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SPECIAL: जिसे हम फेंक देते हैं, उससे सैनेटरी नैपकिन बना रही है ये महिला

सुमिता पंजवानी ने अपने रिसर्च में पाया कि पैरा में सेलूलोज की मात्रा होती है और यह पैड बनाने के काम आता है. इसके अलावा यह पूरी तरह हाइजीनिक भी है. लिहाजा उन्होंने इसे फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजार कर एक कंफर्टेबल नैपकिन तैयार किया है.

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Published : Nov 20, 2019, 3:33 PM IST

Updated : Nov 21, 2019, 7:25 AM IST

पैरा से सैनेटरी नैपकीन बना रही है ये महिला

धमतरी: आमतौर पर किसान खेतों में मौजूद पराली (पैरा) को जला दिया करते हैं. इससे न सिर्फ खेत प्रभावित होते हैं, बल्कि पर्यावरण प्रदूषित होता है, लेकिन क्या इसी वेस्ट को बेस्ट बनाया जा सकता है? बिल्कुल हां, धमतरी की सुमिता पंजवानी ने इसी वेस्ट पराली से सैनेटरी नैपकिन बनाने की नई तकनीक ईजाद की है. हालांकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल एक प्रोटोटाइप है, लेकिन बहुत जल्द ही इसकी कर्मिशयल शुरुआत हो सकती है.

धान के पैरा से बनाए जाएंगे सैनेटरी नैपकिन

अक्षय कुमार की मूवी 'पैडमैन' की चर्चा पूरे देश में
इस फिल्म ने न सिर्फ सफलता के रिकॉर्ड बनाए, बल्कि समाज को भी एक सार्थक मैसेज भी दिया और इस विषय पर स्वस्थ माहौल भी बनाया. कुछ ऐसे ही प्रयास में धमतरी की समाजसेविका सुमिता पंजवानी इन दिनों जुटी हुई है.

पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे ये सैनेटरी नैपकिन
उन्होंने वेस्ट पैरा से सैनेटरी नैपकिन बनाने की नई तकनीक ढूंढी है. जिससे आने वाले दिनों बायोडिग्रेडेबल नैपकिन बनाया जा सकता है और इसे बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए आसानी से नष्ट किया जा सकता है. सुमिता का कहना है कि, 'आमतौर पर जो सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल किया जाता है, उसमें प्लास्टिक और सिथेंटिक का इस्तेमाल किया जाता है जो एकाएक नष्ट नहीं होते.'

ग्रामीण इलाकों में महिलाएं नहीं है जागरुक
सुमिता पंजवानी आर्ट लिविंग से जुड़ी है और संस्था के पवित्रा वर्कशॉप कार्यक्रम के जरिये बीते 10 सालों से वह ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इस दौरान सुमिता ने महसूस किया कि महिलाएं माहवारी के दौरान हाइजीन का ध्यान नहीं देती. ग्रामीण महिलाएं स्वच्छता को लेकर जागरूक नहीं है और पीरियड्स के दौरान वह अस्वच्छ तरीके अपनाती हैं, जिसके कारण गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

'हाईजीनिक है पैरा से बना पैड'
सुमिता पंजवानी ने अपने रिसर्च में पाया कि पैरा में सेलूलोज की मात्रा होती है और यह पैड बनाने के काम आता है. इसके अलावा यह पूरी तरह हाइजीनिक भी है. लिहाजा उन्होंने इसे फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजार कर एक कंफर्टेबल नैपकिन तैयार किया है.

3 साल से कर रही थी प्रयोग
सुमिता बताती है ये उत्पाद सिर्फ बिजनेस के लिए नहीं है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए है. इसके अलावा किसानों के फायदे के लिए भी है. वे कहती है इस प्रयोग को तैयार करने में तीन साल लग गए. इस बीच कई लोगों ने उन्हें टोका, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. मजबूत इरादों के साथ वह इस काम मे लगी रही और आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई.

सरकार के स्टार्टअप योजना के तहत किया काम
इस प्रयोग को मूर्त रूप देने के बारे में उनका कहना है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की मदद से और केंद्र सरकार के स्टार्टअप योजना के तहत वह एग्री बिजनेस आईडिया पर काम कर रही है और इसमें जल्द अनुदान मिलने की उम्मीद है. जिसके बाद इसका सेटअप तैयार किया जाएगा.

पढ़ें- धमतरी: इस गांव में महिलाएं नहीं करतीं कोई श्रृंगार और न ही काटती हैं धान

रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे
इस प्रयोग से सुमिता ने न सिर्फ स्टार्टअप किया है, बल्कि आने वाले दिनों में ग्रामीण इलाकों में इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. तो वहीं महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी यह प्रयोग बेहद कारगर साबित होगा. क्योंकि गांवो में पैरा बहुतायत मात्रा में पाई जाती है और इसका इस्तेमाल कर महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकेंगी.

धमतरी: आमतौर पर किसान खेतों में मौजूद पराली (पैरा) को जला दिया करते हैं. इससे न सिर्फ खेत प्रभावित होते हैं, बल्कि पर्यावरण प्रदूषित होता है, लेकिन क्या इसी वेस्ट को बेस्ट बनाया जा सकता है? बिल्कुल हां, धमतरी की सुमिता पंजवानी ने इसी वेस्ट पराली से सैनेटरी नैपकिन बनाने की नई तकनीक ईजाद की है. हालांकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल एक प्रोटोटाइप है, लेकिन बहुत जल्द ही इसकी कर्मिशयल शुरुआत हो सकती है.

धान के पैरा से बनाए जाएंगे सैनेटरी नैपकिन

अक्षय कुमार की मूवी 'पैडमैन' की चर्चा पूरे देश में
इस फिल्म ने न सिर्फ सफलता के रिकॉर्ड बनाए, बल्कि समाज को भी एक सार्थक मैसेज भी दिया और इस विषय पर स्वस्थ माहौल भी बनाया. कुछ ऐसे ही प्रयास में धमतरी की समाजसेविका सुमिता पंजवानी इन दिनों जुटी हुई है.

पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे ये सैनेटरी नैपकिन
उन्होंने वेस्ट पैरा से सैनेटरी नैपकिन बनाने की नई तकनीक ढूंढी है. जिससे आने वाले दिनों बायोडिग्रेडेबल नैपकिन बनाया जा सकता है और इसे बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए आसानी से नष्ट किया जा सकता है. सुमिता का कहना है कि, 'आमतौर पर जो सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल किया जाता है, उसमें प्लास्टिक और सिथेंटिक का इस्तेमाल किया जाता है जो एकाएक नष्ट नहीं होते.'

ग्रामीण इलाकों में महिलाएं नहीं है जागरुक
सुमिता पंजवानी आर्ट लिविंग से जुड़ी है और संस्था के पवित्रा वर्कशॉप कार्यक्रम के जरिये बीते 10 सालों से वह ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं. इस दौरान सुमिता ने महसूस किया कि महिलाएं माहवारी के दौरान हाइजीन का ध्यान नहीं देती. ग्रामीण महिलाएं स्वच्छता को लेकर जागरूक नहीं है और पीरियड्स के दौरान वह अस्वच्छ तरीके अपनाती हैं, जिसके कारण गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

'हाईजीनिक है पैरा से बना पैड'
सुमिता पंजवानी ने अपने रिसर्च में पाया कि पैरा में सेलूलोज की मात्रा होती है और यह पैड बनाने के काम आता है. इसके अलावा यह पूरी तरह हाइजीनिक भी है. लिहाजा उन्होंने इसे फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजार कर एक कंफर्टेबल नैपकिन तैयार किया है.

3 साल से कर रही थी प्रयोग
सुमिता बताती है ये उत्पाद सिर्फ बिजनेस के लिए नहीं है, बल्कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए है. इसके अलावा किसानों के फायदे के लिए भी है. वे कहती है इस प्रयोग को तैयार करने में तीन साल लग गए. इस बीच कई लोगों ने उन्हें टोका, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. मजबूत इरादों के साथ वह इस काम मे लगी रही और आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई.

सरकार के स्टार्टअप योजना के तहत किया काम
इस प्रयोग को मूर्त रूप देने के बारे में उनका कहना है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की मदद से और केंद्र सरकार के स्टार्टअप योजना के तहत वह एग्री बिजनेस आईडिया पर काम कर रही है और इसमें जल्द अनुदान मिलने की उम्मीद है. जिसके बाद इसका सेटअप तैयार किया जाएगा.

पढ़ें- धमतरी: इस गांव में महिलाएं नहीं करतीं कोई श्रृंगार और न ही काटती हैं धान

रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे
इस प्रयोग से सुमिता ने न सिर्फ स्टार्टअप किया है, बल्कि आने वाले दिनों में ग्रामीण इलाकों में इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे. तो वहीं महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी यह प्रयोग बेहद कारगर साबित होगा. क्योंकि गांवो में पैरा बहुतायत मात्रा में पाई जाती है और इसका इस्तेमाल कर महिलाएं आत्मनिर्भर हो सकेंगी.

Intro:आमतौर पर किसान खेतों में मौजूद पराली जला देते है इससे न सिर्फ खेत प्रभावित होता है बल्कि पर्यावरण प्रदूषित होता है लेकिन क्या इसी वेस्ट को बेस्ट बनाया जा सकता है तो इसका जवाब होगा नही.पर धमतरी के सुमिता पंजवानी ने इसी वेस्ट पराली से सेनेट्री नैपकिन बनाने की नई तकनीक का ईजाद किया है.हालांकि ये प्रोजेक्ट फिलहाल प्रोटोटाईप है लेकिन बहुत जल्द ही इसकी कर्मिशयल शुरुआत हो सकती है.






Body:अक्षय कुमार की मूवी पैडमैन की चर्चा लगभग पूरे देश मे रही है
इस फ़िल्म ने न सिर्फ सफलता के रिकॉर्ड बनाए बल्कि समाज को मैसेज भी दिया और इस विषय पर स्वस्थ माहौल भी बनाया.कुछ ऐसे ही प्रयास में धमतरी के जानी मानी हस्ती और समाजसेविका सुमिता पंजवानी इन दिनों जुटी हुई है.उन्होंने वेस्ट पैरा से सेनेट्री नैपकिन बनाने की नई तकनीक ढूंढ लिया है जिससे आने वाले दिनों बायोडिग्रेडेबल नैपकिन बनाया जा सकता है और इसे बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना आसानी से नष्ट किया जा सकता है.उनका कहना है कि आमतौर पर जो सेनेट्री इस्तेमाल किया जाता है उसमें प्लास्टिक और सिथेंटिक का इस्तेमाल किया जाता है जो एकाएक नष्ट नही होते.

सुमिता पंजवानी आर्ट लिविंग से जुड़ी है और संस्था के पवित्रा वर्कशॉप कार्यक्रम के जरिये बीते 10 सालों से वह ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता को लेकर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है इस दौरान सुमिता ने महसूस किया कि महिलाएं माहवारी के दौरान हाईजीन का ध्यान नही देती.ग्रामीण महिलाएं स्वच्छता को लेकर जागरूक नही है और ऐसे हाईजीन के लिए वह अस्वच्छ तरीके अपनाती है जिसके कारण गम्भीर समस्याएं उत्पन्न होती है.

सुमिता पंजवानी ने अपने रिसर्च में पाया कि पैरा में सैलिलूज की मात्रा होती है और यह पैड बनाने के काम आता है इसके अलावा यह पुरी तरह हाईजीन भी है लिहाजा उन्होने इसे फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजार कर एक कंफर्टेबल नैपकिन तैयार किया है.

सुमिता बताती है ये उत्पाद सिर्फ बिजनेस के लिए नही है बल्कि महिलाऒ के सशक्तिकरण के लिए है इसके अलावा किसानों के फायदे के लिए भी है वे कहती है इसे प्रयोग को तैयार करने में तीन साल लग गए.इस बीच कइयों ने उन्हें टोका लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नही हारी.मजबूत इरादों के साथ वह इस काम मे लगी रही और आखिरकार उन्हें सफलता मिल ही गई.

इस प्रयोग को मूर्त रूप देने के बारे में उनका कहना है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की मदद से और केंद्र सरकार के स्टार्टअप योजना के तहत वह एग्री बिजनेस आईडिया पर काम कर रहे है और इसमें जल्द अनुदान मिलने की उम्मीद है जिसके बाद इसका सेटअप तैयार किया जाएगा.





Conclusion:बहरहाल इस प्रयोग से सुमिता ने न सिर्फ स्टार्टअप किया है बल्कि आने वाले दिनों में ग्रामीण इलाकों में इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेगे तो वही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी यह प्रयोग बेहद कारगर साबित होगा क्योंकि गांवो में पैरा बहुतायत मात्रा में पाई जाती है और इसका इस्तेमाल कर लोग आत्मनिर्भर हो सकेंगे.

बाईट_सुमिता पंजवानी,पैडवूमेन एवं समाजसेविका

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
Last Updated : Nov 21, 2019, 7:25 AM IST
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