदोलन की तैयारी की और 8 मई से बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए पदयात्रा की शुरुआत कर दी गई.
  • शहर की जागरूक जनता छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर स्थित भेजापदर ग्राम से जहां इंद्रावती नदी छतीसगढ़ में प्रवेश करती है. वहां स्थानीय ग्रामीणों के साथ शहरवासियों ने अभियान की शुरुआत की.
  • 'इंद्रावती बचाओ, बस्तर बचाओ' के नारे के साथ पदयात्रा इंद्रावती नदी के तट से होते हुए आगे बढ़ी और लगभग 12 दिनों तक हर दिन 5 किमी का सफर तय कर यह पदयात्रा चित्रकोट जलप्रपात पहुची जहां इस पदयात्रा का समापन किया गया.
Intro:जगदलपुर। इंद्रावती नदी मे लगातार जलस्तर घटने की वजह से देश मे मिनी नियाग्रा के नाम से मशहूर बस्तर के चित्रकोट जलप्रपात मे भी रौनक खत्म हो गई, पहली बार एसा हुआ कि विश्व प्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात पूरी तरह से सूखता नजर आया, इस बीच आंदोलनकारियो ने इंद्रावती मे पानी की मांग को लेकर अपना आंदोलन जारी रखा, लेकिन पूरी तरह से सूख चुकी चित्रकोट जलप्रपात बस्तर के साथ साथ पूरे देश मे चर्चा का विषय बन गया, हांलाकि राज्य सरकार की किरकीरी होने के बाद स्थानीय प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्था करते हुए इंद्रावती की सहायक नदी नांरगी के दो गेट खोल दिये जिससे की चित्रकोट जलप्रपात मे पानी तो बढा लेकिन इसका स्थायी समाधान आज तक नही निकला ।


Body:वो1- बस्तर मे स्थित विश्व प्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात एक खूबसूरत पर्यटन स्थल होने के साथ धार्मिक महत्व भी रखता है, चित्रकोट ग्राम के स्थानीय पुजारी बताते है कि भगवान श्रीराम अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान इस चित्रकोट के जलप्रपात से होते हुए ही दक्षिण की दिशा मे गये थे, श्रीराम के साथ लक्ष्मण और सीता देवी भी यंहा पर स्थित प्राचीन शिवलिंग की पूजा अर्चना कर इंद्रावती नदी के पानी मे अपने पैर रखे। जिसका जिक्र इस मंदिर मे लगे सुचना पटल बोर्ड मे है। श्रीराम के पैर पडने की वजह से भी यह नदी बस्तरवासियो के लिए धार्मिक और आस्था का प्रतीक है, इसके अलावा बस्तरवासी इंद्रावती को देवी के रूप मे मानते है औऱ इस नदी की  आरती के साथ ही  पूजा अर्चना भी करते है, बस्तर के सभी घंरो मे शुभ कार्यो व मांगलिक कार्यो के दौरान सर्वप्रथम इंद्रावती देवी का उच्चारण कर नदी के पानी का पूजा अर्चना मे उपयोग किया जाता है। और बस्तरवासी इसे गंगा नदी मानते है। पुजारी का कहना है कि वे सालो से इस नदी को देखते आ रहे है और धीरे धीरे इस नदी का जलस्तर तेजी से घटते जा रहा है, और इंद्रावती नदी अपना मुल स्वरूप खोते जा रही है। और इसका मुख्य कारण उडीसा सरकार द्वारा बांध बनाया जाना और छत्तीसगढ सरकार की इस नदी के प्रति उदासिनता है।
 
बाईट1- नीतेश ठाकुर, प्रधान पुजारी
 
वो2- इंद्रावती नदी के बारे मे बस्तर के इतिहासकार डॉ सतीष बताते है कि इंद्रावती नदी मे पिछले कुछ सालो से इसके मुलस्वरूप मे काफी परिवर्तन आ गया है, जिसकी वजह उडीसा सरकार की वादाखिलाफी और छत्तीसगढ सरकार की अनदेखी है, डॉ सतीष बताते है कि पिछले कुछ सालो को अगर छोड दिया जाये तो इंद्रावती नदी का जलस्तर इतना अत्यधिक था कि जुलाई अगस्त व सिंतबर के महीने मे कई राष्ट्रीय राजमार्ग पर लबालब पानी भरा रहता था, जिससे कई दिनो तक जगदलपुर- रायपुर मार्ग प्रभावित होने के साथ कई गांव से भी संपर्क टूट जाते थे, लेकिन धीरे धीरे इस नदी का दोहन होने लगा, छत्तीसगढ के सीमा तरफ कई एनीकेट बनाये गये लेकिन देखरेख और मेटंनेंस के अभाव मे यंहा रेत जमा होने लगी और धीरे धीरे जल का जो बहाव है वह कम होने लगा । डॉ सतीष के अनुसार वर्तमान मे भी इंद्रावती का जो पानी है उसका 20 फीसदी ही सदुपयोग हो पाता है, बाकि पानी जलप्रपात के लिए छोड दिया जाता है, लेकिन भविष्य मे बस्तर के खनिज दोहन के लिए विभीन्न प्लांट और कारखाने लगाये जायेंगे और बस्तर मे आबादी भी तेजी से बढेगी ऐसे समय बस्तर मे और भी विकराल रूप से जल संकट का खतरा बढ सकता है, डॉ सतीष का कहना है कि जिस तरह बस्तर मे नक्सलवाद से निपटने के लिए प्रादेशिक सरकारो के साथ बैठक कर ठोस रणनीति बनाई गई है, वैसे ही रणनीति इंद्रावती नदी के लिए बनाया जाना चाहिए तभी इंद्रावती नदी अपने मुलस्वरूप मे लौटेगी। और बस्तरवासियो को 12 महीनो पर्याप्त पानी मिल सकेगा।
 
बाईट2- डॉ सतीष जैन, इतिहासकार        
 
वो2- इधऱ चित्रकोट जलप्रपात का नजारा देखने पंहुच रहे पर्यटको के चेहरे पर भी मायूसी साफ दिखायी दे रही है। जलप्रपात से लगातार घटते जलस्तर की वजह से अब चित्रकोट जलप्रपात मे इसकी गर्जना अब सुनाई नही देती, कई पर्यटको का कहना है कि वे कई बार चित्रकोट जलप्रपात घुमने आ चुके है, लेकिन एसी स्थिति कभी उन्होने नही देखी, विश्व प्रसिध्द चित्रकोट जलप्रपात की स्थिति इतनी बूरी कभी नही थी। पर्यटको ने कहा कि जल्द ही राज्य सरकार इस चित्रकोट के अस्तित्व को बचाने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए।
 
बाईट2- रहमान खान , पर्यटक
बाईट3- बबीता, पर्यटक
बाईट4- नीलेश , पर्यटक
वो3- चित्रकोट जलप्रपात की पूरी तरह से सूख जाने की वजह से और बस्तर के इंद्रावती बचाओ मंच के लोगो द्वारा लगातार चलाये गये इस  अभियान को मिले  भारी जनसमर्थन से  जिला प्रशासन ने  इंद्रावती नदी के मामले  को गंभीरता से लिया। बस्तर कलेक्टर अय्याज तंबोली ने इंद्रावती नदी के घटते जलस्तर को देखते हुए व मंच के लोगो की मांगो पर राज्य सरकार के निर्देश पर सर्वप्रथम नदियों का सीमांकन करते हुए नदियों में जो अतिक्रमण हुआ है उसे खाली कराने के साथ नदियों के तटों को सुरक्षित रखते हुए ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करने के दिशा निर्देश संबंधित विभाग के अधिकारियों को दिए ।बस्तर कलेक्टर ने कहा कि नदियों में आवश्यक कार्य कराने और पानी रोकने के काम को प्राथमिकता से कराने के निर्देश भी अधिकारियों को दिए गए हैं। उन्होने कहा कि  नदी में जल स्त्रोत के लिए आवश्यक कार्य करने के साथ जल संरक्षण के कार्य पर प्राथमिकता से काम शुरू किये जायेंगे।
बाईट3- अंय्याज तंबोली , कलेक्टर बस्तर
वो4- बस्तर की प्राणदायिनी इंद्रावती नदी का सुख जाना मानो बस्तर के लिए एक अभिशाप है। और यही वजह रही कि इसे लेकर प्रबुद्धजनों ने एक आंदोलन की शुरुआत की और इस आंदोलन का ही असर था कि सरकार को इंद्रावती नदी को बचाने के लिए एक प्राधिकरण का गठन करना पड़ा। छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद पहली बार जगदलपुर में बस्तर प्राधिकरण की बैठक हुई। औऱ बैठक के दौरान सबसे महत्वपूर्ण फैसला इद्रांवती विकास प्राधिकरण के गठन का था।  स्वयं मुख्यमंत्री ने माना कि इंद्रावती नदी बस्तर की  प्राणदायिनी है और इसके पुनर्जीवन के लिए इस तरह के फैसले लेने जरूरी थे।हालांकि इंद्रावती में पानी उड़ीसा से ही आना है और उड़ीसा से बात करने को लेकर मुख्यमंत्री ने केवल इतना ही कहा कि उड़ीसा से बात की जाएगी और जो कानूनी प्रक्रिया चल रही है।

बाईट4- भूपेश बघेल मुख्यमंत्री छग
 
वो 5- इंद्रावती बचाओ आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री का इंद्रावती को लेकर प्राधिकरण के गठन करने का फैसला स्वागत योग्य है ।उम्मीद है कि इससे कोई सार्थक परिणाम जरूर निकलेगा । उन्होने कहा कि चुंकि यह मसला अंतरराज्यीय है इस पर केवल एक राज्य निर्णय नहीं ले सकती इस समस्या के समाधान के लिए छत्तीसगढ़ व पड़ोसी राज्य उड़ीसा को केन्द्रीय  जल आयोग के साथ बैठकर कोई ठोस निर्णय लेना चाहिए ।केवल इंद्रावती प्राधिकरण के गठन से ही इंद्रावती को बचाया नहीं जा सकता क्योंकि इसमें दोनों ही राज्यों की प्रमुख भूमिका है इसलिए केंद्रीय जल आयोग के सहयोग से दोनों ही राज्यों को बैठकर कोई रास्ता निकालना चाहिए। जिससे कि इंद्रावती को बचाया जा सके। इधर छग सरकार ने इंद्रावती के मूलस्वरूप को लेकर सुप्रीम कोर्ट के शरण मे जाने का फैसला किया  इस पर भी वरिष्ठ वकील का कहना है कि इससे पहले भी मामला न्यायालय में जा चुका है पर कोई सार्थक परिणाम नहीं आया। उन्होने कहा कि इंद्रावती बचाओ मंच की  अभी उनके उद्देश्य की पूर्ति नहीं हुई है हालांकि इंद्रावती प्राधिकरण के गठन पर फैसला ले लिया गया है पर उनका आंदोलन अभी भी सतत चलता रहेगा।
 
बाईट5-  आनंद मोहन मिश्रा, वरिष्ठ अधिवक्ता  
 

 
 



Conclusion:क्लोसिंग पीटीसी ---------अशोक नायडू
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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