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गरियाबंद में एक और किडनी मरीज की गई जान, मौतों का आंकड़ा 82 पहुंचा - सुपेबेड़ा में साफ पानी की दिक्कत

गरियाबंद के सुपेबेड़ा में किडनी मरीजों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा (one more kidney patient died in supebeda of Gariaband) है. सरकारें आई और गई लेकिन सुपेबेड़ा की किस्मत नहीं (Kidney patient Lalita Sonwani dies in Supebeda) बदली. आज भी यहां के लोग दूषित पानी की वजह से किडनी की बीमारी के शिकार हो रहे हैं. शुक्रवार को एक बार फिर एक किडनी मरीज की मौत हो गई. अब तक यहां 82 लोगों की जान किडनी की बीमारी से जा चुकी (Supebeda kidney patient news) है.

one more kidney patient died in supebeda of Gariaband
गरियाबंद में एक और किडनी मरीज की गई जान
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Published : Jul 29, 2022, 8:20 PM IST

गरियाबंद: गरियाबंद के सुपेबेड़ा में एक और किडनी मरीज की मौत हो गई है. मृतिका का नाम ललिता सोनवानी (one more kidney patient died in supebeda of Gariaband) है. इनका इलाज रायपुर एम्स में चल रहा था. अब तक गरियाबंद के सुपेबेड़ा में 82 किडनी मरीजों की मौत हो चुकी (Kidney patient Lalita Sonwani dies in Supebeda) है. इस मौत से सुपेबेड़ा में दहशत का माहौल है. यहां पर तेल नदी से स्वच्छ पेयजल आपूर्ति करने की बात सरकार की तरफ से की गई थी. लेकिन वह पूरी नहीं हुई है. एक आंकड़े के मुताबिक अभी भी सुपेबेड़ा में किडनी के 100 से ज्यादा (Supebeda kidney patient news) मरीज हैं.

15 जुलाई 2022 को भी गई थी एक किडनी मरीज की जान: इससे पहले 15 जुलाई 2022 को एक किडनी मरीज की मौत हुई थी. लखन आडिल किडनी की बीमारी से ग्रसित था. उसने डायलिसिस कराने से मना कर दिया था. बिना डायलिसिस के उसकी मौत हो गई.

बीते 8 साल में 82 किडनी मरीजों की हुई मौत: किडनी की बीमारी से प्रभावित गरियाबंद के सुपेबेड़ा गांव की अबतक ना तस्वीर बदली और ना ग्रामीणों की तकदीर बदली है. सुपेबेड़ा में आज भी किडनी की बीमारी से मौतों का सिलसिला जारी है. बीते आठ साल में करीब 82 किडनी मरीजों की मौत हो गई.

ये भी पढ़ें: सुपेबेड़ा: किडनी की बीमारी से एक और मौत, सीएमएचओ ने की पुष्टि

सुपेबेड़ा में साफ पानी की दिक्कत: सुपेबेड़ा में अब तक पीने के साफ पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है. जिस वजह से किडनी की बीमारी यहां लगातार बढ़ती जा रही है और लोगों को बेमौत मरना पड़ रहा है. सुपेबेड़ा में मौतों को रोकने के लिए सरकार ने दावे तो बहुत किए लेकिन बघेल सरकार के बड़े मंत्रियों की घोषणा के बाद भी यहां के हालात नहीं बदले. सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी सुपेबेड़ा में तेल नदी से साफ पानी की सप्लाई नहीं हो पाई है. सुपेबेड़ा में फ्लोराइड और आरसेनिक रिमूवल प्लांट भी मौतों के सिलसिले को नहीं रोक पा रहा है. कई लोग तो आज भी हैंडपंप और झिरिया का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. शासन के लाख प्रयास के बावजूद सुपेबेड़ा में हालात नहीं बदले हैं.

गरियाबंद: गरियाबंद के सुपेबेड़ा में एक और किडनी मरीज की मौत हो गई है. मृतिका का नाम ललिता सोनवानी (one more kidney patient died in supebeda of Gariaband) है. इनका इलाज रायपुर एम्स में चल रहा था. अब तक गरियाबंद के सुपेबेड़ा में 82 किडनी मरीजों की मौत हो चुकी (Kidney patient Lalita Sonwani dies in Supebeda) है. इस मौत से सुपेबेड़ा में दहशत का माहौल है. यहां पर तेल नदी से स्वच्छ पेयजल आपूर्ति करने की बात सरकार की तरफ से की गई थी. लेकिन वह पूरी नहीं हुई है. एक आंकड़े के मुताबिक अभी भी सुपेबेड़ा में किडनी के 100 से ज्यादा (Supebeda kidney patient news) मरीज हैं.

15 जुलाई 2022 को भी गई थी एक किडनी मरीज की जान: इससे पहले 15 जुलाई 2022 को एक किडनी मरीज की मौत हुई थी. लखन आडिल किडनी की बीमारी से ग्रसित था. उसने डायलिसिस कराने से मना कर दिया था. बिना डायलिसिस के उसकी मौत हो गई.

बीते 8 साल में 82 किडनी मरीजों की हुई मौत: किडनी की बीमारी से प्रभावित गरियाबंद के सुपेबेड़ा गांव की अबतक ना तस्वीर बदली और ना ग्रामीणों की तकदीर बदली है. सुपेबेड़ा में आज भी किडनी की बीमारी से मौतों का सिलसिला जारी है. बीते आठ साल में करीब 82 किडनी मरीजों की मौत हो गई.

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सुपेबेड़ा में साफ पानी की दिक्कत: सुपेबेड़ा में अब तक पीने के साफ पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है. जिस वजह से किडनी की बीमारी यहां लगातार बढ़ती जा रही है और लोगों को बेमौत मरना पड़ रहा है. सुपेबेड़ा में मौतों को रोकने के लिए सरकार ने दावे तो बहुत किए लेकिन बघेल सरकार के बड़े मंत्रियों की घोषणा के बाद भी यहां के हालात नहीं बदले. सरकार के तीन साल बीत जाने के बाद भी सुपेबेड़ा में तेल नदी से साफ पानी की सप्लाई नहीं हो पाई है. सुपेबेड़ा में फ्लोराइड और आरसेनिक रिमूवल प्लांट भी मौतों के सिलसिले को नहीं रोक पा रहा है. कई लोग तो आज भी हैंडपंप और झिरिया का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं. शासन के लाख प्रयास के बावजूद सुपेबेड़ा में हालात नहीं बदले हैं.

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