दंतेवाड़ा :बस्तर की संस्कृति के कई रंग हैं. आपको बता दें कि बस्तर के दशहरा के जैसे ही दंतेवाड़ा की फागुन मड़ई भी पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है . मां दंतेश्वरी के आंगन में होली खेलने के लिए सिर्फ बस्तर से ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के देवी देवता आते हैं. आदिवासी परंपराओं के पीछे जो भाव, दर्शन और कथाएं हैं, उसे जाने-समझे बिना छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पहचानना असंभव है.
छत्तीसगढ़ के विशेष परंपराओं को सहेजना का काम : भूपेश सरकार ने अपनी गौरवशाली अनूठी परंपराओं और तीज-त्यौहारों के लिए कई तरह की घोषणाएं की हैं. गांव-गांव में स्थित देवगुड़ियों के संरक्षण का काम भी इसी उद्देश्य के साथ शुरू किया गया है. आदिवासी परंपराओं को आगे बढ़ाने वाले पुजारी, बैगा, गुनिया, मांझी, हाट पहरिया, बजा मोहरिया को राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना में शामिल किया गया है.
ये भी पढ़ें- बस्तर का त्रिवेणी परिसर समर्पित नक्सलियों के लिए बनेगा नजीर
आदिवासियों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने की घोषणाएं : मुख्यमंत्री ने इस मौके पर कहा कि '' इस बार के बजट में कोटवारों, गांव के पटेलों, मध्यान्ह भोजन तैयार करने वाले रसोइयों, स्कूलों के स्वच्छता कर्मचारियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी सहायिकाओं, मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिनों और होमगार्ड के जवानों के मानदेय में वृद्धि की गई है. राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना के जरिए छत्तीसगढ़ में भगवान राम से जुड़ी ऐसी ही स्मृतियों को सहेजने का काम किया जा रहा है. राज्य सरकार ने इस साल के बजट में भी छत्तीसगढ़ के तीज त्यौहारों और परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए ‘मुख्यमंत्री आदिवासी परब सम्मान निधि योजना’ की भी घोषणा की है.''