धमतरी : जिले के भटगांव में शिक्षक की लगन और मेहनत से अब सपेरे अपना मूल काम छोड़कर शिक्षा और रोजगार की राह में चल पड़े हैं. सांप दिखाकर कभी भीख मांगने को अपनी नियति समझने वाले इस वर्ग को समाज से जोड़ने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. आधुनिक दुनिया से जोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार करने में कई साल लग गए. आखिरकार शिक्षकों के प्रयासों से अब बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे (teacher changed the life of bhatgaon snake charmer ) हैं.
सांप दिखाकर होता था गुजारा : अक्सर आपने और हमने सांपों का खेल कहीं ना कहीं जरुर देखा होगा.सांपों का खेल दिखाने के बाद सपेरा सांप की टोकरी में पैसे इकट्ठा करते और अगली गली में चले जाते. इनका पूरा जीवनकाल इसी खेल को दिखाने और अपने आने वाली पीढ़ी को ये कला सौंपने में चला जाता. अगली पीढ़ी फिर आती और सांपों के साथ अपनी जिंदगी की शुरुआत करती. सपेरों का जीवनकाल इसी तरह से चलता.लेकिन धमतरी में ऐसा नहीं हुआ. यहां रहने वाले एक शिक्षक ने सपेरों को मुख्यधारा में जोड़ने का बीड़ा उठाया
एक शिक्षक की जिद ने बदली जिंदगी : धमतरी के भटगांव में शिक्षक दिनेश पाण्डेय इसी दिशा में बड़ा परिवर्तन और सृजन कर रहे हैं. जो संपेरे कभी स्कूल का मुंह देखने से परहेज करते थे.उन्हीं संपेरों के बच्चों को सांप और पिटारे से अलग कर ज्ञान के पिटारे तक ले आए हैं. अब दिनेश पाण्डेय के प्रयासों से सपेरों के बच्चे स्कूलों में आने लगे हैं. जिन हाथों में बचपन से ही सांप के सपोलों को पकड़ा दिया जाता था. उन्हीं हाथों में अब कलम और पेंसिल ने अपनी जगह बना ली है. बीन की थिरकन की जगह ककहरा और अल्फाबेट के शब्द बच्चों के मुंह से निकलने लगे हैं.
अब बच्चे नहीं मांगते भीख : भले ही एबीसीडी अधूरी हो.अभी गिनती और पहाड़ा के अंक बीच में छूट रहे हो. लेकिन स्कूल नहीं छूट रहा . अब इनके पालक इन्हें परंपरागत रूप में भीख मांगने नही भेजते. इनके जीवन का लक्ष्य ज्यादा सांप इकट्ठा कर के अमीर कहलाना नही है. ये बड़ा परिवर्तन है. यही सृजन है. ये राष्ट्र और समाज के निर्माण की नींव है. इस ट्रांसफार्मेशन को सफल कर देने वाले शिक्षक दिनेश पांडेय और चेतन लाल साहू ने बताया कि पहले और अब में क्या फर्क आया और क्या क्या जतन करने (Dhamtari Teachers day 2022) पड़े.