बिलासपुर: बिलासपुर में पांच हजार साल पुरानी भाषा को आज भी जिंदा रखा गया है. यहां पाणिनीय शोध संस्थान संस्कृत एकेडमी में संस्कृत सीखने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इस संस्थान में भारत के लोग कम हैं हालांकि विदेश के छात्रों की संख्या यहां अधिक है. बिलासपुर का संस्कृत एकेडमी अब तक हजारों विदेशी छात्रों को संस्कृत सीखा चुका है. इस संस्थान में महिला प्रोफेसर और उनके पति सालों से विदेशियों और भारतीयों को संस्कृत का ज्ञान दे रहे हैं.
देवों की भाषा है संस्कृत: संस्कृत भाषा पांच हजार साल से भी अधिक पुरानी भाषा है. ये भाषा देवों की भाषा कहलाती है. यही कारण है कि भारत में संस्कृत भाषा का काफी महत्व है. पुराणों से लेकर भागवत और रामायण भी सस्कृत में लिखी गई है. इस भाषा से मंत्रोच्चार किया जाता है. संस्कृत भाषा का अपना एक अलग ही महत्व है. धार्मिक आयोजनों के साथ ही मंत्र और खुफिया बातचीत में संस्कृत भाषा का इस्तेमाल सदियों से होता आ रहा है. संस्कृत भाषा आजादी के समय सबसे ज्यादा उपयोग किया गया है क्योंकि अंग्रेजों को संस्कृत नहीं आती थी.
अपने रिटायरमेंट से पहले ही मैंने और मेरे पति ने इस संस्थान की शुरुआत की थी. 100 से अधिक देशों के बच्चे आकर हमसे संस्कृत सीख चुके हैं. इस समय भी कई ऐसे छात्र हैं, जो दूसरे देश जैसे नेपाल और अमेरिका से आकर संस्कृत सीख रहे हैं. आज के समय में जितना महत्व संस्कृत को भारत के लोग नहीं देते, उसे कहीं ज्यादा महत्व विदेश के लोग इस भाषा को दे रहे हैं. विदेशी संस्कृत का महत्व समझ रहे हैं. -प्रो पुष्पा दीक्षित, एकेडमी की संचालिका
दान से चलता है ये संस्थान: संचालिका प्रो. पुष्पा दीक्षित ने बताया कि,"वो और उनके पति दोनों ही रिटायर हो चुके हैं. अपने रिटायरमेंट से पहले ही वे अकादमी की शुरुआत किए थे. आज उनके पास से अब तक हजारों बच्चे संस्कृत सीख चुके हैं. उनके रहने खाने की व्यवस्था संस्थान से ही किया गया है. पहले देश में गुरुकुल दान से चलता था. अब लोग दान देना बंद कर दिए हैं. हालांकि अभी कुछ दानदाता हैं, जो इस संस्थान को चलाने में दान करते हैं. इस दान के पैसे से ही वो अपना एकेडमी चला रही हैं."
संस्कृत सीखना और संस्कृत का उपयोग करना हर किसी को आना चाहिए. संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और संस्कृत के बिना कुछ भी नहीं है. ना भाषा ना सभ्यता और ना संस्कृति. संस्कृत नहीं तो बिना मूल का पेड़ होगा. बिना मूल का पेड़ हो ही नही सकता है. संस्कृत यानी व्याकरण, जब व्याकरण नहीं होगा तो भाषा नही होगी. वो व्याकरण के छात्र हैं और जिस व्याकरण को वह पढ़ते हैं उससे संस्कृत सीखने में बहुत समय लग सकता है. -टीकानाथ हरी, नेपाल का छात्र
6 माह में संस्कृत सीख रहे बच्चे: बता दें कि पाणिनीय शोध संस्थान संस्कृत एकेडमी की संचालिका प्रो. पुष्पा दीक्षित ने संस्कृत को बहुत ही कम समय में सीखा रही हैं. लोगों को संस्कृत सिखाने में 12 साल का समय लग सकता है. हालांकि प्रोफेसर पुष्पा दीक्षित 6 माह में ही बच्चों को संस्कृत सीखा रही है. पाणिनीय शोध संस्थान संस्कृत एकेडमी में राजस्थान, उत्तराखंड, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के छात्र-छात्राएं भी संस्कृत सीख रहे हैं. बता दें कि इन छात्रों को संस्कृत सीखने के दौरान यहां ठहरने और खाने की भी व्यवस्था की गई है. संस्थान में रहकर कई बच्चे संस्कृत सीख रहे हैं.
संस्कृत भाषा सबसे शुद्ध और सबसे पुरानी भाषा है. इसकी मांग अब अमेरिका जैसे देशों में होने लगी है. यही कारण है कि मैं यहां संस्कृत सीखने आया हूं.-अशोक विश्वनाथन, अमेरिकी छात्र
जन-जन तक भाषा को पहुंचाने का काम कर रही संस्थान: पत्राचार के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जब कोई मंसूबा तैयार करते थे तो उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए संस्कृत भाषा का उपयोग किया करते थे. यही कारण है कि देश में आजादी के समय से लेकर अब तक संस्कृत को जिंदा रखने की कोशिश लगातार जारी है. संस्कृत को सीखने वाले आज भले ही कम लोग हैं लेकिन इस भाषा को आगे जन-जन तक पहुंचाने का काम बिलासपुर की पाणिनीय शोध संस्थान संस्कृत एकेडमी कर रही है.