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मरवाही का महासमर: जोगी के हाथ में क्या, उपचुनाव का किंग कौन ?

17 अक्टूबर का दिन जेसीसी(जे) के लिए किसी काला दिन से कम नहीं था. छानबीन समिति ने पहले अमित जोगी फिर ऋचा जोगी का भी नामांकन फॉर्म रद्द हो गया है. इस तरह से जोगी परिवार का गढ़ कहे जाने वाली मरवाही सीट पर जोगी परिवार का पत्ता साफ होता दिख रहा है. इस तमाम सियासी खेल के बीच होने वाले उठा-पटक को जेसीसी(जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने अंधा कानून का नाम दिया है.

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मरवाही का महासमर
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Published : Oct 18, 2020, 6:04 PM IST

बिलासपुर: 17 अक्टूबर का दिन छत्तीसगढ़ की तीसरी शक्ति के रूप में उभरी जेसीसी(जे) के लिए काला दिन साबित हुआ. अमित जोगी और उनके समर्थकों को यह उम्मीद थी कि देर-सबेर ही सही उन्हें चुनाव लड़ने का मौका जरूर मिलेगा, लेकिन आखिरकार अमित के बाद ऋचा जोगी के नामांकन फॉर्म को भी रद्द कर दिया गया. नामांकन फॉर्म रद्द होते ही सियासी गलियारों में हलचल मच गई. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है. इस तरह से जोगी परिवार का गढ़ कहे जाने वाली मरवाही सीट पर जोगी परिवार का पत्ता साफ होता दिख रहा है. इस तमाम सियासी खेल के बीच होने वाले उठा-पटक को जेसीसी(जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने अंधा कानून का नाम दिया है.

मरवाही उपचुनाव का किंग कौन ?

पर्दे के सामने और पीछे चल रहे इस सियासी खेल को लेकर जब अमित जोगी से उनका पक्ष जानना चाहा तो अमित जोगी की भावुक प्रतिक्तिया भी सामने आई. प्रदेश सरकार को वो खुली चुनौती देते नजर आए. अमित जोगी ने कहा कि सरकार मुझे मरवाही के लोगों के दिल से नहीं निकाल सकती है.

अमित जोगी के बयान की खास बातें..

  • कातिल ही मुंसिफ़ है, क्या मेरे हक़ में फैसला देगा .
  • प्रदेश सरकार बदलापुर और जोगेरिया की भावना से काम की है.
  • यह मरवाही के जनता का अपमान है.
  • सरकार भय में थी और इसी कारण से जोगी परिवार के खिलाफ एक राजनीतिक षड्यंत्र किया गया.
  • वो जनता की अदालत में जाएंगे और वहीं फैसला होगा.
  • पूरी कार्रवाई हम सबको अंधेरे में रखकर की गई है.
  • जनता की आवाज मीडिया के साथियों को भी अंधेरे में रखा गया है.
  • वो अकेले ही कुश्ती लड़ रहे हैं इसलिए यहां कोई जीतने वाला नहीं है.
  • फैसले की कॉपी आपत्तिकर्ता के पास तो पहले पहुंच गया लेकिन मेरे पास देर से तब पहुंचा जब न्याय पाने के हमारे तमाम मार्ग बंद हो चुके थे.

दरअसल, अजीत जोगी के दिवंगत होने के बाद हाई प्रोफाइल सीट मरवाही पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई थी. यहां एक दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद इसलिए की जा रही थी क्योंकि मरवाही अजीत जोगी के गढ़ के रूप में माना जाता है. बीते दो दशकों से यहां जोगी परिवार का दबदबा बना हुआ है. लिहाजा यह स्पष्ट हो चुका था कि अब यहां मुक़ाबला सीधे तौर पर कांग्रेस और जेसीसी(जे) के संभावित प्रत्याशी अमित जोगी के बीच ही होना है.

आखिरी फैसला पार्टी की कोर कमेटी का

इस बीच जाति प्रकरण का जिन्न एकबार फिर बाहर आया और इस बार जाति प्रमाणपत्र के मामले में ऋचा जोगी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. यह कयास लगाए जा रहे थे कि यदि अमित जोगी किसी भी तरह से चुनाव लड़ने से वंचित हुए तो उनकी पत्नी ऋचा जोगी को चुनाव लड़ने का अवसर मिल जाएगा, लेकिन जाति प्रमाणपत्र मामले में जाति छानबीन समिति के निर्णय का हवाला देते हुए दोनों पति-पत्नी का नामांकन रद्द कर दिया गया. प्रदेश सरकार की जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति ने अजीत जोगी के 1967 में बने जाति प्रमाणपत्र को फर्जी बताया है, जिसका खामियाजा आज पूरे जोगी परिवार को भुगतना पड़ रहा है. अमित ने कहा कि प्रदेश में अंधा कानून चल रहा है और कानून और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही है. इस चुनाव में अपनी भूमिका के सवाल पर बोलते हुए अमित जोगी ने कहा कि आगे हमारी पार्टी की कोर कमेटी जो निर्णय लेगी हम उस पर काम करेंगे.

'आदेश की कॉपी प्राप्त हो गई'
अमित जोगी ने आरोप लगाते हुए यह भी कहा था कि उन्हें नामांकन रद्द करने के संबंध में कोई कॉपी प्राप्त नहीं हुई है, इस पर संतकुमार नेताम का कहना है कि उन्हें किसी भी तरह छानबीन समिति के आदेश की कॉपी प्राप्त हो गई, लेकिन कॉपी उन्हें कैसे मिली उन्होंने ये नहीं बताया, जिसपर अमित जोगी लगातार आरोप लगा रहे हैं.


'फैसला आदिवासी समाज के हक में'

इस मामले में कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी सिंह ने छानबीन समिति के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह फैसला आदिवासी समाज के हक में आया है. आरपी सिंह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी हर चुनौती को गंभीरता से लेती है. मरवाही उपचुनाव को भी हमने गंभीरता से लिया है, सामने चाहे जितने दल हों उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.


'निर्दलीय को समर्थन देगा जोगी परिवार'

अमित जोगी ने उनसे पहले आपत्तिकर्ताओं को आदेश की कॉपी मिलने का गंभीर आरोप लगाया था. मरवाही सीट पर 3 नंवबर को चुनाव होने वाले हैं ऐसे में जोगी परिवार को टिकट कट जाना उनके लिए किसी झटके से कम नहीं है. अब अमित जोगी का अगला कदम कोर्ट की ओर होगा या कुछ और ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मरवाही उपचुनाव राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहेगा. देखना यह भी दिलचस्प होगा कि क्या जेसीसी(जे) किसी निर्दलीय को अपना समर्थन देती है और निर्दलीय के सहारे सहानुभूति फैक्टर को भुनाने में सफल होती है.

बिलासपुर: 17 अक्टूबर का दिन छत्तीसगढ़ की तीसरी शक्ति के रूप में उभरी जेसीसी(जे) के लिए काला दिन साबित हुआ. अमित जोगी और उनके समर्थकों को यह उम्मीद थी कि देर-सबेर ही सही उन्हें चुनाव लड़ने का मौका जरूर मिलेगा, लेकिन आखिरकार अमित के बाद ऋचा जोगी के नामांकन फॉर्म को भी रद्द कर दिया गया. नामांकन फॉर्म रद्द होते ही सियासी गलियारों में हलचल मच गई. आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है. इस तरह से जोगी परिवार का गढ़ कहे जाने वाली मरवाही सीट पर जोगी परिवार का पत्ता साफ होता दिख रहा है. इस तमाम सियासी खेल के बीच होने वाले उठा-पटक को जेसीसी(जे) के अध्यक्ष अमित जोगी ने अंधा कानून का नाम दिया है.

मरवाही उपचुनाव का किंग कौन ?

पर्दे के सामने और पीछे चल रहे इस सियासी खेल को लेकर जब अमित जोगी से उनका पक्ष जानना चाहा तो अमित जोगी की भावुक प्रतिक्तिया भी सामने आई. प्रदेश सरकार को वो खुली चुनौती देते नजर आए. अमित जोगी ने कहा कि सरकार मुझे मरवाही के लोगों के दिल से नहीं निकाल सकती है.

अमित जोगी के बयान की खास बातें..

  • कातिल ही मुंसिफ़ है, क्या मेरे हक़ में फैसला देगा .
  • प्रदेश सरकार बदलापुर और जोगेरिया की भावना से काम की है.
  • यह मरवाही के जनता का अपमान है.
  • सरकार भय में थी और इसी कारण से जोगी परिवार के खिलाफ एक राजनीतिक षड्यंत्र किया गया.
  • वो जनता की अदालत में जाएंगे और वहीं फैसला होगा.
  • पूरी कार्रवाई हम सबको अंधेरे में रखकर की गई है.
  • जनता की आवाज मीडिया के साथियों को भी अंधेरे में रखा गया है.
  • वो अकेले ही कुश्ती लड़ रहे हैं इसलिए यहां कोई जीतने वाला नहीं है.
  • फैसले की कॉपी आपत्तिकर्ता के पास तो पहले पहुंच गया लेकिन मेरे पास देर से तब पहुंचा जब न्याय पाने के हमारे तमाम मार्ग बंद हो चुके थे.

दरअसल, अजीत जोगी के दिवंगत होने के बाद हाई प्रोफाइल सीट मरवाही पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी हुई थी. यहां एक दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद इसलिए की जा रही थी क्योंकि मरवाही अजीत जोगी के गढ़ के रूप में माना जाता है. बीते दो दशकों से यहां जोगी परिवार का दबदबा बना हुआ है. लिहाजा यह स्पष्ट हो चुका था कि अब यहां मुक़ाबला सीधे तौर पर कांग्रेस और जेसीसी(जे) के संभावित प्रत्याशी अमित जोगी के बीच ही होना है.

आखिरी फैसला पार्टी की कोर कमेटी का

इस बीच जाति प्रकरण का जिन्न एकबार फिर बाहर आया और इस बार जाति प्रमाणपत्र के मामले में ऋचा जोगी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. यह कयास लगाए जा रहे थे कि यदि अमित जोगी किसी भी तरह से चुनाव लड़ने से वंचित हुए तो उनकी पत्नी ऋचा जोगी को चुनाव लड़ने का अवसर मिल जाएगा, लेकिन जाति प्रमाणपत्र मामले में जाति छानबीन समिति के निर्णय का हवाला देते हुए दोनों पति-पत्नी का नामांकन रद्द कर दिया गया. प्रदेश सरकार की जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति ने अजीत जोगी के 1967 में बने जाति प्रमाणपत्र को फर्जी बताया है, जिसका खामियाजा आज पूरे जोगी परिवार को भुगतना पड़ रहा है. अमित ने कहा कि प्रदेश में अंधा कानून चल रहा है और कानून और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही है. इस चुनाव में अपनी भूमिका के सवाल पर बोलते हुए अमित जोगी ने कहा कि आगे हमारी पार्टी की कोर कमेटी जो निर्णय लेगी हम उस पर काम करेंगे.

'आदेश की कॉपी प्राप्त हो गई'
अमित जोगी ने आरोप लगाते हुए यह भी कहा था कि उन्हें नामांकन रद्द करने के संबंध में कोई कॉपी प्राप्त नहीं हुई है, इस पर संतकुमार नेताम का कहना है कि उन्हें किसी भी तरह छानबीन समिति के आदेश की कॉपी प्राप्त हो गई, लेकिन कॉपी उन्हें कैसे मिली उन्होंने ये नहीं बताया, जिसपर अमित जोगी लगातार आरोप लगा रहे हैं.


'फैसला आदिवासी समाज के हक में'

इस मामले में कांग्रेस के प्रवक्ता आरपी सिंह ने छानबीन समिति के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह फैसला आदिवासी समाज के हक में आया है. आरपी सिंह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी हर चुनौती को गंभीरता से लेती है. मरवाही उपचुनाव को भी हमने गंभीरता से लिया है, सामने चाहे जितने दल हों उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.


'निर्दलीय को समर्थन देगा जोगी परिवार'

अमित जोगी ने उनसे पहले आपत्तिकर्ताओं को आदेश की कॉपी मिलने का गंभीर आरोप लगाया था. मरवाही सीट पर 3 नंवबर को चुनाव होने वाले हैं ऐसे में जोगी परिवार को टिकट कट जाना उनके लिए किसी झटके से कम नहीं है. अब अमित जोगी का अगला कदम कोर्ट की ओर होगा या कुछ और ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन मरवाही उपचुनाव राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहेगा. देखना यह भी दिलचस्प होगा कि क्या जेसीसी(जे) किसी निर्दलीय को अपना समर्थन देती है और निर्दलीय के सहारे सहानुभूति फैक्टर को भुनाने में सफल होती है.

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