गरियाबंद: छत्तीसगढ़ में धर्म की नगरी कहलाने वाले राजिम में कई विशेष मंदिर हैं, इनमें कुलेश्वर मंदिर की प्रदेश के साथ ही देश भर में मान्यता है. मंदिर पैरी-सोढुर और महानदी के मिलन स्थान अर्थात प्रशिद्ध त्रिवेणी संगम पर स्थित है. मंदिर कई मायनों में अनोखा है, इसे पंचमुखी महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. तीन नदियों के संगम में होने के साथ ही खास बात यह है कि प्रदेश के 3 जिलों की सीमा इस मंदिर को छूती है जिसमें गरियाबंद धमतरी और राजधानी रायपुर शामिल हैं.
कहते हैं कि, नदियां पर्वतों का सीना चीरकर रास्ता बना लेती हैं, बड़ी से बड़ी चट्टान भी नदियों के बहाव के आगे टिक नहीं पाती, लेकिन गरियाबंद जिले के राजिम में तीन नदियों में आने वाली भयंकर बाढ़ भी संगम के बीच स्थित कुलेश्वर मंदिर को सदियों से 1 इंच भी नहीं हिला सकी है.
क्या है मान्यताएं
मान्यता है कि वनवास के वक्त भगवान राम के साथ माता सीता ने खुद अपने हाथों से यहां शिवलिंग का निर्माण किया था. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण लोमस ऋषि आश्रम में ठहरे थे. इस दौरान माता सीता ने भोलेनाथ की पूजा के लिए अपने हाथों से पंचमुखी शिवलिंग तैयार किया था.
रामायण काल की मान्यता
इसके नाम को लेकर दो अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं. बताया जाता है कि, शिवलिंग का नाम उत्पल ईश्वर था जो बाद में बदलकर कुलेश्वर हो गया. वहीं यह भी मान्यता है कि माता सीता ने कुल की रक्षा करने के लिए शिवलिंग बनाया था लिहाजा श्रीराम ने शिवलिंग को कुलेश्वर महादेव नाम दिया था, जो आज तक प्रचलन में है.
राजिम पुन्नी मेला के साथ-साथ सावन में भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. यहां आने वाले श्रद्धालु अपने आप को भक्ति भाव से परिपूर्ण पाते हैं मंदिर की मान्यता और ख्याति दूर-दूर तक फैली है यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के बाहर से भी इस मंदिर में दर्शन करने श्रद्धालु पहुंचते हैं. इस मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ी होने की वजह से लोगों की आस्था है.
सदियों पहले निर्माण
जानकार बताते हैं कि तीनों नदियों में कितनी भी बाढ़ आ जाए मंदिर के फर्श से ऊपर पानी कभी नहीं आता. यह अद्भुत है साथ ही अकल्पनीय है लेकिन सत्य है. दूर दूर तक फैलती मंदिर की ख्याति के कारण हर साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है. मंदिर के भीतर नजर आने वाली कलाकृतियां स्तंभ और मंदिर की निर्माण शैली देखकर पता चलता है कि 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच इसका निर्माण किया गया.