धमतरी: पांच दशक बाद भी गंगरेल डुबान क्षेत्र के 100 परिवारों को पुनर्वास नहीं मिल पाया. गंगरेल बांध से 52 गांव प्रभावित हुए, जिनमें से ज्यादातर को पुनर्वास मिल गया, लेकिन इन परिवारों को पहले तो 25 साल कोर्ट में इंसाफ के लिए जूझना पड़ा. इंसाफ मिला भी तो आधा अधूरा. कोर्ट ने पीड़ित परिवारों के हक में तो फैसला सुनाया, लेकिन विभागीय मकड़जाल में वो फैसला उलझकर रहा गया. भानपुरी में जहां अस्थाई रूप से गुजर बशर कर भी रहे थे, वहां से भी खदेड़ दिया गया. ऐसे में कुछ परिवार फिर से कलेक्टर से गुहार लगाने शनिवार को कलेक्ट्रेट पहुंचे. आरोप है कि सक्षम अधिकारियों से मिलना तो दूर इन्हें कलेक्ट्रेट परिसर में घुसने तक नहीं दिया गया.
भानपुरी में बसने के लिए दिया था आवेदन: धमतरी कलेक्ट्रेट पहुंचे डुबान प्रभावित लोगों को आरोप है कि भानपुरी गांव में इन लोगों ने अस्थाई रूप से बसने के लिए कुछ दिनों पहले आवेदन दिया था. जवाब नहीं आने पर भानपुरी में बस गए. लेकिन वहां भी स्थानीय लोगों के विरोध के कारण उन्हें वह गांव छोड़ना पड़ा. आज ये लोग खुले आसमान के नीचे हैं. बरसते पानी में गांव के लोग कलेक्ट्रेट दफ्तर पहुंचे और वहां अपनी बात प्रशासन के सक्षम अधिकारियों के सामने रखने की कोशिश की. लेकिन दफ्तर के बाहर ही इन्हें रोक दिया गया और मेन गेट बंद कर इन्हें पानी में भीगने के लिए छोड़ दिया गया.
1972 में बनाया गया गंगरेल बांध: सन 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान गंगरेल बांध का निर्माण किया गया. तब डुबान क्षेत्र में आने वाले हजारों परिवारों को उचित मुवावजा और विस्थापन के लिए प्रधानमंत्री के साथ ही शासन प्रशासन से आश्वासन दिया. बावजूद इसके डुबान प्रभावित ये परिवार अपने पुनर्स्थापन और मुवावजे के लिए कभी हाईकोर्ट, कभी सुप्रीम कोर्ट तो कभी जिला प्रशासन का मुंह ताकने को मजबूर हैं.
दिसंबर 2020 में कोर्ट ने जारी किया था आदेश: हाई कोर्ट ने डुबान प्रभावितों के हित को ध्यान में रखते हुए 16 दिसंबर 2020 को जिला प्रशासन को आदेश जारी किया. इसमें 3 महीने के भीतर डुबान प्रभावित परिवारों को विस्थापन के लिए स्थान चिन्हांकित करके उन लोगों को विस्थापित करने की बात कही गई. बावजूद इसके अभी तक जिला प्रशासन की ओर से इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई.
स्थाई निवास नहीं होने के कारण बच्चों की ठीक से पढ़ाई नहीं हो पा रही है. इसके अलावा शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. -हर्ष मरकाम, गंगरेल डुबान प्रभावित
ये कौन लोग हैं, मैं निश्चित तौर पर कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि डुबान पीड़ितों के लिए तो एक अथॅारिटी प्रधिकरण है. ये डुबान पीड़ितों को चिन्हित करते हैं और उनके व्यवस्थापन के लिए आगे की जांच और कार्रवाई करते हैं. ऐसे 176 लोगों को आइडेंटिफाई करके हम लोगों ने जोगीडीह में आलरेडी पट्टा दे रखा है. कलेक्ट्रेट परिसर में आकर वो आपनी बात रख सकते हैं. -चंद्रकांत कौशिक, अपर कलेक्टर
कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं है जिला प्रशासन: जिला प्रशासन के अधिकारी का मानना है कि मामला न्यायालय से जुड़ा हुआ है. इसलिए जिला प्रशासन भी इसमें ज्यादा कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यह तो भारत देश के निवासी हैं. छत्तीसगढ़ प्रदेश के निवासी हैं और इन्हें अदालत ने आदेश भी लिखित में दिया है. फिर भी किसी कारण से उनका हक नहीं मिल पा रहा है, तो इसका दोषी आखिर कौन है. आखिर इनकी कितनी पीढ़ियों को इंसाफ के लिए दर दर की ठोकर खानी पड़ेगी.