धमतरी: भले ही मौजूदा दौर टेक्नोलॉजी का है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में तमाम आधुनिक संसाधनों के होते हुए आज भी हल से खेतों की जुताई (Plow plowing) का सिलसिला जारी है. हालांकि इस हल का प्रयोग छोटे और मझोले गरीब किसान ही कर रहे हैं. किसानों का मानना है कि हल से खेती करने में समय और मेहनत भले ही ज्यादा लगती है लेकिन हल से खेतों की जुताई की बात ही कुछ और है.
दरअसल हल से खेतों की जुताई अच्छी मानी जाती है. बीते कुछ सालों में देसी हल से जुताई करने वालों की संख्या बहुत कम हो गई है. बड़े किसान अब इस हल के प्रयोग की बजाय ट्रैक्टर से जुताई करवाना पसंद करते है. लेकिन सीमित क्षेत्र में खेती करने वाले छोटे किसानों के लिए आज भी देसी हल ही सहारा बना हुआ है. खासकर धमतरी जिले के कई किसान आज भी पूरी खेती देसी हल से ही करते हैं.
किसानों ने बताया कि हल की उपयोगिता अभी भी बरकरार है. खेतों में नमी के आधार पर ही इस हल का प्रयोग (plowing the fields with a plow) होता है. इससे खेतों की घास अच्छी तरह से उखड़ जाती है. साथ ही खेत हमेशा समतल बनी रहती है. सिंचाई में आसानी होने के साथ ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती. देसी हल से बुवाई करने पर बीज सही जगह पर ही पड़ते है. बैलों की जुताई से पौधों की जड़ों का विकास अधिक होता है. जिससे उत्पादन भी ज्यादा होता है.
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किसानों ने बताया कि आधुनिक मशीन यानि ट्रैक्टर से की जाने वाली खेतों की जुताई में खेतों की सूखी भूमि पर ही जुताई कर दी जाती है. इससे खरपतवार नष्ट नहीं हो पाते. पानी मिलते ही इन्हें जीवनदान मिल जाता है. खेत के कोने जुताई के अभाव में छूट जाते है. जिसके वजह से पहली सिंचाई में फसल में अत्यधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है. इसके अलावा ट्रैक्टर की जुताई में बीज ऊपर ही रह जाते है. अधिक गहराई में बीज गिरने से बीज के जमाव में भी कमी आती है. ट्रैक्टर की जुताई से खेतों की मिट्टी के बैठने का डर बना रहता है. बहरहाल बदलते समय के साथ अब बैल हल से जुताई विलुप्ति की कगार पर चली गई है. लेकिन आज भी इसकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई है.