दुर्ग भिलाई: छत्तीसगढ़ में ठंड की शुरुआत हो चुकी है. इस बीच भिलाई में इन दिनों तिब्बती शरणार्थियों का वूलन बाजार सज चुका है. हालांकि बाजार से रौनक गायब है. एक समय में इस बाजार में ग्राहकों की ऐसी भीड़ उमड़ती थी कि लोगों के पैर रखने तक की जगह नहीं होती थी. हालांकि इन दिनों बाजार में ग्राहक नहीं पहुंच रहे हैं.
हर साल तीन माह तक लगता है बाजार: दरअसल, तिब्बती शरणार्थी 1400 किमी का लंबा सफर तय कर भिलाई पहुंचते हैं. इनका मुख्य कारोबार ऊनी कपड़े बेचना है. लेकिन पिछले तीन साल की बात करें तो इनका धंधा मंदा ही चल रहा है. पहले कोविड और अब ठंड की लेट लतीफी से कारोबार प्रभावित हो रहा है. ठंड के मौसम में तीन महीने तक लगने वाला ये बाजार अब तक गुलजार नहीं हुआ है. यही कारण है कि दुकानदार के चेहरे पर भी मायूसी नजर आ रही है.
यहां किफायती कीमत पर मिलते हैं गर्म कपड़े: भिलाई में हर साल तिब्बती शरणार्थी ऊनी कपड़े बेचने आते हैं. वे अक्टूबर से जनवरी तक शहर में रहते हैं और उनी कपड़े बेचते हैं. ये तिब्बती भिलाई सेक्टर 1 में अपनी दुकान लगाते हैं. यहां लगभग 50 स्टॉल लगाए हैं. वे पिछले 40 वर्षों से भिलाई आ रहे हैं. यहां कर्नाटक, राजस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश, उत्तर-पूर्वी राज्यों और नेपाल से भी लोग सर्दियों के कपड़े बेचने के लिए स्टॉल लगाने आते हैं. इस तिब्बती बाजार में किफायती कीमतों में कई तरह के स्वेटर, जैकेट, शॉल, दस्ताने, स्कार्फ और कोट मिलते हैं. सर्दियों के मौसम की तैयारी कर रहे नागरिकों के लिए तिब्बती बाजार सर्दियों के दौरान वन-स्टॉप शॉपिंग सेंटर बन गया है.
पहले के मुकाबले कम हुई ग्राहकी: यहां बेंगुलरू से आए एक रिटायर्ड फौजी ने बताया कि, "वो साल 2001 में रिटायर्ड होने के बाद अपने फैमिली बिजनेस को आगे बढ़ते हुए भिलाई में मार्केट लगाना शुरू किए. साल 2021 से पहले मार्केट काफी अच्छा चलता था. मगर कोविड के समय से ही मार्केट सूना है. ग्राहक दुकान में पहुंचते तो हैं, लेकिन पहले के मुकाबले यहां ग्राहकी कम हो गई है."
दिसंबर माह में बिक्री की उम्मीद: यानी कि फिलहाल बाजार में ग्राहक नहीं पहुंच रहे हैं. वहीं, कुछ दुकानदारों को उम्मीद है कि दिसंबर माह में बिक्री बढ़ेगी. इसके साथ ही दुकानदारों का कहना है कि अब लोग ऑनलाइन शॉपिंग अधिक करते हैं. इसके साथ ही कई लोग, जो ब्रांड पसंद करते हैं वो शॉपिंग माल से खरीदारी करते हैं. इसलिए भी ग्राहकी कम हो गई है.दुकानदारों की मानें थे अपने घर से दूर यहां आकर बाजार लगाने और तीन से चाह माह तक यहां ठहरने का खर्च भी लाखों में होता है, उतनी कमाई नहीं हो पाती है.