दंतेवाड़ा: पहली तस्वीर अरनपुर जगरगुंडा के पोटाली स्कूल की. लोकतंत्र के महापर्व का विरोध करते हुए लाल आतंक ने अपने काले मंसूबों को विद्यालय की दीवार पर उकेरा था. जो आज भी वहां मौजूद है. इसका सबसे बड़ा साइडइफेक्ट यह है कि देश का भविष्य हर रोज इसका दीदार करता है और नक्सलियों की ये जुबान उनके जेहन में उतरती जा रही है. बावजूद इसके सिस्टम है कि इसे मिटाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा है.
ऐसा नहीं है कि यही एकमात्र समस्या है. स्कूल तक पहुंचने के रास्ते दुर्गम हैं और बरसात के दिनों में तो शिक्षकों के लिए विद्यालय तक पहुंचना किसी जंग लड़ने के कम नहीं है. इन स्कूलों में प्रवेशोत्सव तक नहीं मनाया जाता प्रशासन के अफसर भी गाहे-बगाहे ही यहां पहुंचते हैं.
स्कूलों की दीवार पर नक्सलियों ने लिखे नारे
अरनपुर और जगरगुंडा को नक्सलियों की उपराजधानी कहा जाता है. इस इलाके में सुरक्षाबलों ने पांच कैंप लगाए थे. बावजूद इसके जिले के नीलावाया, बुरगुम, पोटाली, किकिरपाल, कुटरेम, हिरोली, मारजूम, परचेली, चिकपाल, कौरगांव, चेरपाल, मंगनार, कौशलनार, कामालूर, कुपेर, बासनपुर और झिरका गांव की स्कूलों में नक्सलियों ने चुनाव के दौरान कुछ नारे लिखे थे, जिन्हें अभी तक नहीं मिटाया गया है.
'नारों को मिटाने के दिए निर्देश'
जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि 'स्कूल के दीवारों पर नक्सली संदेश मेरे पदभार लेने से पहले के हैं. पदभार लेने के बाद मैंने ऐसे सभी संदेशों को मिटवाने के लिए सभी बीईओ और प्रधान पाठकों को निर्देशित किया है. साथ ही मिटवाने के बाद स्वच्छ दीवार के फोटाग्राफ्स मंगवाए हैं'.
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं छात्र-छात्राएं
दूसरी तस्वीर, फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे ये छात्र-छात्राएं भी दंतेवाड़ा में ही मौजूद सरकारी स्कूल के ही हैं. आपको यकीन नहीं हो रहा न. ये तस्वीर जावंगा में मौजूद आस्था विद्यामंदिर की है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे. इस छात्र-छात्राओं को देख पहली नजर में किसी को भी धोखा हो सकता है. NMDC के CSR मद से संचालित हो रहे इस स्कूल का रिजल्ट 100 फीसदी रहता है. यानी स्कूल में पढ़ने वाला हर छात्र परीक्षा में पास होता है.
स्मार्ट क्लास के जरिए होती है पढ़ाई
इस स्कूल में एक हजार से ज्यादा छात्र-छात्राएं पढ़ाई करते हैं. हैरानी की बात यह है कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर विद्यार्थी नक्सल प्रभावित इलाकों से आते हैं. आस्था विद्यामंदिर के प्राचार्य संतोष प्रधान ने बताया करीब 13 सौ बच्चे संस्था में पढ़ रहे हैं. सभी बच्चे नक्सल हिंसा पीड़ित हैं या फिर आनाथ हैं, स्कूल में स्मार्ट क्लास भी चल रही है. सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान की जा रही है.
सरकार दे रही स्कूल पर ध्यान
सिस्टम की भी इस स्कूल पर खास इनायत रहती है. कई बार तो टीचर बेंच पर बैठ जाते हैं और छात्र खुद उनकी जगह पर खड़े होकर साथियों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं.
तस्वीरें झूठ नहीं बोलती
हमने आपको दो तस्वीरें दिखाकर यह बताने की कोशिश की कैसे सिस्टम के फोकस ने किसी की जिंदगी में सवेरा ला दिया और कैसे किसी की आंखें आज भी प्रशासन से मदद की राह देख रही है. शायद यह तस्वीरें ही हैं जो इंडिया भी भारत के बीच का अंतर सबसे सामने लाने के लिए काफी हैं.