बस्तर: केद्रीय गृह मंत्रालय ने नक्सल समस्या को लेकर बड़ा खुलासा किया है. खासकर छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके बस्तर में नक्सलियों की मौजूदा रणनीति को लेकर. इस रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया है कि नक्सली संगठन छत्तीसगढ़ में छोटे बच्चों का उपयोग कैडर बढ़ाने और गुप्त सूचनाएं जुटाने के लिए कर रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से कहा गया है कि झारखंड और छत्तीसगढ़ में मौजूद सीपीआई माओवादी संगठन अपने लाभ के लिए छोटे बच्चों का भी उपयोग कर रहे हैं.
गृहमंत्रालय के इनपुट पर बस्तर आईजी ने क्या कहा ?
इस इनपुट के आधार पर ईटीवी भारत ने बस्तर के आईजी पी सुंदरराज से बात की तो उन्होंने नक्सलियों के बाल संघम को लेकर कई बाते बताई हैं. आईजी के मुताबिक अभी बस्तर के अंदरूनी इलाके में जनताना सरकार की पाठशाला चल रही है. आईजी ने बताया कि बाल संघम से नक्सल अभियान को बड़ा झटका लग रहा है. इस दलम के बच्चे नक्सल इलाकों में जवानों की गश्ती की रेकी करते हैं. इस वजह से कई मिशन में पुलिस और सुरक्षाबलों को काफी नुकसान हुआ है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के रिपोर्ट के बाद बस्तर में सुरक्षा ऐजेंसिया अलर्ट हो गई है. बाल संघम को खत्म करने के लिए पुलिस विभाग की तरफ से भी कई तरह के अभियान चलाए जा रहे हैं. ग्रामीणों से बात कर उन्हें समझाया जा रहा है कि वह बच्चों को बाल संघम के लिए नक्सलियों को न दें.
गृहमंत्रालय के इनपुट में हुए कई खुलासे
गृहमंत्रालय के इनपुट में इस बात का खुलासा हुआ है कि नक्सली संगठन ऐसे बच्चों की तलाश में रहते हैं. जिनके माता-पिता की मौत हो गई है. या फिर बच्चे का परिवार उसका खर्च उठाने में सक्षम न हो. ऐसे बच्चों को नक्सली संगठन का हिस्सा बना लिया जाता है. जिसे बाल संघम कहते हैं. ऐसे बच्चे नक्सली संगठन बाल संघम का सदस्य बनकर सुरक्षाबलों के मूवमेंट की जानकारी नक्सलियों को देते हैं. जिससे नक्सली मोर्चे पर सुरक्षा बलों को काफी नुकसान होता है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ऐसे बच्चों पर सुरक्षा बलों के जवानों और अधिकारियों को कोई शक नहीं होता. लिहाजा इस तरह नक्सलियों के लिए यह बच्चे खबरी का काम करते हैं. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन बच्चों को नक्सली बंदूक चलाने, फायरिंग करने, आईईडी को एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाने की भी ट्रेनिंग देते हैं.
बाल संघम पर क्या कहते हैं पूर्व नक्सली ?
बीजापुर जिले में लंबे समय तक नक्सलियों के एरिया कमांडर रहे और साल 2000 में पुलिस के सामने समर्पण करनेवाले इनामी पूर्व नक्सली बदरन्ना ने बाल संघम के बारे में जानकारी दी है. ईटीवी भारत से बातचीत में नक्सली बदरन्ना ने बताया कि जैसे-जैसे किशोर अवस्था के बाद बच्चे युवा अवस्था में आते हैं तो इन्हें अलग-अलग दलम में बांट दिया जाता है. इसके बाद इन्हें बंदूक चलाने और गोरिल्ला युद्ध के अलावा सभी तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. बदरन्ना ने यह खुलासा भी किया कि वर्तमान में बस्तर में जितने भी बड़े नक्सली लीडर हैं, वे बाल संघम और दलम से जुड़े रहे हैं और आज बड़े नक्सली लीडर में गिने जाते हैं. जिनमें मुख्य रुप से हिड़मा शामिल है.
बदरन्ना के मुताबिक केवल बाल संघम ही नहीं बल्कि विकलांग, दिव्यांग ग्रामीणों का भी उपयोग नक्सली अपने दलम के लिए करते हैं. समय-समय पर इनसे मदद लेते हैं. बाल संघम नक्सलियों के लिए हथियार की तरह है. अपने दलम के विस्तार के लिए नक्सलियों के लीडर किशोर अवस्था से ही बच्चों का ब्रेनवॉश कर दलम के विस्तार का पाठ पढ़ाते हैं और जल-जंगल-जमीन की बात बताते हैं.बदरन्ना ने यह भी बताया कि नक्सली बाल संघम के बच्चों से छोटे मोटे काम कराने के साथ रेकी के लिए ट्रेंड करते हैं. बाल संघम के सदस्य के तौर पर यह बच्चे सुरक्षाबलों की सारी सूचनाएं नक्सलियों को देते हैं. नक्सलियों के लिए ये सभी मुखबिरी का काम करते हैं.