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लचकेरा गांव में 'देवदूत' पक्षियों का डेरा, अच्छी बारिश और फसल का देते हैं संकेत - एशियन ओपन बिल स्ट्रोक

मानसून के आने के साथ ही एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी भी लचकेरा गांव में प्रजनन के लिए पहुंच रहे हैं. इन पक्षियों के दिखते ही ग्रामीण खेती किसानी और बोआई का काम शुरू कर देते हैं. गांव वालों का मानना है कि इन्हीं पक्षियों के कारण बीते कई सालों से न तो गांव में अकाल पड़ा है और न ही किसी तरह की महामारी फैली है.

एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी
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Published : Jun 24, 2019, 10:42 AM IST

गरियाबंद: जिला मुख्यालय से 80 किलोमाटर दूर बसा लचकेरा गांव में इन दिनों प्रवासीय पक्षियों ने डेरा जमाया है. मानसून के आने के साथ ही एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी भी लचकेरा गांव में प्रजनन के लिए पहुंच रहे हैं. बारिश बढ़ने के साथ ही इन पक्षियों की संख्या में बढ़ोतरी होने की संभावना जताई जा रही है. ग्रामीण इन पक्षियों को देवदूत मानते हैं और इन्हें शुभ मानते हुए खेती का काम शुरू करते हैं.

लचकेरा गांव में एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का डेरा

ग्रामीणों का मानना है कि इन पक्षियों का बड़ी संख्या में आना अच्छे मानसून का संकेत है. इन पक्षियों के दिखते ही ग्रामीण खेती किसानी और बोआई का काम शुरू कर देते हैं. गांव वालों का मानना है कि इन्हीं पक्षियों के कारण बीते कई सालों से न तो गांव में अकाल पड़ा है और न ही किसी तरह की महामारी फैली है. लचकेरा गांव में ये पक्षी पीपल, आम और इमली जैसे पेड़ों पर अपना आशियाना बनाते हैं.

1000 रुपए अर्थदंड का प्रावधान
पक्षियों के आने से अच्छी फसल और अच्छी बारिश होती है. ग्रामीण बताते हैं कि इन पक्षियों के सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. इनहें नुकसान पहुंचाने वालों के लिए 1000 रुपए का अर्थदंड का भी प्रावधान रखा गया है. वहीं इनकी सूचना देने वालों को 300 रुपए का इनाम भी दिया जाता है. पूरे गांव में इनकी संख्या लगभग 5 हजार से भी ज्यादा है. वहीं आने वाले समय में इनकी संख्या और 8 से 10 हजार होने की संभावना है.

ग्रामीण बताते हैं कि ये पक्षी मानसून के समय इस गांव में आते हैं और दीपावली के समय यहां से पलायन कर जाते हैं. ये पक्षी गांव में कब से आ रहे हैं, इसकी जानकारी ग्रामीणों को भी नहीं है, लेकिन वे इन्हें बचपन से देखते आ रहे हैं. प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है. ये पक्षी बांग्लादेश, कंबोड़िया, चीन, आलोस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलेंड और वियतनाम में बहुतायात में पाये जाते हैं.

नदियों के आस-पास के पेड़ों पर डालते हैं डेरा
एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का प्रजनन काल जुलाई से शुरू होता है. प्रजनन के लिए यह पक्षी उन स्थानों की तलाश करते हैं, जहां पानी और पर्याप्त आहार मौजूद हो. छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी और उनकी सहायक नदियों के आस-पास के गांवों में देखे जाते हैं. ये पक्षी आहार में खेतों में लगे कीड़ों को खाते हैं. इससे जमीन की गुणवत्ता बढ़ जाती है और फसल अच्छी होती है.

गरियाबंद: जिला मुख्यालय से 80 किलोमाटर दूर बसा लचकेरा गांव में इन दिनों प्रवासीय पक्षियों ने डेरा जमाया है. मानसून के आने के साथ ही एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी भी लचकेरा गांव में प्रजनन के लिए पहुंच रहे हैं. बारिश बढ़ने के साथ ही इन पक्षियों की संख्या में बढ़ोतरी होने की संभावना जताई जा रही है. ग्रामीण इन पक्षियों को देवदूत मानते हैं और इन्हें शुभ मानते हुए खेती का काम शुरू करते हैं.

लचकेरा गांव में एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षियों का डेरा

ग्रामीणों का मानना है कि इन पक्षियों का बड़ी संख्या में आना अच्छे मानसून का संकेत है. इन पक्षियों के दिखते ही ग्रामीण खेती किसानी और बोआई का काम शुरू कर देते हैं. गांव वालों का मानना है कि इन्हीं पक्षियों के कारण बीते कई सालों से न तो गांव में अकाल पड़ा है और न ही किसी तरह की महामारी फैली है. लचकेरा गांव में ये पक्षी पीपल, आम और इमली जैसे पेड़ों पर अपना आशियाना बनाते हैं.

1000 रुपए अर्थदंड का प्रावधान
पक्षियों के आने से अच्छी फसल और अच्छी बारिश होती है. ग्रामीण बताते हैं कि इन पक्षियों के सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. इनहें नुकसान पहुंचाने वालों के लिए 1000 रुपए का अर्थदंड का भी प्रावधान रखा गया है. वहीं इनकी सूचना देने वालों को 300 रुपए का इनाम भी दिया जाता है. पूरे गांव में इनकी संख्या लगभग 5 हजार से भी ज्यादा है. वहीं आने वाले समय में इनकी संख्या और 8 से 10 हजार होने की संभावना है.

ग्रामीण बताते हैं कि ये पक्षी मानसून के समय इस गांव में आते हैं और दीपावली के समय यहां से पलायन कर जाते हैं. ये पक्षी गांव में कब से आ रहे हैं, इसकी जानकारी ग्रामीणों को भी नहीं है, लेकिन वे इन्हें बचपन से देखते आ रहे हैं. प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है. ये पक्षी बांग्लादेश, कंबोड़िया, चीन, आलोस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलेंड और वियतनाम में बहुतायात में पाये जाते हैं.

नदियों के आस-पास के पेड़ों पर डालते हैं डेरा
एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का प्रजनन काल जुलाई से शुरू होता है. प्रजनन के लिए यह पक्षी उन स्थानों की तलाश करते हैं, जहां पानी और पर्याप्त आहार मौजूद हो. छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी और उनकी सहायक नदियों के आस-पास के गांवों में देखे जाते हैं. ये पक्षी आहार में खेतों में लगे कीड़ों को खाते हैं. इससे जमीन की गुणवत्ता बढ़ जाती है और फसल अच्छी होती है.

Intro:एंकर - etv भारत आज आपको इन देवदूतों की रोचक कहानी बताने जा रहा है....गरियाबंद जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूरी में बसा ग्राम पंचायत लचकेरा इन दिनों प्रवासी पक्षियों के कलरव से गुंजायमान होने लगा है... लचकेरा में प्रजनन के लिए एशियन ओपन बिल स्ट्रोक ने एक बार फिर दस्तक दे दिया है.....बारिश बढ़ने पर इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में और वृद्घि होने का अनुमान लगाया जा रहा है....इन पक्षियों का अधिक संख्या में गांव में आना अच्छे मानसून का संकेत है...जिसे देखते ही गांव वाले मानसून की खेती किसानी और बोवाई का काम शुरू कर देते हैं....यहीं नहीं इन प्रवासी पक्षियों को गांव वाले देवदूत की तरह मानते हैं...और इनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं... इनकी सुरक्षा को लेकर गांव वाले इतने गंभीर है कि इन्हें नुकसान पहुंचाने वालों पर बकायदा दंड भी लगा दिया जाता है... देखिये ये रिपोर्ट.... गांव वालों का मानना है कि इन्हीं पक्षियों के कारण बीते कल सालों से ना तो इनके गांव में अकाल पड़ा है ना कोई बीमारी महामारी फैली है और तो और इनके कारण ही इस गांव के सभी खेतों में अच्छी फसल हर बार आती है जिसके चलते ही गांव वाले इन्हें देवदूत मानते हैं और इनकी सुरक्षा के लिए तत्पर रहते हैं


Body:वीओ 1 - गरियाबंद जिले की सीमा पर बसा गांव लचकेरा इन दिनों यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों के आगमन और उनकी अधिक संख्या को लेकर हर्षित है....जून माह के मध्य से ही इन पक्षियों का आगमन इस लचकेरा गांव में में होने लगता है...और जैसे जैसेबारिश अधिक होगी,नदियों में पानी का बहाव बढ़ेगा तो इसकी संख्या में लगातार वृद्घि होती जाएगी....लचकेरा गांव के पीपल, आम, कहुआ, इमली का पेड़ इन पक्षियों का बसेरा होता है....पूरे गांव में लगभग 5 हजार से भी ज्यादा इन
पक्षियों की मौजूदगी है और आने वाले समय में इनकी संख्या और 8 से 10 हजार हो जाएगी...ग्रामीणों की माने तो मानसून के पहले ही इन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है...जो मानसून का शुभ संकेत लेकर आते हैं....इन पक्षियों का नाम एशियन ओपन बिल स्ट्रोक है....जो गांव में प्रजनन के लिए आते हैं....और दिपावली के बाद गांव से स्वत ही चले जाते है....ये पक्षी गांव में कब से आ रहे हैं, इसकी जानकारी ग्राम के किसी भी ग्रामीण को नहीं है.... ग्रामवासियों से चर्चा करने पर बताया कि वे बचपन से ही इन्हे देख रहे हैं...

वीओ--गांव वाले इन पक्षियों को देवदूत की तरह मानते हैं जिनके आने से गांव में अच्छी फसल और अच्छी बारिश होती है...गांव वाले 6 से 7 माह तक गांव में रहने वाले इन पक्षियों की देखभाल भली भांति करते है...गांव वालों ने इनकी निगरानी रखते हैं और इन्हें नुकसान पहुंचाने वालों के लिए अर्थदंड का भी प्रावधान रखा है....ग्रामीणों ने बताया कि यदि कोई भी व्यक्ति इन पक्षियों को मारता है तो उसे बस्ती फंड में दंड स्वरूप 1000 रुपए देना होता है और
जो इसकी सूचना देता है उसे इनाम स्वरूप 300 रुपए दिया जाता है....साथ ही कोई व्यक्ति बार बार यह अपराध करता है तो स्थानीय बस्ती समिति द्वारा उस व्यक्ति के खिलाफ थाने में अपराध दर्ज करवाने की चेतावनी भी बस्ती के लोगों ने गांव समेत आसपास के लोगों को दे रखी है...


बाइट 1 - पन्ना सिह (स्थानीय ग्रामीण) गुलाबी शर्ट




वीओ 2 - प्रवासी पक्षी एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का वैज्ञानिक नाम एनास्टोमस ओसिटेंस है....यह पक्षी बांग्लादेश,कंबोडिया, चीन, भारत, आलोस, मलेशिया, म्यामार, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, थाईलैण्ड व वियतनाम में बहुतायत मात्रा में पाई जाती है....प्रायः अन्य पक्षियों की तरह इस पक्षी का प्रजनन काल भी जुलाई माह में प्रारंभ होता है...प्रजनन के लिए यह पक्षी प्रायः उन स्थानों की तलाश करते हैं, जहां पानी और पर्याप्त आहार की उपलब्धता हो...छत्तीसगढ़ में यह पक्षी प्रायः महानदी और उनकी सहायक नदियों के आसपास के गांवों में देखे जाते हैं....छत्तीसगढ़ में ऐसे करीब 10 से 12 गांव ही है जहां ये पक्षी रहने तैयार होते हैं....ये पक्षी गांव के बबूल, पीपल, बरगद व इमली के पेड़ों मेंघोसला बनाकर रहते हैं...इसके साथ ही ये प्रणय क्रिया भी जारी रखते हैं....जुलाई माह आते मादा पक्षी घोसला में अण्डा दे देती है और फिर कुछ समय बाद जब नन्हें पक्षी बाहर आते है तो पूरा गांव नए मेहमानों के कलरव से गूंजायमान होने लगता है....

बाइट 2 - भागवत ध्रुव ( स्थानीय ग्रामीण)

बाइट 3 - नंदलाल ठाकुर स्थानीय ग्रामीण)
बाइट 4 - ज्ञान सिंह ध्रुव ( स्थानीय ग्रामीण)


Conclusion:फाइनल वीओ 3 - लचकेरा गांव में प्रजनन के लिए पहुंचे प्रवासी पक्षियों एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का खास आहार
मछली, घोंघा, केकड़ा और अन्य कीट होते हैं...प्रवासीय पक्षी इन सभी जीव-जन्तुओं को भोजन के रूप में लेते हैं...हीं नहीं गांव के खेतों के कीटों को भी ये पक्षी चुन-चुनकर खा जाते हैं...जिससे गांव के किसी भी किसान के खेतों की फसल में कोई बीमारी नहीं लगती...और हर साल किसानों को फसल में अच्छा मुनाफा होता है....किसानों की माने तो इन्ही देवदूतों के कारण आज तक गांव में ना ही बिमारी आई और ना की अकाल पड़ा....मानसून का शुभ संदेश लेकर पहुंचे इन प्रवासी पक्षियों के कलरव से अब दिपावली तक लचकेरा गांव गुंजायमान होते रहेगा....
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