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धमतरी: 'अपनी ताकत को पहचाने महिलाएं, कभी कमजोर न बनें'

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Published : Mar 8, 2020, 4:06 PM IST

Updated : Mar 8, 2020, 5:04 PM IST

धमतरी में समाज सेवा की बात हो और उसमें डॉ. सरिता दोशी का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता है. डॉ.सरिता दोशी का मानना है कि अगर सपने पूरे सपने को पूरा करना हो तो उड़ान भरना जरूरी है तभी किसी चीज को पाया जा सकता है.

women day special story of dr sarita doshi from dhamtari
डॉ. सरिता दोशी, समाज सेवा

धमतरी: नारी कोमल है, कमजोर नहीं, बुलंद हौसलों के दम पर ऊंची उड़ान भरना इन्हें बखूबी आता है. जब भी मौका मिला है तब महिलाओं ने खुद को साबित करके दिखाया है. महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ न केवल कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है बल्कि आगे भी निकल सकती है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको मिलाने जा रहे है एक ऐसी महिला से जिनका नाम है डॉ.सरिता दोशी.

'अपनी ताकत हो पहचनाएं महिलाएं, कभी कमजोर न बने'
धमतरी में समाज सेवा की बात हो और उसमें डॉ. सरिता दोशी का नाम न आए ऐसा नहीं हो सकता. ये वो नाम है जो आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ी डॉ. सरिता इन दिनों अपना ज्यादातर समय दिव्यांग बच्चों के साथ बिताती हैं. जहां उन्हें बच्चे दीदी कह कर गले से लग जाते हैं. गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद के लिए आगे रहने वाली सरिता फुर्सत के पलों में साहित्य लिखने में भी रुचि रखती हैं. सरिता लायनेस क्लब, दिव्यांग बच्चों के सार्थक स्कूल, ऑल इज वेल टीम, ढोल बाजे गरबा, महिला समाज, गुजराती महिला मंडल जैसी संस्थाओं से जुड़कर समाज सेवा का काम कर रही हैं. वो दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था की अध्यक्ष है और उनका ज्यादातर समय इसी स्कूल में गुजरता है. वे कहती है कि बच्चों में परिवर्तन को देखते हुए उन्हें काफी खुशी होती है.


मां प्रभादेवी सम्मान और आऊट लेडी ऑफ द ईयर सम्मान

बचपन से ही उन्होंने गरीबों की सेवा को लक्ष्य बनाकर स्काउट गाइड के तौर पर अस्पतालों में अपनी सेवाएं दी हैं. इस बीच उन्हें लोगों की तकलीफों को समझने का मौका मिला. इसके बाद सरिता यही नहीं रुकी, लगातार समाज सेवा के क्षेत्र में काम कर रही है. यही वजह है कि उन्हें मां प्रभादेवी सम्मान और आऊट लेडी ऑफ द ईयर जैसा सम्मान से नवाजा गया है.

एक साहित्यकार के तौर पर भी जानीं जाती है सरिता दोशी

सरिता दोशी को एक साहित्यकार तौर पर भी जाना जाता है. उनकी अनेक रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. इनके अलावा उनकी काव्य संग्रह "इतराता है चांद" का प्रकाशन भी किया गया है. इसमें उनकी भाषा शैली की अमिट छाप दिखाई देती है. हालांकि वह बताती है कि पहले की अपेक्षा साहित्य लेखन पर कम ध्यान दे पा रही हैं, लेकिन जब भी उन्हें फुर्सत मिलता है इससे पीछे नहीं रहती हैं'.

धमतरी: नारी कोमल है, कमजोर नहीं, बुलंद हौसलों के दम पर ऊंची उड़ान भरना इन्हें बखूबी आता है. जब भी मौका मिला है तब महिलाओं ने खुद को साबित करके दिखाया है. महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ न केवल कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है बल्कि आगे भी निकल सकती है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको मिलाने जा रहे है एक ऐसी महिला से जिनका नाम है डॉ.सरिता दोशी.

'अपनी ताकत हो पहचनाएं महिलाएं, कभी कमजोर न बने'
धमतरी में समाज सेवा की बात हो और उसमें डॉ. सरिता दोशी का नाम न आए ऐसा नहीं हो सकता. ये वो नाम है जो आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. कई समाजसेवी संस्थाओं से जुड़ी डॉ. सरिता इन दिनों अपना ज्यादातर समय दिव्यांग बच्चों के साथ बिताती हैं. जहां उन्हें बच्चे दीदी कह कर गले से लग जाते हैं. गरीब बच्चों की पढ़ाई में मदद के लिए आगे रहने वाली सरिता फुर्सत के पलों में साहित्य लिखने में भी रुचि रखती हैं. सरिता लायनेस क्लब, दिव्यांग बच्चों के सार्थक स्कूल, ऑल इज वेल टीम, ढोल बाजे गरबा, महिला समाज, गुजराती महिला मंडल जैसी संस्थाओं से जुड़कर समाज सेवा का काम कर रही हैं. वो दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था की अध्यक्ष है और उनका ज्यादातर समय इसी स्कूल में गुजरता है. वे कहती है कि बच्चों में परिवर्तन को देखते हुए उन्हें काफी खुशी होती है.


मां प्रभादेवी सम्मान और आऊट लेडी ऑफ द ईयर सम्मान

बचपन से ही उन्होंने गरीबों की सेवा को लक्ष्य बनाकर स्काउट गाइड के तौर पर अस्पतालों में अपनी सेवाएं दी हैं. इस बीच उन्हें लोगों की तकलीफों को समझने का मौका मिला. इसके बाद सरिता यही नहीं रुकी, लगातार समाज सेवा के क्षेत्र में काम कर रही है. यही वजह है कि उन्हें मां प्रभादेवी सम्मान और आऊट लेडी ऑफ द ईयर जैसा सम्मान से नवाजा गया है.

एक साहित्यकार के तौर पर भी जानीं जाती है सरिता दोशी

सरिता दोशी को एक साहित्यकार तौर पर भी जाना जाता है. उनकी अनेक रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. इनके अलावा उनकी काव्य संग्रह "इतराता है चांद" का प्रकाशन भी किया गया है. इसमें उनकी भाषा शैली की अमिट छाप दिखाई देती है. हालांकि वह बताती है कि पहले की अपेक्षा साहित्य लेखन पर कम ध्यान दे पा रही हैं, लेकिन जब भी उन्हें फुर्सत मिलता है इससे पीछे नहीं रहती हैं'.

Last Updated : Mar 8, 2020, 5:04 PM IST
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