बिलासपुर : जेल में बंद बंदियों के अर्जित राशि से पीड़ित को भुगतान नहीं होने पर हाईकोर्ट ने तीन माह में मसौदे को पूरा करने का निर्देश दिया है. आपको बता दें कि बंदियों को जेल के अंदर काम करने पर उन्हें रोजी भुगतान किया जाता है. इस भुगतान की राशि में से कुछ हिस्सा पीड़ित को दिया जाता है. जेल में बंद बंदियों की अर्जित मजदूरी में पचास परसेंट रकम पीड़ित या उसके परिवार को देने का प्रावधान है. ऐसे ही एक मामले में ये राशि जारी नहीं करने पर हाईकोर्ट ने शासन को कोर्ट के निर्णय के 3 माह के अंदर मसौदा नियम को अंतिम रूप देकर राशि देने का आदेश दिया है.
भुगतान नहीं होने पर फिर से याचिका लगाने की दी छूट : डिवीजन बेंच ने 3 माह में ऐसा नहीं होने पर याचिकाकर्ता को फिर से एक बार जनहित याचिका कोर्ट में लाने की छूट भी दी है. मामले में 3 माह में मसौदे को अंतिम रूप देने के निर्देश कोर्ट ने दिए हैं. संजय साहू ने अपने वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई है. इसमें पीड़ित के परिजनों को जमा हुई राशि वितरित करने का आदेश देने का अनुरोध किया है.
गृह सचिव और मुख्य सचिव बनाए जाएंगे पक्षकार : इस मामले में कोर्ट में याचिकाकर्ता ने गृह सचिव और मुख्य सचिव को पक्षकार बनाने की मांग की है. मामले में सुनवाई के दौरान शासन के वकील ने बताया कि प्रावधान के अनुसार मसौदे को अंतिम रूप दिया जा रहा है. इसके लिए कुछ समय की आवश्यकता होगी. शासन के जवाब के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने इसे स्वीकार करते हुए 3 माह के अंदर इसे अंतिम रूप देने का आदेश दिया है.
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आपको बता दें कि प्रदेश के सभी जिलों में ऐसे मामलों में 20 करोड़ से ज्यादा की रकम जमा है.जो पीड़ित या उसके परिवार को दिया जाना है. जेल अधिनियम 1894 की धारा 36 (ए) के अनुसार परिवार के सदस्यों के लिए मुआवजे के लिए निधि का निर्माण बंदियों के उनके रोजगार के लिए समय-समय पर 50 प्रतिशत भुगतान किया जाएगा. बंदियों के एक महीने में अर्जित मजदूरी की कुल राशि को एक अलग सामान्य निधि में रखा जाएगा और जमा किया जाएगा. इसका उपयोग इस अपराध के पीड़ितों या उन परिवारों को भुगतान करने के लिए किया जाता है.