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नक्सलगढ़ की दो तस्वीरें, पहली दर्द देगी, तो दूसरी से सुकून मिलेगा

दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ का वह इलाका जहां जाने से हर किसी को डर लगता है. वह इलाका जहां का नाम सुनते ही सरकारी मुलाजिमों के हाथ-पांव कांपने लगते हैं. ऐसा इसलिए क्योकि ये जिला लाल आतंक के गढ़ के तौर पर जाना जाता है. हम आपको इसी जिले की दो तस्वीरों से रू-ब-रू कराएंगे पहली तस्वीर जहां खौफ की दास्तां बयां कर रही है, वहीं दूसरी तस्वीर हमें सुकून देती है.

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Published : Jul 31, 2019, 7:46 PM IST

Updated : Aug 1, 2019, 7:18 PM IST

दंतेवाड़ा: पहली तस्वीर अरनपुर जगरगुंडा के पोटाली स्कूल की. लोकतंत्र के महापर्व का विरोध करते हुए लाल आतंक ने अपने काले मंसूबों को विद्यालय की दीवार पर उकेरा था. जो आज भी वहां मौजूद है. इसका सबसे बड़ा साइडइफेक्ट यह है कि देश का भविष्य हर रोज इसका दीदार करता है और नक्सलियों की ये जुबान उनके जेहन में उतरती जा रही है. बावजूद इसके सिस्टम है कि इसे मिटाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा है.

स्टोरी पैकेज

ऐसा नहीं है कि यही एकमात्र समस्या है. स्कूल तक पहुंचने के रास्ते दुर्गम हैं और बरसात के दिनों में तो शिक्षकों के लिए विद्यालय तक पहुंचना किसी जंग लड़ने के कम नहीं है. इन स्कूलों में प्रवेशोत्सव तक नहीं मनाया जाता प्रशासन के अफसर भी गाहे-बगाहे ही यहां पहुंचते हैं.

स्कूलों की दीवार पर नक्सलियों ने लिखे नारे
अरनपुर और जगरगुंडा को नक्सलियों की उपराजधानी कहा जाता है. इस इलाके में सुरक्षाबलों ने पांच कैंप लगाए थे. बावजूद इसके जिले के नीलावाया, बुरगुम, पोटाली, किकिरपाल, कुटरेम, हिरोली, मारजूम, परचेली, चिकपाल, कौरगांव, चेरपाल, मंगनार, कौशलनार, कामालूर, कुपेर, बासनपुर और झिरका गांव की स्कूलों में नक्सलियों ने चुनाव के दौरान कुछ नारे लिखे थे, जिन्हें अभी तक नहीं मिटाया गया है.

'नारों को मिटाने के दिए निर्देश'
जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि 'स्‍कूल के दीवारों पर नक्सली संदेश मेरे पदभार लेने से पहले के हैं. पदभार लेने के बाद मैंने ऐसे सभी संदेशों को मिटवाने के लिए सभी बीईओ और प्रधान पाठकों को निर्देशित किया है. साथ ही मिटवाने के बाद स्‍वच्‍छ दीवार के फोटाग्राफ्स मंगवाए हैं'.

फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं छात्र-छात्राएं
दूसरी तस्वीर, फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे ये छात्र-छात्राएं भी दंतेवाड़ा में ही मौजूद सरकारी स्कूल के ही हैं. आपको यकीन नहीं हो रहा न. ये तस्वीर जावंगा में मौजूद आस्था विद्यामंदिर की है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे. इस छात्र-छात्राओं को देख पहली नजर में किसी को भी धोखा हो सकता है. NMDC के CSR मद से संचालित हो रहे इस स्कूल का रिजल्ट 100 फीसदी रहता है. यानी स्कूल में पढ़ने वाला हर छात्र परीक्षा में पास होता है.

स्मार्ट क्लास के जरिए होती है पढ़ाई
इस स्कूल में एक हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं. हैरानी की बात यह है कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर विद्यार्थी नक्सल प्रभावित इलाकों से आते हैं. आस्था विद्यामंदिर के प्राचार्य संतोष प्रधान ने बताया करीब 13 सौ बच्चे संस्था में पढ़ रहे हैं. सभी बच्चे नक्सल हिंसा पीड़ित हैं या फिर आनाथ हैं, स्कूल में स्मार्ट क्लास भी चल रही है. सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है.

सरकार दे रही स्कूल पर ध्यान
सिस्टम की भी इस स्कूल पर खास इनायत रहती है. कई बार तो टीचर बेंच पर बैठ जाते हैं और छात्र खुद उनकी जगह पर खड़े होकर साथियों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं.

तस्वीरें झूठ नहीं बोलती
हमने आपको दो तस्वीरें दिखाकर यह बताने की कोशिश की कैसे सिस्टम के फोकस ने किसी की जिंदगी में सवेरा ला दिया और कैसे किसी की आंखें आज भी प्रशासन से मदद की राह देख रही है. शायद यह तस्वीरें ही हैं जो इंडिया भी भारत के बीच का अंतर सबसे सामने लाने के लिए काफी हैं.

दंतेवाड़ा: पहली तस्वीर अरनपुर जगरगुंडा के पोटाली स्कूल की. लोकतंत्र के महापर्व का विरोध करते हुए लाल आतंक ने अपने काले मंसूबों को विद्यालय की दीवार पर उकेरा था. जो आज भी वहां मौजूद है. इसका सबसे बड़ा साइडइफेक्ट यह है कि देश का भविष्य हर रोज इसका दीदार करता है और नक्सलियों की ये जुबान उनके जेहन में उतरती जा रही है. बावजूद इसके सिस्टम है कि इसे मिटाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा है.

स्टोरी पैकेज

ऐसा नहीं है कि यही एकमात्र समस्या है. स्कूल तक पहुंचने के रास्ते दुर्गम हैं और बरसात के दिनों में तो शिक्षकों के लिए विद्यालय तक पहुंचना किसी जंग लड़ने के कम नहीं है. इन स्कूलों में प्रवेशोत्सव तक नहीं मनाया जाता प्रशासन के अफसर भी गाहे-बगाहे ही यहां पहुंचते हैं.

स्कूलों की दीवार पर नक्सलियों ने लिखे नारे
अरनपुर और जगरगुंडा को नक्सलियों की उपराजधानी कहा जाता है. इस इलाके में सुरक्षाबलों ने पांच कैंप लगाए थे. बावजूद इसके जिले के नीलावाया, बुरगुम, पोटाली, किकिरपाल, कुटरेम, हिरोली, मारजूम, परचेली, चिकपाल, कौरगांव, चेरपाल, मंगनार, कौशलनार, कामालूर, कुपेर, बासनपुर और झिरका गांव की स्कूलों में नक्सलियों ने चुनाव के दौरान कुछ नारे लिखे थे, जिन्हें अभी तक नहीं मिटाया गया है.

'नारों को मिटाने के दिए निर्देश'
जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि 'स्‍कूल के दीवारों पर नक्सली संदेश मेरे पदभार लेने से पहले के हैं. पदभार लेने के बाद मैंने ऐसे सभी संदेशों को मिटवाने के लिए सभी बीईओ और प्रधान पाठकों को निर्देशित किया है. साथ ही मिटवाने के बाद स्‍वच्‍छ दीवार के फोटाग्राफ्स मंगवाए हैं'.

फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं छात्र-छात्राएं
दूसरी तस्वीर, फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे ये छात्र-छात्राएं भी दंतेवाड़ा में ही मौजूद सरकारी स्कूल के ही हैं. आपको यकीन नहीं हो रहा न. ये तस्वीर जावंगा में मौजूद आस्था विद्यामंदिर की है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे. इस छात्र-छात्राओं को देख पहली नजर में किसी को भी धोखा हो सकता है. NMDC के CSR मद से संचालित हो रहे इस स्कूल का रिजल्ट 100 फीसदी रहता है. यानी स्कूल में पढ़ने वाला हर छात्र परीक्षा में पास होता है.

स्मार्ट क्लास के जरिए होती है पढ़ाई
इस स्कूल में एक हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं. हैरानी की बात यह है कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर विद्यार्थी नक्सल प्रभावित इलाकों से आते हैं. आस्था विद्यामंदिर के प्राचार्य संतोष प्रधान ने बताया करीब 13 सौ बच्चे संस्था में पढ़ रहे हैं. सभी बच्चे नक्सल हिंसा पीड़ित हैं या फिर आनाथ हैं, स्कूल में स्मार्ट क्लास भी चल रही है. सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है.

सरकार दे रही स्कूल पर ध्यान
सिस्टम की भी इस स्कूल पर खास इनायत रहती है. कई बार तो टीचर बेंच पर बैठ जाते हैं और छात्र खुद उनकी जगह पर खड़े होकर साथियों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं.

तस्वीरें झूठ नहीं बोलती
हमने आपको दो तस्वीरें दिखाकर यह बताने की कोशिश की कैसे सिस्टम के फोकस ने किसी की जिंदगी में सवेरा ला दिया और कैसे किसी की आंखें आज भी प्रशासन से मदद की राह देख रही है. शायद यह तस्वीरें ही हैं जो इंडिया भी भारत के बीच का अंतर सबसे सामने लाने के लिए काफी हैं.

Intro:एक तरफ हाईटेक एजुकेशन दूसरी ओर नक्‍सली संदेश का वाचन करते हैं छात्र



दंतेवाड़ा। जिले में शिक्षा की दो तस्‍वीरें उभरकर सामने आ रही है। एक तरफ हाईटेक एजुकेशन गीदम स्थित जावंगा में नर्सरी से ही प्रारंभ हो जाती है। वही अंदरूनी इलाकों में दहशतजदा शिक्षा नौनिहाल पा रहे हैं। अरनपुर जगरगुंडा इलाके पोटाली स्‍कूल में लिखे नक्‍सली नारों का वाचन स्‍कूल में घुसते ही बच्‍चे करते हैं। शिक्षकों केी लिए बरसात में जा पाना एक बड़ा संघर्ष है। सड़के कटी हुई हैं। पुरानी सरकारी इमारतें नक्‍सलियों ने तोड़कर मकड़ी का जाल बना दिया है। इनको देखकर लोग सिहर उठते हैं। प्रशासनिक अधिकारी भी यहां गाहे बगाहे ही पहुंचते हैं। यहां स्थित स्‍कूलों में प्रवेशोत्‍सव नहीं मनाया जाता है। बच्‍चों को तालिम के रूप में नक्‍सली नारे और उनकी कार्यशैली ही देखने को मिलती है।
Body:
जावंगा स्थित आस्‍था विद्या मंदिर में बच्‍चें फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे हैं। यहां के बच्‍चों का आत्‍म विश्‍वास बहुत मजबूत है। कई बार शिक्षक पढ़ाने के बाद बच्‍चों की टेबल पर बैठ जाते हैं और बच्‍चे टीचर बनकर क्‍लास लेते हैं। 1200  से अधिक बच्‍चों का यह स्‍कूल शत प्रतिशत रिजल्‍ट देता है। यहां के 90 प्रतिशत से अधिक बच्‍चे प्रथम श्रेणी में पास होते हैं। एनएमडीसी सीएसआर मद से इस स्‍कूल का संचालन हो रहा है। इस स्‍कूल के लिए प्रतिवर्ष तकरीबन तीन से चार करोड़ रूपए व्‍यय किया जाता है। स्‍कूल में ज्‍यादातर बच्‍चे नक्‍सल हिंसा पीडि़त ही हैं। इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों की आस्‍था विद्या मंदिर के प्रबंधन पर बारिकी से नजर रहती है। यही वजह है कि यह स्‍कूल बुलंदियों को छू रहा है। अंदरूनी इलाकों के स्‍कूल की दशा दिशा बदलने के लिए मकबूल प्रयास प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से दो दशकों से नही किए गए हैं।

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माओवाद की उपराजधानी के स्‍कूलों का हाल

अरनपुर जगरगुंडा इलाके को माओवाद की उप राजधानी कहा जाता है। कहने के लिए यहां पांच कैंपों की स्‍थापना की जा चुकी है। विकास के लिए हर संभव प्रयास होने के बावजूद नक्‍सलियों की धमक कम नही हुई। आज भी जिले के नीलावाया, बुरगुम, पोटाली, किकिरपाल,कुटरेम, हिरोली, मारजूम, परचेली, चिकपाल, कौरगांव, चेरपाल,मंगनार, कौशलनार, कामालूर, कुपेर, बासनपुर, झिरका आदि गांव के स्‍कूली दीवारों पर नक्‍सली संदेश मौजूद हैं। बच्‍चे प्रतिदिन इसका वाचन करते स्‍कूल में प्रवेश करते हैं। इसी तरह छुट्टी होने पर ऊंची आवाज में नक्‍सली संदेशों को दोहरते घर लौटते हैं।

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Conclusion:क्‍या कहते हैं जिम्‍मेदार

-जिला शिक्षाधिकारी राजेश कर्मा का कहना है कि स्‍कूल के दीवारों पर नक्‍सली संदेश मेरे पदभार लेने से पहले के हैं। पदभार लेने के बाद मैंने ऐसे सभी संदेशों को मिटवाने सभी बीईओ और प्रधान पाठकों को निर्देशित किया है। साथ ही मिटवाने के बाद स्‍वच्‍छ दीवार के फोटाग्राफ्स वाट्सअप पर मंगवाए हैं।
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आस्था विद्यामंदिर के प्राचार्य संतोष प्रधान ने बताया करीब 13 सौ बच्चे संस्था में पढ़ रहे है। सभी बच्चे नक्सल हिंसा पीड़ित है या फिर आनाथ है। स्कूल में स्मार्ट क्लास भी चल रही है। सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है।
Last Updated : Aug 1, 2019, 7:18 PM IST
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