धमतरी: मछुआरा संघर्ष मोर्चा ने राज्य स्तरीय धरना प्रदर्शन किया. मछुआरों की मुख्य मांग है कि मांझी समाज में आने वाली सभी उपजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. इसके अलावा मछुआरों ने भाजपा और कांग्रेस से भी विधानसभा चुनावों में टिकट की मांग की है.
मछुआरा संघर्ष मोर्चा का प्रदर्शन: गांधी मैदान में मछुआरा संघर्ष मोर्चा ने जंगी धरना-प्रदर्शन कर कांग्रेस-भाजपा दोनों ही राजनीतिक दलों पर मछुआरों की उपेक्षा का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में 11 फीसदी आबादी के बाद भी मछुआरा समाज को राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल रही. आदिवासी वर्ग का आरक्षण को पुन: बहाल करने और जलक्षेत्र में पूर्ण अधिकार की मांग को लेकर जमकर हल्ला बोला.
मछुआ नीति की कमियां दूर करने की मांग: गांधी मैदान में आयोजित मछुआरों के धरना देकर प्रदर्शन में धीवर, निषाद, केंवट, कहार, मल्लाह, भोई जाति के लोग शामिल हुए. आदिवासी कश्यप समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बाबा मार्तंड (कोरिया) ने कहा कि मछुआरा मांझी समुदाय के तहत आने वाले धीवर, निषाद, केंवट, कहार, मल्लाह, भोई जनजातियों को साल 1950 तक अनुसूचित जनजाति वर्ग में रखा गया था. शासन के राजपत्रों में प्रमाणित है, लेकिन 1950 के बाद षड़यंत्रपूर्वक मछुआरा समुदाय के समस्त जनजातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में डाल कर उन्हें आरक्षण से वंचित कर दिया गया. इसकी पुन: बहाली की मांग को लेकर बीते 75 सालों से मछुआरा समुदाय संघर्ष कर रहा है. उन्होंने बस्तर से लेकर सरगुजा तक मछुआरा समाज को एक मंच से संघर्ष की प्रशंसा करते हुए कहा कि शुरू से ही मछुआरा समाज आदिवासी है, लेकिन लिपिकीय त्रुटि के चलते इसके लाभ से वंचित हो गए.
हमारी दो प्रमुख मांगे हैं. अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत जो आरक्षक माझी नाम से दिया गया था उसे बहाल करें. दूसरा मछुआ नीति की विसंगति दूर करें. - बाबा मार्तंड, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष
कोई भी राजनीतिक दल मछुआरा समुदायों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहा है. पूरे छत्तीसगढ़ में 11 से 12 प्रतिशत लोग मछुआरा समुदाय से आते हैं. राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं होने के कारण हमारी बातें विधानसभा तक नहीं पहुंच रही है. टिकट नहीं देने पर अपने समाज से चुनाव में खड़े किया जाएगा.- -मोतीलाल हिरवानी, मछुवारा संघर्ष मोर्चा
मछुआरा समाज की मांग: मछुआरा समाज नई मछुआ नीति में ठेकेदारी प्रथा को बंद कर वापस मछुआरा समितियों को लीज पर देने, दोहरा ऑडिट के नियम को खत्म करने, जलक्षेत्रों को जन्मजात मछुआरा समुदायों के लिए आरक्षित करने की मांग की जा रही है. भूमिहीन मत्स्य पालकों को तालाब खनन के लए भूमि नि:शुल्क उपलब्ध कराने, नीट-मात्स्यिकी कालेजों, इंजीनियरिंग, जेई और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मछुआरा समाज को आबादी के अनुपात में सीट आरक्षित करने की मांग शामिल है.
छत्तीसगढ़ में मांझी मछुआरा समाज की उपजातियों को मिला दें तो तो जनसंख्या में इनकी बड़ी भागीदारी है और फिलहाल ये वर्ग ओबीसी कोटे में आता है. चुनाव के एन पहले मांझी समाज में अगर ध्रुवीकरण हो जाता है तो इस से छत्तीसगढ़ में चुनाव और उसके परिणामों पर बड़ा असर पड़ेगा.