दुर्ग: कोरोना की दूसरी लहर ने गांवों को बुरी तरह से अपनी चपेट में ले लिया है. कोरोना शहरी दहलीज लांघकर गांवों में कोहराम मचा रहा है. गांवों में बढ़ते कोरोना संक्रमण ने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है. गांवों में कोरोना के हालात और उससे निपटने को लेकर क्या इंतजाम किए गए हैं, इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम गांव-गांव जाकर जायजा ले रही है. ईटीवी भारत की टीम दुर्ग जिले के बेलौदी ग्राम पंचायत में पहुंची.
सीएम भूपेश बघेल की प्रारंभिक शिक्षा इसी गांव से हुई
बेलौदी ग्राम पंचायत सीएम भूपेश बघेल का पुश्तैनी गांव है. सीएम का बचपन इसी बेलौदी गांव में गुजरा है. उनका मूल निवास भले ही कुरुदडीह है, लेकिन उनके इस गांव में स्कूल नहीं होने की वजह से वे करीब 7 साल की उम्र में अपने पुश्तैनी गांव बेलौदी पहुंचे और प्रारंभिक शिक्षा अर्जित की. इसके बाद पड़ोसी गांव मर्रा से 6वीं से लेकर 11वीं तक की पढ़ाई की. कोरोना काल में इस गांव का हाल जानने जब हमारी टीम पहुंची, तो देखा कि गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है. गांव के थोड़े अंदर जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची, तो बरगद के पेड़ के नीचे कुछ लोग बैठे हुए मिले. ग्राम पंचायत बेलौदी के सरपंच प्रतिनिधि रामाधार वर्मा ने बताया कि गांव में कोरोना से अब तक 9 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं दर्जन भर से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. हालांकि अब स्थिति सुधर रही है. उन्होंने बताया कि समय-समय पर गांव की गलियों को सैनिटाइज किया जा रहा है. वहीं लोगों में जागरूकता भी फैलाई जा रही है.
गांव में नहीं है स्वास्थ्य केंद्र
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बेलौदी है. इस पंचायत में एक आश्रित गांव खपरी भी है. दोनों गांव की जनसंख्या 15 सौ से अधिक है. गांव में पानी, बिजली, स्कूल और सड़क तो है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं. गांव के सरपंच प्रतिनिधि रामाधार वर्मा बताते हैं कि गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. गांव वालों को उपचार के लिए 6 किलोमीटर दूर गाड़ाडीह स्वास्थ्य केंद्र जाना होता है. यदि इमरजेंसी केस रहता है, तो पाटन या शहर की ओर भी ग्रामीण रुख करते हैं. हालांकि इस संबंध में प्रशासन से स्वास्थ्य सुविधाओं की मांग की गई है.
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स्कूल में बनाया गया था आइसोलेशन सेंटर
रामाधार वर्मा बताते हैं कि इससे पहले गांव में कोरोना से मौतें नहीं हुई थीं. पिछले माह से लगातार मौत का सिलसिला जारी है. इसी माह मई में 4 से 5 लोगों की मौत हो चुकी है. गांव में माहौल ठीक नहीं है. हमने स्कूल को आइसोलेशन सेंटर बनाया था, लेकिन वहां कोई नहीं जाता. कोविड केयर सेंटर के लिए जब हमने मांग की, तो 2 दिन पहले ही गाड़ाडीह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 10 ऑक्सीजन बेड की व्यवस्था की गई है. वहीं गंभीर मरीजों को पाटन, झिटनया, दुर्ग या भिलाई में भर्ती किया जाता है.
वैक्सीनेशन के लिए भी 6 किलोमीटर का सफर
पाटन ब्लॉक में यदि सबसे पहले 18 प्लस वालों के वैक्सीनेशन की शुरुआत कहीं हुई, तो वह बेलौदी और पाहन्दा गांव ही था, लेकिन बेलौदी में 2 दिनों तक ही वैक्सीनेशन सेंटर चला. उसके बाद से वैक्सीन सेंटर को बंद कर दिया गया. गांव के युवा ओम प्रकाश वर्मा ने बताया कि अन्त्योदय कार्डधारकों में से 20 लोगों को ही वैक्सीन लग पाई. सेंटर बंद होने से अब ग्रामीणों को 6 किमी दूर गाड़ाडीह जाना पड़ता है. इससे पहले 60 प्लस वालों के लिए गांव में ही शिविर लगा था. पहली डोज बहुतों को लग चुकी है, दूसरी डोज लगनी अभी बाकी है.