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बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण, सरकार से साफ पानी की उम्मीद

आजादी के 70 साल बाद भी इस गांव में विकास की लहर नहीं पहुंच पाई है. हालात ये हैं कि ग्रामीण नाले में झरिया (गड्ढा) बनाकर पीने का पानी निकालने को मजबूर हैं.

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Published : May 6, 2019, 4:37 PM IST

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण

गरियाबंद: जिले के अति संवेदनशील इलाके में बसे खोला पारा गांव के ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. आजादी के 70 साल बाद भी इस गांव में विकास की लहर नहीं पहुंच पाई है. हालात ये हैं कि ग्रामीण नाले में झरिया (गड्ढा) बनाकर पीने का पानी निकालने को मजबूर हैं. इस भीषण गर्मी में ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण

बीहड़ इलाकों में पैदल चलने को मजबूर ग्रामीण
जिले के ब्लॉक मुख्यालय मैनपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर अति संवेदनशील ग्राम पंचायत दबनई के खोला पारा गांव की तस्वीरें सरकार के खोखले दावों की पोल खोल रही हैं. यहां के ग्रामीण बीहड़ इलाकों में पैदल चलकर पानी की तलाश कर पानी इकठ्ठा करने को मजबूर हैं. इस काम में पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं.

हैंडपंप से निकलता है आयरन युक्त पानी
ग्रामीणों ने बताया कि नदी में ज्यादा पत्थर होने के कारण वे छोटे-छोटे गड्ढे खोदते हैं. इस बीच बड़ी मुश्किल से किसी एक गड्ढे में पानी निकलता है, जिसमें से तीन लोग मिलकर पीने और अन्य उपयोग के लिए पानी निकालते हैं. ऐसा न करने पर उन्हें बूंद भर पानी भी नसीब नहीं होता है. ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में 3 हैंडपंप मौजूद हैं. लेकिन इसमें लाल और आयरन युक्त पानी निकलता है. इसे पीने से कई गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है. इसलिए वे इस पानी को हाथ तक नहीं लगाते हैं.

सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं ग्रामीण
बहरहाल सरकार की ओर से गरीबों के लिए लाखों, करोड़ों की योजनाएं संचालित की जा रही हैं. लेकिन ये योजनाएं इन गांवों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं. अब तक जिला प्रशासन और शासन की ओर से गांववालों की सुध नहीं ली गई है. लेकिन फिर भी ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि आज नहीं तो कल शासन-प्रशासन की नींद खुलेगी और वे उनकी समस्या की समाधान निकालेंगे.

गरियाबंद: जिले के अति संवेदनशील इलाके में बसे खोला पारा गांव के ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. आजादी के 70 साल बाद भी इस गांव में विकास की लहर नहीं पहुंच पाई है. हालात ये हैं कि ग्रामीण नाले में झरिया (गड्ढा) बनाकर पीने का पानी निकालने को मजबूर हैं. इस भीषण गर्मी में ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बूंद-बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीण

बीहड़ इलाकों में पैदल चलने को मजबूर ग्रामीण
जिले के ब्लॉक मुख्यालय मैनपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर अति संवेदनशील ग्राम पंचायत दबनई के खोला पारा गांव की तस्वीरें सरकार के खोखले दावों की पोल खोल रही हैं. यहां के ग्रामीण बीहड़ इलाकों में पैदल चलकर पानी की तलाश कर पानी इकठ्ठा करने को मजबूर हैं. इस काम में पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं.

हैंडपंप से निकलता है आयरन युक्त पानी
ग्रामीणों ने बताया कि नदी में ज्यादा पत्थर होने के कारण वे छोटे-छोटे गड्ढे खोदते हैं. इस बीच बड़ी मुश्किल से किसी एक गड्ढे में पानी निकलता है, जिसमें से तीन लोग मिलकर पीने और अन्य उपयोग के लिए पानी निकालते हैं. ऐसा न करने पर उन्हें बूंद भर पानी भी नसीब नहीं होता है. ग्रामीणों का आरोप है कि गांव में 3 हैंडपंप मौजूद हैं. लेकिन इसमें लाल और आयरन युक्त पानी निकलता है. इसे पीने से कई गंभीर बीमारियों का खतरा बना रहता है. इसलिए वे इस पानी को हाथ तक नहीं लगाते हैं.

सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं ग्रामीण
बहरहाल सरकार की ओर से गरीबों के लिए लाखों, करोड़ों की योजनाएं संचालित की जा रही हैं. लेकिन ये योजनाएं इन गांवों तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं. अब तक जिला प्रशासन और शासन की ओर से गांववालों की सुध नहीं ली गई है. लेकिन फिर भी ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि आज नहीं तो कल शासन-प्रशासन की नींद खुलेगी और वे उनकी समस्या की समाधान निकालेंगे.

Intro:हम मजबूर है बेबस लचार है सुन लो सरकार.... साफ पानी तो पिला दो सरकार...

एंकर : गरियाबंद जिले में आजादी के 70 साल बाद भी ऐसे गांव है जहां के ग्रामीण नरकीय जीवन जीने को मजबूर बेबस लचार है, लेकिन इनके सुध लेने वाले दूर दूर तक कोई नही !

Body:वीओ : बीहड़ इलाके के में पैदल चल कर पानी की स्रोत की तलाश कर पानी इकठ्ठा कर रहे है ये ग्रामीण है गरियाबंद जिले के ब्लॉक मुख्यालय मैनपुर से 20 किलोमीटर दूर अति संवेदनशील ग्राम पंचायत दबनई के आश्रित ग्राम खोला पारा के, इस गांव में प्रदेश के पूर्व भाजपा सरकार व वर्तमान की नई कांग्रेस सरकार की विकाश कोसो दूर है, ग्रामीण आज आजादी के 71 साल बाद भी नाला में एक झरिया बनाकर पीने योग्य पानी निकाल रहे हैं, नदी में अधिक पत्थर होने के कारण विगत 15 दिनों में छोटा छोटा 10 से 12 गड्ढा खोदने के बाद बड़ी मुश्किल से कोई एक गड्ढा में पानी निकलता है, जिसमे से तीन व्यक्ति मिल कर पीने व अन्य उपयोग के लिए पानी निकलते है,इस काम मे महिलाओं के साथ पुरुष और बच्चे भी हाथ बटाते है। ऐसा न करे तो ये शायद प्यासे ही तड़प जाए, वैसे गांव में 3 हैंडपंप है ग्रामीणों का आरोप है कि इसमें लाल एवं आयरन युक्त पानी निकलता है, जिससे पीने से कई गंभीर बीमारी होने के बाद ग्रामीण कह रहे हैं है, ग्रामीणों को इसी लिए ग्रामीणों ने कहा कि वे हैंडपंप का पानी छूते तक नही।वैसे आदिवासी एवं कमार परिवारो के विकाश और उत्थान के लिए लाखों करोड़ों की योजना सरकार द्वारा संचालित किया जाता है,पर योजना गांव तक पहुचने से पहले दम तोड़ती नजर आ रही है अब तक जिला प्रशासन व शासन के नुमाइंदों ने गांव वालों की सुध नही ली है, फिर भी ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि शासन प्रशासन की आज नही तो कल नींद खुले गी और उनके सुध लेने पहुचे गी।

Conclusion:बाइट : 01 अघंताराम नेताम - सरपंच ।

बाइट : 02 सुकडुराम : ग्रामीण ।

बाइट : 03 ग्रामीण।
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