दुर्ग: 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इसके लिए अयोध्या सहित पूरे देश भर में तैयारी की जा रही है. इस दिन को पूरे देश में दीपावली के तौर पर मनाया जाएगा. पूरे देश में इस दिन हवन और खास पूजा की जाएगी. इस बीच आज हम आपको 2 नवंबर 1990 की अयोध्या गोलीकांड के बारे में बताएगे. इस बारे में सटिक जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने प्रत्यक्षदर्शी कारसेवक देश दीपक सिंह से बातचीत की.
कारसेवक देश दीपक सिंह ने राममंदिर विवाद के दिनों के संघर्ष को लेकर कई जानकारियां दी. राम मंदिर आंदोलन में योगदान देने वाले कारसेवक देश दीपक सिंह 30 अक्टूबर 1990 को विवादास्पद बाबरी ढांचे के शीर्ष पर सनातन धर्म का झंडा लहराया था. फिर 2 नवंबर 1990 को अयोध्या गोलीकांड के साक्षी रहे. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उनकी आंखें छलक पड़ी.
राम मंदिर की कहानी, प्रत्यक्षदर्शी की जुबानी: उन्होंने कहा कि, "तत्कालीन उत्तर प्रदेश की सरकार ने ही कारसेवकों को रोकने के लिए पूरे अयोध्या में ऊंचे-ऊंचे बैरिकेड लगाकर उसमें कैमरा के साथ लाइट, मशीन गन कनेक्ट कर दिया था. जो भी कैमरे में कैद होता, तुरंत गोली चल जाती. इस तरह का एक आतंक का माहौल उस समय अयोध्या में था. आतंक के माहौल को हिंदू समाज ने चुनौती देते हुए 30 अक्टूबर को 5 लाख कार सेवक उपस्थित हुए. बाबरी गुंबद पर ध्वज फहराया. उस समय गोलियां चलाई गई थी. बहुत सारे कार सेवक मारे भी गए थे. उस समय गुंबद पर भगवान के रूप में एक बंदर ने ध्वज ले रखा था. 2 नवंबर को विश्व हिंदू परिषद ने घोषणा की कि अब सत्याग्रह करेंगे. जब कार सेवक गलियों में निकले तो तत्कालीन सरकार ने गोली चलाने का आदेश दे दिया था. उसके बाद सैकड़ों की संख्या में कार सेवक मारे गए थे. अयोध्या की गलियां खून से लथपथ हो गई थी."
सरयू नदी का पानी हो चुका था लाल: आगे देश दीपक सिंह ने कहा कि, "अयोध्या में लगातार गोलियों की आवाज गूंज रही थी. सरयू नदी का पानी खून से लाल हो गया था. वहीं, हिंदू समाज उसके बाद भी संगठित होते रहा. इसी का परिणाम है कि 22 जनवरी 2024 को रामलाल के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. फिलहाल देश में खुशी का माहौल है. भिलाई रिफ्रैक्ट्री प्लांट में 3000 सिरोमिक ईंट बनवाई गई. प्रत्येक ईंट पर जय श्रीराम अंकित था. उसे अयोध्या धाम पहुंचाने के लिए रायपुर भेजा गया. आज भी हमारे जिले की राम नाम अंकित शिलाएं अयोध्या में सुरक्षित है.
दुर्ग से कई बार निकला था जत्था: दुर्ग से 24 अक्टूबर 1990 को 400 लोगों का पहला जत्था ट्रेन से अयोध्या के लिए के लिए निकला. 28 अक्टूबर तक करीब 2000 कारसेवक अयोध्या के लिए कूच किए. आखिरी दिन ट्रेन कटनी सतना के बीच रोक दी गई.बस और ट्रकों में बैठकर कार सेवक किसी तरह चित्रकूट मंदाकिनी नदी के तट पहुंचे. उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. वहां से कारसेवक कूद फांदकर भाग निकले. गांव वाले अलग-अलग तरीके से इनकी मदद करते थे. ताकि ये अपनी मंजिल तक पहुंच सके. आज ऐसे कई लोग हैं जो राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा को लेकर काफी उत्साहित हैं.