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मजदूर दिवस पर दुर्ग में बोरे बासी उत्सव: अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने खाई बोरे बासी

छत्तीसगढ़ में बोरे बासी खाकर लोगों ने मजदूर दिवस मनाया. दुर्ग में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने भी बोरे बासी खाकर इस दिन को यादगार बना दिया. दुर्ग में एक तरह से लोगों ने बोरे बासी उत्सव मनाया.

bore basi festival in durg
दुर्ग में बोरे बासी उत्सव
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Published : May 1, 2022, 7:06 PM IST

दुर्ग: छत्तीसगढ़ में पहली बार मजदूर दिवस कुछ अलग तरह से मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की जनता से बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाने की अपील की थी. इसके बाद सोशल मीडिया पर संदेशों की लाइन लगी हुई है. दरअसल चावल को जब पानी में डुबोकर खाया जाता है तो उसे बोरे कहते हैं. उस बोरे को दूसरे दिन खाने पर यह बासी कहलाता है. इस बार मजदूर दिवस पर दुर्ग में भी बोरे बासी उत्सव मनाया गया. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मजदूरों के साथ बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाया.

bore basi festival in durg
बोरे बासी खाते अधिकारी

अधिकारी और कर्मचारियों ने खाई बोरे बासी: मजदूर दिवस पर दुर्ग में हर तबके के लोग बोरे बासी खा रहे हैं. दुर्ग रेंज के आईजी बद्री नारायण मीणा भी बोरे बासी खाते नजर आए. वहीं दुर्ग में एसपी अभिषेक पल्लव ने अपने अधिकारियों के साथ बोरे बासी खाया. तो वही दुर्ग कलेक्टर डॉक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने भी अपने परिवार के साथ बोरे बासी खाकर मजदूरों का सम्मान किया.

bore basi festival in durg
बोरे बासी उत्सव

ऐसे बनता है बोरे बासी: बोरे और बासी बनाना बहुत ही सरल है. न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी की. खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है. बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है. यहां बोरे और बासी इसलिए कहा जाता है क्योंकि मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है. बोरे से अर्थ, जहां तुरन्त पके हुवे चावल को पानी में डूबाकर खाना है. वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर चावल को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है. फिर बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं.

मजदूर दिवस पर बोरे बासी उत्सव: सीएम भूपेश बघेल ने मजदूरों के साथ खाई बोरे बासी


बोरे बासी के साथ प्याज,अचार से बढ़ता है स्वाद: बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परम्परा रही है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है. वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी बोरे बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं. दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है. इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है. इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दोगुना हो जाता है.

अबूझमाड़ में तैनात जवानों ने कहा: धन्यवाद सीएम सर, आपने बचपन और घर की याद दिला दी



गर्मी में बोरे-बासी खाने से शरीर को मिलता है लाभ: बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लेकिन लाभ कई हैं. इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है. जिसके कारण गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है. इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है. बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है. गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह बोरे बासी रामबाण है.

दुर्ग: छत्तीसगढ़ में पहली बार मजदूर दिवस कुछ अलग तरह से मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की जनता से बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाने की अपील की थी. इसके बाद सोशल मीडिया पर संदेशों की लाइन लगी हुई है. दरअसल चावल को जब पानी में डुबोकर खाया जाता है तो उसे बोरे कहते हैं. उस बोरे को दूसरे दिन खाने पर यह बासी कहलाता है. इस बार मजदूर दिवस पर दुर्ग में भी बोरे बासी उत्सव मनाया गया. अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मजदूरों के साथ बोरे बासी खाकर मजदूर दिवस मनाया.

bore basi festival in durg
बोरे बासी खाते अधिकारी

अधिकारी और कर्मचारियों ने खाई बोरे बासी: मजदूर दिवस पर दुर्ग में हर तबके के लोग बोरे बासी खा रहे हैं. दुर्ग रेंज के आईजी बद्री नारायण मीणा भी बोरे बासी खाते नजर आए. वहीं दुर्ग में एसपी अभिषेक पल्लव ने अपने अधिकारियों के साथ बोरे बासी खाया. तो वही दुर्ग कलेक्टर डॉक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने भी अपने परिवार के साथ बोरे बासी खाकर मजदूरों का सम्मान किया.

bore basi festival in durg
बोरे बासी उत्सव

ऐसे बनता है बोरे बासी: बोरे और बासी बनाना बहुत ही सरल है. न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी की. खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है. बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है. यहां बोरे और बासी इसलिए कहा जाता है क्योंकि मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है. बोरे से अर्थ, जहां तुरन्त पके हुवे चावल को पानी में डूबाकर खाना है. वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर चावल को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है. फिर बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं.

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बोरे बासी के साथ प्याज,अचार से बढ़ता है स्वाद: बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परम्परा रही है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है. वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी बोरे बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं. दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है. इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है. इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दोगुना हो जाता है.

अबूझमाड़ में तैनात जवानों ने कहा: धन्यवाद सीएम सर, आपने बचपन और घर की याद दिला दी



गर्मी में बोरे-बासी खाने से शरीर को मिलता है लाभ: बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लेकिन लाभ कई हैं. इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है. जिसके कारण गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है. इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है. बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है. गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह बोरे बासी रामबाण है.

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