धमतरी: जिले के डांडेसरा गांव की रहने वाली दिव्यांग सेवती ध्रुव आज उन लोगों के लिए मिशाल है, जो कामयाबी नहीं मिलने पर तरह-तरह के बहाने बनाते हैं. तमाम संसाधन होने के बाद भी अपने नाकामी को छुपाते हैं, लेकिन सेवती ध्रुव ने अपने कठिन परिश्रम, साहस और लगन के बदौलत पैराओलंपिक जूडो की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में तीन बार अलग-अलग पदक हासिल कर जिले का नाम रौशन की है.
वो कहते हैं न 'परिंदो को मिलेगी एक दिन मंज़िल, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं, और वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर, जमाने जिनके हुनर बोलते हैं'. ये चंद लाइनें उस शख्सियत के लिए है, जिसने अपने जज़्बे, जुनून और हौसलों से अपने सपनों को एक नया आयाम दिया है. ये बेटी पैराओलंपिक जूडो चैम्पियनशिप में तीन दफा पदक हासिल कर चुकी है. इनकी जितनी उम्र नहीं उससे कहीं ज्यादा उपलब्धियां है, जो वाकई काबिल-ए-तारीफ है.
यूट्यूब से वीडियो देखकर सीख रही
वैसे किसी भी खिलाड़ी को तराशने में कोच की अहम भूमिका मानी जाती है, लेकिन सेवती का कोई कोच नहीं है. 'एग्जैक्ट फाउंडेशन' में कार्यरत देवश्री जोशी यूट्यूब से वीडियो देखकर उन्हें जूडो की टेक्नीक सिखाती हैं. ट्रेनर देवश्री बताती हैं कि सेवती धुव्र जब 2016 में 'एग्जैक्ट फाउंडेशन' के दफ्तर में कदम रखीं, तो उस वक्त इनके आंखों में जूडो के प्रति एक जुनून सवार था, जिसने आज अपने हौसलों से सफलता की एक नई कहानी रच डाली है.
पैराओलंपिक जूडो चैम्पियनशिप में जीती पदक
छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव की बेटी 'पैराओलंपिक जूडो चैम्पियनशिप' में तीन बार पदक हासिल कर चुकी हैं. जूडो के खेल में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने से नेशनल स्तर में गोल्ड, रजत, कांस्य पदक हासिल की है. इतना ही नहीं सेवती को मुख्यमंत्री के हाथों 'शहीद कौशल यादव' सम्मान और डेढ़ लाख रुपए पुरस्कार के रूप में मिले हैं. बस अब इसे जरूरत है तो सरकार के सपोर्ट और एक अच्छे कोच की, जो बुलंदियों को छूने में अपने टेक्निक की चिंगारी भर दे.