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कहानी उस बच्ची की, जिसके हौसले को कुदरत की मार और सिस्टम की बेरुखी भी नहीं डिगा पाई - गरियाबंद बच्ची की कहानी

कुदरत ने छाया के पैरों की ताकत भले ही छीन ली हो, लेकिन हौसलों के पंख कमजोर नहीं पड़े हैं. छाया डॉक्टर बनना चाहती है. बेटी के ख्वाब को पूरा करने के लिए 6 लोगों का परिवार होने के बाद भी पिता ने अपना काम-काज छोड़ दिया

छाया
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Published : Sep 14, 2019, 6:17 PM IST

Updated : Sep 15, 2019, 4:22 PM IST

गरियाबंद : ट्रायसिकल पर बैठी इस मासूम का नाम है छाया. गरियाबंद के धुरवापारा की रहने वाली इस बच्ची की उम्र मात्र 11 साल है. कुदरत ने इसके पैरों की ताकत भले ही छीन ली हो, लेकिन हौसलों के पंख कमजोर नहीं पड़े हैं. छाया डॉक्टर बनना चाहती है. बेटी के ख्वाब को पूरा करने के लिए 6 लोगों का परिवार होने के बाद भी पिता ने अपना काम-काज छोड़ दिया, वो खुद हर रोज बेटी की ट्राइसाइकल को को सहारा देते हुए स्कूल पहुंचाते हैं. शाम को स्कूल की छुट्टी के बाद छाया को वापस घर लेकर आते हैं. बावजूद इसके उन्हें यह डर सताता रहता है कि, उनकी नन्ही परी के यह सपने कहीं सपने बन कर न रह जाएं.

छाया डॉक्टर बनना चाहती है, देखें कहानी

छाया के पिता कहते हैं की वे लगातार कई बार छाया की मदद के लिए सरकार से गुहार लगा चुके हैं. पंचायत सचिव को 2 से 3 बार आवेदन दे चुके हैं. दिव्यांग पात्र होने के बाद भी छाया को योजना का लाभ नहीं मिल रहा है.

सरकार दिव्यांगों के लिए दर्जनों योजनाएं चलाने का दावा करती है, लेकिन मदद के नाम पर अगर अब तक छाया को सिस्टम से कुछ मिला है तो वो ट्रायसिकल. दिव्यांगों का इलाज, पेंशन और अलग राशन देना सरकार की पहली प्राथमिकता में शामिल है, लेकिन अफसोस पात्र होने के बाद भी छाया के परिवार को इसका फायदा नहीं मिल रहा है.

पढे़ं : स्कूल से ले उड़े बायोमैट्रिक मशीन और प्रोजेक्टर, नहीं समझ पाए इस्तेमाल तो नाले में फेंका

लापरवाही किसने की अब ये तो सिस्टम में बैठे हुक्मरान ही बता सकते हैं, लेकिन अगर सिस्टम में जल्द कोई सुधार नहीं किया गया, तो कहीं एक दिन छाया जैसे मासूम कहीं सपना देखना ही न छोड़ दें.

गरियाबंद : ट्रायसिकल पर बैठी इस मासूम का नाम है छाया. गरियाबंद के धुरवापारा की रहने वाली इस बच्ची की उम्र मात्र 11 साल है. कुदरत ने इसके पैरों की ताकत भले ही छीन ली हो, लेकिन हौसलों के पंख कमजोर नहीं पड़े हैं. छाया डॉक्टर बनना चाहती है. बेटी के ख्वाब को पूरा करने के लिए 6 लोगों का परिवार होने के बाद भी पिता ने अपना काम-काज छोड़ दिया, वो खुद हर रोज बेटी की ट्राइसाइकल को को सहारा देते हुए स्कूल पहुंचाते हैं. शाम को स्कूल की छुट्टी के बाद छाया को वापस घर लेकर आते हैं. बावजूद इसके उन्हें यह डर सताता रहता है कि, उनकी नन्ही परी के यह सपने कहीं सपने बन कर न रह जाएं.

छाया डॉक्टर बनना चाहती है, देखें कहानी

छाया के पिता कहते हैं की वे लगातार कई बार छाया की मदद के लिए सरकार से गुहार लगा चुके हैं. पंचायत सचिव को 2 से 3 बार आवेदन दे चुके हैं. दिव्यांग पात्र होने के बाद भी छाया को योजना का लाभ नहीं मिल रहा है.

सरकार दिव्यांगों के लिए दर्जनों योजनाएं चलाने का दावा करती है, लेकिन मदद के नाम पर अगर अब तक छाया को सिस्टम से कुछ मिला है तो वो ट्रायसिकल. दिव्यांगों का इलाज, पेंशन और अलग राशन देना सरकार की पहली प्राथमिकता में शामिल है, लेकिन अफसोस पात्र होने के बाद भी छाया के परिवार को इसका फायदा नहीं मिल रहा है.

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लापरवाही किसने की अब ये तो सिस्टम में बैठे हुक्मरान ही बता सकते हैं, लेकिन अगर सिस्टम में जल्द कोई सुधार नहीं किया गया, तो कहीं एक दिन छाया जैसे मासूम कहीं सपना देखना ही न छोड़ दें.

Intro:स्लग---सिस्टम पर सवाल
एंकर---सरकार के लिए योजनाएं बनाना काफी नही है, बल्कि उनका सही ढंग से संचालित करना भी बहुत जरूरी है, वरना अच्छी से अच्छी योजना पर भी सवाल खडे हो जाते है।
Body:वीओ 1----वैसे तो सरकार दिव्यांगो के लिए दर्जनों योजनाएं संचालित करने का दावा करती है और उन्हें आगे बढाने के लिए हर स्तर पर मदद दिलाने का भरोसा भी देती है, मगर गरियाबंद के धुरवापारा की 11 वर्षीय दिन्यांग छाया ध्रुव को देखकर कतई नही लगता कि सरकार के दावो में कोई सच्चाई है, क्योंकि सरकार से मदद के नाम पर छाया को अबतक केवल एक ट्रायसिकल मिला है, वो भी दो साल पहले, जिस पर बैठकर वह स्कूल पढने जाती है, जबकि दिव्यांगो का ईलाज, पेंशन और अलग राशन देना सरकार की पहली प्राथमिकता में शामिल है, गरीब परिवार से होने के कारण छाया के लिए इन तीनों योजनाओं का लाभ मिलना बहुत जरुरी था, मगर लाख कौशिशों के बाद भी नही मिल पाया।
बाइट 1---छाया, पीडिता..........
बाइट 2---मुलेश्वर, पिता............
वीओ 1----छाया पढ लिखकर डॉक्टर बनाना चाहती है, पिता मुलेश्वर उसका ये सपना तो पुरा करना चाहता है, उसके कंधो पर अपने परिवार के 6 सदस्यों के भरण पोषण की जिम्मेदारी है, फिलहाल मुलेश्वर का ज्यादातर समय बेटी को स्कूल छोडने और लाने में ही बीत रहा है जिसके चलते वह मजदूरी भी नही कर पा रहा है, बेटी के प्रति बाप के इस प्रेम से धुरवापारा के लोग भी बहुत प्रभावित है, वे भी चाहते है कि छाया को सरकारी मदद मिले जिससे उसका सपना पुरा हो सके और उनके पिता के कंधो से कुछ बोझ हलका हो जाये, पंचायत सचिव भी उनके आवेदन को कई बार उच्चाधिकारियों तक पहुंचा चुका है, मगर अबतक सफलता नही मिली।
बाइट 3---ग्रामीण...........
बाइट 4---पंचायत सचिव.............
Conclusion:फाईनल वीओ----प्रात्र होने के बाद भी छाया को योजना का लाभ क्यों नही मिला, लापरवाही किसने की अब ये तो सिस्टम में बैठे जिम्मेदार ही बता सकते है मगर इतना साफ है कि जब इस तरह के मामले सामने आते है तब लोग सिस्टम को नही सरकार को जिम्मेदार मानते है।
Last Updated : Sep 15, 2019, 4:22 PM IST
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