धमतरी : आरक्षण विधेयक पर हस्ताक्षर को लेकर अब सभी की निगाहें राजभवन की ओर टिकी हैं. लेकिन इस विधेयक पर हस्ताक्षर करने से पहले राज्यपाल अनुसुइया उइके जल्दबाजी नहीं कर रहीं हैं. क्योंकि पहले भी हाईकोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण को अवैधानिक करार दिया था. इसलिए इस तरह की पुनरावृत्ति ना हो, इसके लिए राज्यपाल अनुसुइया उइके आरक्षण से जुड़ी हर जानकारी पर सलाह ले रही हैं.
Reservation Bill in Chhattisgarh
क्यों राज्यपाल ने नहीं किए हस्ताक्षर : धमतरी में राज्यपाल अनसुइया उइके ने कहा कि '' आदिवासियों ने आरक्षण की मांग को लेकर राज्यव्यापी आंदोलन किया. तब खुद मैंने सरकार को विशेष सत्र बुलाने की सलाह दी थी. मैंने केवल जनजाति समाज के लिए विशेष सत्र बुलाने की बात कही थी. अब इस विधेयक में आरक्षण 76 फीसदी हो गया है. यदि केवल आदिवासी समाज का ही आरक्षण संशोधन 20 फीसदी से 32 फीसदी होता तो मेरे लिए तुरंत हस्ताक्षर करने में कोई दिक्कत नहीं थी. अब चूंकि पहले ही हाईकोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण को अवैधानिक करार दिया है और नए संशोधन विधेयक में 76 फीसदी आरक्षण हो गया है, इसलिए तकनीकी पहलू देखना होगा.
राज्यपाल ने यह भी कहा कि ''इस मामले में हर वर्ग और जाति समुदाय वालों के भी आवेदन मिले हुए हैं. इससे पहले 2012 में 58 फीसदी आरक्षण वाले बिल को कोर्ट ने अवैधानिक करार दिया था. इन परिस्थितियों में नए आरक्षण बिल पर सरकार की तैयारी कितनी है. रोस्टर की क्या स्थिति है, इनकी भी जांच और जानकारी जरूरी है. इसी कारण समय लग रहा है. आरक्षण के सभी पहलुओं की जानकारी से संतुष्ट होने के फौरन बाद इस पर हस्ताक्षर कर दिए जाएंगे.''Governor statement on reservation bill in dhamtari
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क्या है नया संशोधित विधेयक : दरअसल आरक्षण के लिए विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र एक और दो दिसंबर को बुलाया गया. विशेष सत्र के दूसरे दिन राज्य सरकार ने आरक्षण से संबंधित दो विधेयक पेश किया. छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन विधेयक और शैक्षणिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) संशोधन विधेयक सदन से पास हुआ है. इन दोनों विधेयकों में आदिवासी वर्ग-ST को 32%, अनुसूचित जाति-SC को 13% और अन्य पिछड़ा वर्ग-OBC को 27% आरक्षण का प्रस्ताव तय है. सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण देने की भी बात इस विधेयक में हैं. अब छत्तीसगढ़ में इन सभी अनुपातों को मिला कर देखा जाए तो कुल 76 फीसदी आरक्षण छत्तीसगढ़ में हो जाएगा.
आरक्षण पर विवाद कब हुआ शुरू : छत्तीसगढ़ में आरक्षण का मुद्दा तब उठा जब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को साल 2012 में जारी राज्य सरकार के सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण को 58 प्रतिशत तक बढ़ाने के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है. इस फैसले के बाद राज्य में जनजातियों के लिए आरक्षण 32 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत हो गया है.