धमतरी: प्रदेश में इन दिनों धान कटाई का सीजन चल रहा है, जाहिर है कि लोग धान कटाई और मिंजाई के कामों में जुटे हुए हैं. ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के कामों में महिलाएं भी हाथ बंटाती हैं, लेकिन धमतरी के संदबाहरा गांव में महिलाओं का धान काटना और खेतों में काम करना ही वर्जित है.
आप इसे परंपरा कहें या अंधविश्वास, गांव के लोगों की मान्यता है कि सदियों से ये परंपरा चली आ रही की महिलाएं यहां खेतों में काम नहीं करती और अगर काम किया तो गांव के ऊपर आफत आ सकती है. इसे गांववालों का खौफ कहें या मजबूरी, लेकिन फिर भी वो इसे मानते और निभाते चले आ रहे हैं.
मान्यता की वजह है देवी का प्रकोप
आपको जानकर ये हैरानी होगी कि इस गांव न तो श्रृंगार करती है और न ही खाट पर सोती हैं. यहां तक कि महिलाएं लकड़ी की बनी हुई किसी भी सामान पर नहीं बैठती है. बारह महीने यहां की औरतें जमीन पर ही सोती हैं. इसके अलावा गांव की महिलाएं अपनी मांग पर सिंदूर भी नहीं भरती. ये परंपरा गांव में सदियों पहले एक देवी के प्रकोप की वजह से बनाई गई है.
महिलाएं नहीं करती श्रृंगार
धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव मे करीब 40 परिवार रहते हैं. यह गांव अपनी एक परंपरा की वजह से ही पहचाना जाता है. यहां महिलाओं को खाट, पलंग, कुर्सी इत्यादि पर बैठने की इजाजत नहीं है. इसी तरह यहां महिलाओं को श्रृंगार करने की मनाही है. ऐसी मान्यता है कि अगर महिलाएं ऐसा करेंगी, तो ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहेंगी या फिर उसे कोई न कोई बीमारी जरूर हो जाएगी.
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खौफ के साथ जीते हैं ग्रामीण
गांव के लोग बताते है कि गांव की कारीपठ देवी ऐसा करने से नाराज हो जाती है और गांव पर संकट आ जाता है. गांव मे सभी लोग आज भी अंजाने खौफ के साये में अपना जीवन बिता रहे हैं. संदबाहरा गांव अपने इस अजब-गजब परंपरा की वजह से इलाके में मशहूर है और चर्चा का विषय भी बना हुआ है. आज जब दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है फिर भी ये मान्यताएं आज भी ग्रामीण अंचलों में जिंदा है और इन मान्यताओं या अंधविश्वास के साथ लोग जीवन बीता रहे हैं. ETV भारत किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता.