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यहां खुद बजरंगबली लड़ते हैं केस और सुनाते हैं फैसला ऑन द स्पॉट - बिलासपुर की खबरें

बिलासपुर के श्री बजरंग पंचायती मंदिर की स्थापना सौ साल से भी पहले हुई थी. यहां विराजमान बजरंगबली की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. इस इलाके के लोगों के लिए बजरंगबली ही आज भी वकील भी हैं और जज भी. यहां के लोग किसी भी विवाद के लिए थाना या कोर्ट-कचहरी न जाकर बजरंगबली के दरबार में ही हाजिरी लगाते हैं. तो आइये जानते उस मंदिर के इतिहास को.

Shri Bajrang Panchayati Mandir of Bilaspur
बिलासपुर का श्री बजरंग पंचायती मंदिर
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Published : Sep 23, 2021, 5:45 PM IST

Updated : Sep 23, 2021, 6:38 PM IST

बिलासपुर : न कोर्ट-कचहरी (Court Office) न ही पुलिस थाना (police station) जाने की ही जरूरत. किसी विवाद के निपटारे में पंचों (punch) की दरकार भी नहीं होती, लेकिन मामलों का निपटारा यहां झटपट हो जाता है. हम बात कर रहे हैं कि बिलासपुर शहर के तालापारा स्थित श्री बजरंग पंचायती मंदिर (Shri Bajrang Panchayati Mandir) की. इस इलाके के लोगों के लिए थानेदार, वकील और जज भी संकटमोचक बजरंगबली ही हैं. बजरंगबली ही यहां भक्तों के केस (Cases Of Devotees) लड़ते हैं और फैसले भी "ऑन द स्पॉट" (Verdict On The Spot) सुनाते हैं. इस मंदिर की ख्याति दूर-दराज के इलाकों तक फैली है. स्थानीय लोगों का कहना है कि 100 साल से भी ज्यादा समय से ये मंदिर यहां स्थापित है. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर में आज उच्च न्यायालय है. कई थाने हैं भी हैं, लेकिन यहां लोग पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी अपने विवादों के निपटारे के लिए इसी मंदिर आते हैं.

बिलासपुर का श्री बजरंग पंचायती मंदिर

आज भी लोग कोर्ट-कचहरी जाने से करते हैं परहेज

आज के आधुनिक जमाने में लोग छोटी-छोटी बात और विवाद पर थाना और कोर्ट-कचहरी चले जाते हैं. लेकिन किसी जमाने में बिलासपुर के तालापारा स्थित श्री बजरंग पंचायती मंदिर में चली आ रही पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए इस इलाके के लोग आज भी थाना और कोर्ट-कचहरी नहीं जाते. वे अपने विवादों का निपटारा इसी बजरंगबली मंदिर में कर लेते हैं. यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बजरंगबली उनकी समस्या सुनते हैं और उचित फैसला भी सुनाने के लिए प्रेरणा भी देते हैं. इन बजरंगबली को यहां न्यायाधीश कहा जाता है.

100 साल से भी ज्यादा पुराना है मंदिर का इतिहास

हालांकि बदलते वक्त और कानून व्यवस्था के बीच वर्षों से चली आ रही इस पंचायती मंदिर की परंपरा अब थोड़ी कम जरूर हो गई है, लेकिन बुजुर्गों ने आज भी इस परंपरा को सहेजे रखा है. जैसा कि इस मंदिर का नाम श्री बजरंग पंचायती मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास 100 से भी ज्यादा पुराना है. करीब 100 साल पूर्व यह इलाका ग्रामीण क्षेत्र में आता था. यहां रहने वाले एक सुखरू नाई को एक रात हनुमान जी का स्वप्न आया. हनुमान जी ने उन्हें बताया कि उनकी प्रतिमा एक पीपल के पेड़ के नीचे दबी है. वह उसे निकाल ले और पेड़ के चबूतरे में स्थापित कर दे.

स्थापित हुई प्रतिमा और पीपल की छांव में लगने लगी पंचायत

हनुमान जी का आदेश मिलते ही सुखरू नाई ने जमीन में दबे हनुमान जी की प्रतिमा को निकाला और ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी. ग्रामीणों ने इसे चमत्कार मानकर पीपल पेड़ के नीचे दबी प्रतिमा की स्थापना कर दी. क्योंकि पीपल के वृक्ष के नीचे छाया होती है और हनुमान जी की प्रतिमा इसके पास स्थापित की गई, इसलिए यहीं पर ग्राम पंचायत लगने लगी. गांव के सभी धर्मों के लोग अपने आपसी झगड़े, पारिवारिक झगड़े और जमीन विवाद का मामला लेकर इसी पंचायत में आने लगे. पंचायत की मदद से अपने झगड़ों को सुलझाते हुए इसे हनुमान जी का अंतिम निर्णय मानने लगे. इस मंदिर का नया और सुखद अध्याय यहीं से शुरू हो गया.


लोगों को ब्रिटिश कानून से ज्यादा भगवान का निर्णय मान्य था

इस मंदिर की स्थापना को लेकर कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि ब्रिटिश शासन काल के समय बिलासपुर में केवल एक ही थाना होता था. उसमें भी महज 3 ही सिपाही थे. यहां के लोगों को ब्रिटिश कानून से ज्यादा ग्राम पंचायत और भगवान के निर्णय ही मान्य थे. जहां यह श्री बजरंग पंचायती मंदिर है, इस क्षेत्र में हिंदू कम और मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा रहते हैं. यहां आज तक किसी भी प्रकार के विवाद नहीं हुए. इस क्षेत्र के हिंदू-मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग आज भी गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए एक साथ रहते हैं.


अपने प्रतिनिधि की वाणी से भगवान करते थे फैसला

कहा जाता है कि यहां जो पंचायत लगती थी, उसमें 5 लोग जज के रूप में बैठते थे. यही पांचों लोगों के मामले सुनते थे. सबकी बातें सुनने के बाद कुछ देर तक सभी चुप रहते थे. फिर भगवान का आह्वान कर फैसला सुनाते थे. लोगों का मानना था कि कोई किसी का कितना भी करीबी हो और कितना भी उसका पक्ष लेकर फैसला सुनाना चाहे, लेकिन जो उसकी वाणी से फैसला निकलता था वह सच्चा फैसला होता था. क्योंकि यह बजरंगबली का फैसला होता था. बोली भले उन पंचों की होती थी, लेकिन वह फैसला बजरंगबली का ही होता था.

बिलासपुर : न कोर्ट-कचहरी (Court Office) न ही पुलिस थाना (police station) जाने की ही जरूरत. किसी विवाद के निपटारे में पंचों (punch) की दरकार भी नहीं होती, लेकिन मामलों का निपटारा यहां झटपट हो जाता है. हम बात कर रहे हैं कि बिलासपुर शहर के तालापारा स्थित श्री बजरंग पंचायती मंदिर (Shri Bajrang Panchayati Mandir) की. इस इलाके के लोगों के लिए थानेदार, वकील और जज भी संकटमोचक बजरंगबली ही हैं. बजरंगबली ही यहां भक्तों के केस (Cases Of Devotees) लड़ते हैं और फैसले भी "ऑन द स्पॉट" (Verdict On The Spot) सुनाते हैं. इस मंदिर की ख्याति दूर-दराज के इलाकों तक फैली है. स्थानीय लोगों का कहना है कि 100 साल से भी ज्यादा समय से ये मंदिर यहां स्थापित है. छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाले बिलासपुर में आज उच्च न्यायालय है. कई थाने हैं भी हैं, लेकिन यहां लोग पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए आज भी अपने विवादों के निपटारे के लिए इसी मंदिर आते हैं.

बिलासपुर का श्री बजरंग पंचायती मंदिर

आज भी लोग कोर्ट-कचहरी जाने से करते हैं परहेज

आज के आधुनिक जमाने में लोग छोटी-छोटी बात और विवाद पर थाना और कोर्ट-कचहरी चले जाते हैं. लेकिन किसी जमाने में बिलासपुर के तालापारा स्थित श्री बजरंग पंचायती मंदिर में चली आ रही पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हुए इस इलाके के लोग आज भी थाना और कोर्ट-कचहरी नहीं जाते. वे अपने विवादों का निपटारा इसी बजरंगबली मंदिर में कर लेते हैं. यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि बजरंगबली उनकी समस्या सुनते हैं और उचित फैसला भी सुनाने के लिए प्रेरणा भी देते हैं. इन बजरंगबली को यहां न्यायाधीश कहा जाता है.

100 साल से भी ज्यादा पुराना है मंदिर का इतिहास

हालांकि बदलते वक्त और कानून व्यवस्था के बीच वर्षों से चली आ रही इस पंचायती मंदिर की परंपरा अब थोड़ी कम जरूर हो गई है, लेकिन बुजुर्गों ने आज भी इस परंपरा को सहेजे रखा है. जैसा कि इस मंदिर का नाम श्री बजरंग पंचायती मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास 100 से भी ज्यादा पुराना है. करीब 100 साल पूर्व यह इलाका ग्रामीण क्षेत्र में आता था. यहां रहने वाले एक सुखरू नाई को एक रात हनुमान जी का स्वप्न आया. हनुमान जी ने उन्हें बताया कि उनकी प्रतिमा एक पीपल के पेड़ के नीचे दबी है. वह उसे निकाल ले और पेड़ के चबूतरे में स्थापित कर दे.

स्थापित हुई प्रतिमा और पीपल की छांव में लगने लगी पंचायत

हनुमान जी का आदेश मिलते ही सुखरू नाई ने जमीन में दबे हनुमान जी की प्रतिमा को निकाला और ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी. ग्रामीणों ने इसे चमत्कार मानकर पीपल पेड़ के नीचे दबी प्रतिमा की स्थापना कर दी. क्योंकि पीपल के वृक्ष के नीचे छाया होती है और हनुमान जी की प्रतिमा इसके पास स्थापित की गई, इसलिए यहीं पर ग्राम पंचायत लगने लगी. गांव के सभी धर्मों के लोग अपने आपसी झगड़े, पारिवारिक झगड़े और जमीन विवाद का मामला लेकर इसी पंचायत में आने लगे. पंचायत की मदद से अपने झगड़ों को सुलझाते हुए इसे हनुमान जी का अंतिम निर्णय मानने लगे. इस मंदिर का नया और सुखद अध्याय यहीं से शुरू हो गया.


लोगों को ब्रिटिश कानून से ज्यादा भगवान का निर्णय मान्य था

इस मंदिर की स्थापना को लेकर कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि ब्रिटिश शासन काल के समय बिलासपुर में केवल एक ही थाना होता था. उसमें भी महज 3 ही सिपाही थे. यहां के लोगों को ब्रिटिश कानून से ज्यादा ग्राम पंचायत और भगवान के निर्णय ही मान्य थे. जहां यह श्री बजरंग पंचायती मंदिर है, इस क्षेत्र में हिंदू कम और मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा रहते हैं. यहां आज तक किसी भी प्रकार के विवाद नहीं हुए. इस क्षेत्र के हिंदू-मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग आज भी गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए एक साथ रहते हैं.


अपने प्रतिनिधि की वाणी से भगवान करते थे फैसला

कहा जाता है कि यहां जो पंचायत लगती थी, उसमें 5 लोग जज के रूप में बैठते थे. यही पांचों लोगों के मामले सुनते थे. सबकी बातें सुनने के बाद कुछ देर तक सभी चुप रहते थे. फिर भगवान का आह्वान कर फैसला सुनाते थे. लोगों का मानना था कि कोई किसी का कितना भी करीबी हो और कितना भी उसका पक्ष लेकर फैसला सुनाना चाहे, लेकिन जो उसकी वाणी से फैसला निकलता था वह सच्चा फैसला होता था. क्योंकि यह बजरंगबली का फैसला होता था. बोली भले उन पंचों की होती थी, लेकिन वह फैसला बजरंगबली का ही होता था.

Last Updated : Sep 23, 2021, 6:38 PM IST
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