गरियाबंद: आधुनिकता की अंधी दौड़ व उसकी चकाचौंध ने कुछ पारंपरिक व्यवसायों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है. जो रही-सही कसर बाकी थी वो कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन ने पूरी कर दी.
लॉकडाउन ने बंद किया व्यवसाय
इस समय कुम्हारों पर सबसे बड़ी मार लॉकडाउन के कारण पड़ी है, जो समय उनके व्यवसाय का सबसे अच्छा समय होता है उसी समय में उनका व्यवसाय पूरा ठप हो गया है. गर्मी के कारण ना तो शादियां हो रही हैं और ना ही इनके घड़े बिक रहे हैं, जिससे कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी की दिक्कत खड़ी हो गई है.
न घड़े बिक रहे ना शादी-ब्याह हो रहे
फ्रिज ने कुम्हारों के व्यवसाय को काफी प्रभावित किया है. मुख्यत: घड़े बनाकर बेचने का काम करने वाले कुम्हार शादी-ब्याह के दौरान मिट्टी के कई पारंपरिक बर्तन और दूसरी कई चीजें बना लेते थे, जिससे गर्मी और शादी के सीजन में इनका व्यापार अच्छा चल जाता था और दीवाली तक इनका खर्चा निकल जाता था. लेकिन इस बार गर्मी के मौसम में ना तो घड़े बिक रहे हैं और ना ही शादियां हो रही हैं जिससे कुम्हार खून के आंसू रो रहा है. वहीं गर्मी में कई सार्वजनिक स्थानों में प्याऊ केंद्र खोले जाते थे जिनके लिए भी बड़ी मात्रा में घड़े ले जाए जाते थे लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण वो भी बंद हो गए हैं.
मिट्टी की भी समस्या
इन सबके अलावा अपनी परंपरा को बनाए रखने के लिए कुम्हारों को मिट्टी की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है. मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के लिए अच्छी काली मिट्टी की जरूरत होती है, जो पहले कई जगह मिला करते थी लेकिन अब ज्यादातर जगहों पर इमारतें खड़ी हो चुकी हैं, जिससे कुम्हारों को मिट्टी के लिए काफी दूर जाना पड़ता है. कुम्हार सरकार से इस लॉकडाउन में मदद की गुहार लगा रहे हैं ताकि उनके बाल-बच्चे भूखे ना रहें और किसी तरह ये मुश्किलों भरा वक्त गुजर जाए.