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कंगला मांझी सरकार: यहां आज भी रहते हैं 'आजाद हिंद फौज' के सिपाही - आजाद हिंद फौज के सिपाहियों की जिंदगी

आदिवासियों के लिए जल-जंगल-जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है.

Azad Hind Fauj soldiers in bilaspur
कंगला मांझी सरकार
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Published : Dec 5, 2019, 4:14 PM IST

Updated : Dec 5, 2019, 7:00 PM IST

बिलासपुर: हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्थापित की हुई आजाद हिंद फौज का उद्देश्य भले 1947 में ही पूरा हो गया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे आजाद हिंद फौज के हजारों आदिवासी सिपाही आज भी सेना की वर्दी पहने 'असली आजादी' की लड़ाई लड़ रहे हैं.

यहां आज भी रहते हैं 'आजाद हिंद फौज' के सिपाही

समाज के उत्थान के लिए कर रहे हैं काम
आदिवासियों के लिए जल-जंगल-जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है.

9 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़े थे
1896 में कांकेर (बस्तर) के तेलावट में जन्मे हीरा सिंह देव मांझी ने 1905 में 9 साल की उम्र से ही अंग्रेजी हुकूमत से लड़ना शुरू कर दिया था. मांझी ने 1910 में आदिवासी समुदाय के साथ अखिल भारतीय मददगार आदिमुलवासीजन संगठन बनाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. 1913 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सदस्यता ली और 1914 में गांधी जी से पहली बार मुलाकात की.

आज भी बरकरार है सांगठनिक ढ़ांचा
1920 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कहने पर कांकेर के हीरा सिंहदेव मांझी ने 57 आदिवासी समुदायों को साथ लेकर आदिवासियों की एक अलग आजाद हिंद फौज का गठन किया, जिसे कंगला मांझी सरकार नाम दिया गया. कंगला मांझी सरकार के सैनिकों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर आजाद देश के लिए संघर्ष किया. आज आजादी के 72 साल जब देश में बहुत कुछ बदल गया है, आदिवासियों की इस फौज ने अपना सांगठनिक ढांचा आज भी बरकरार रखा है.

आज तक नहीं मिली सरकार से कोई मदद
आजादी बाद भी 72 साल से अपना सांगठनिक ढाला चला रहे कंगला मांझी सरकार के सामने अब आर्थिक परेशानियां आने लगी हैं. आजादी की लड़ाई में विशेष योगदान देने वाली कंगला मांझी सरकार को आजादी के बाद के केंद्र या राज्य सरकार कभी कोई आर्थिक मदद नहीं मीला. कंगला मांझी सरकार के सैनिक बताते हैं कि वे अपनी निजी जरूरतों को कम कर बचे हुए पैसे से संगठन चला रहे हैं.

बेहद खराब है माली हालत
आर्थिक तंगियों से जूझ रहे सैनिक लंबे वक्त से सरकार से कुछ मांग कर रहे हैं, जिसमें सैनिक के परिवार एक सदस्य को नौकरी, 5-5 एकड़ कृषि योग्य जमीन शामिल है, लेकिन इनकी मांगों पर कभी विचार तक नहीं किया गया. कंगला मांझी सरकार के इन सैनिकों की माली हालत बेहद खराब है.

आज भी बरकरार लड़ने का जज्बा
अपने फौज की वर्दी पहनने वाले बुजुर्ग और उनके बच्चों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अब भी लगभग नगण्य है, लेकिन स्टार लगी हुई वर्दी और बैज लगाए इन जवानों में समाजवाद की कल्पना लेकर आज भी लड़ने का जज्बा बरकरार है. शायद यही कारण है कि चल-अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिए आज भी मांझी सैनिकों के बीच कंगला मांझी सरकार का स्टॉम्प पेपर चलन में है.

बिलासपुर: हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्थापित की हुई आजाद हिंद फौज का उद्देश्य भले 1947 में ही पूरा हो गया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे आजाद हिंद फौज के हजारों आदिवासी सिपाही आज भी सेना की वर्दी पहने 'असली आजादी' की लड़ाई लड़ रहे हैं.

यहां आज भी रहते हैं 'आजाद हिंद फौज' के सिपाही

समाज के उत्थान के लिए कर रहे हैं काम
आदिवासियों के लिए जल-जंगल-जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है.

9 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़े थे
1896 में कांकेर (बस्तर) के तेलावट में जन्मे हीरा सिंह देव मांझी ने 1905 में 9 साल की उम्र से ही अंग्रेजी हुकूमत से लड़ना शुरू कर दिया था. मांझी ने 1910 में आदिवासी समुदाय के साथ अखिल भारतीय मददगार आदिमुलवासीजन संगठन बनाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. 1913 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सदस्यता ली और 1914 में गांधी जी से पहली बार मुलाकात की.

आज भी बरकरार है सांगठनिक ढ़ांचा
1920 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कहने पर कांकेर के हीरा सिंहदेव मांझी ने 57 आदिवासी समुदायों को साथ लेकर आदिवासियों की एक अलग आजाद हिंद फौज का गठन किया, जिसे कंगला मांझी सरकार नाम दिया गया. कंगला मांझी सरकार के सैनिकों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर आजाद देश के लिए संघर्ष किया. आज आजादी के 72 साल जब देश में बहुत कुछ बदल गया है, आदिवासियों की इस फौज ने अपना सांगठनिक ढांचा आज भी बरकरार रखा है.

आज तक नहीं मिली सरकार से कोई मदद
आजादी बाद भी 72 साल से अपना सांगठनिक ढाला चला रहे कंगला मांझी सरकार के सामने अब आर्थिक परेशानियां आने लगी हैं. आजादी की लड़ाई में विशेष योगदान देने वाली कंगला मांझी सरकार को आजादी के बाद के केंद्र या राज्य सरकार कभी कोई आर्थिक मदद नहीं मीला. कंगला मांझी सरकार के सैनिक बताते हैं कि वे अपनी निजी जरूरतों को कम कर बचे हुए पैसे से संगठन चला रहे हैं.

बेहद खराब है माली हालत
आर्थिक तंगियों से जूझ रहे सैनिक लंबे वक्त से सरकार से कुछ मांग कर रहे हैं, जिसमें सैनिक के परिवार एक सदस्य को नौकरी, 5-5 एकड़ कृषि योग्य जमीन शामिल है, लेकिन इनकी मांगों पर कभी विचार तक नहीं किया गया. कंगला मांझी सरकार के इन सैनिकों की माली हालत बेहद खराब है.

आज भी बरकरार लड़ने का जज्बा
अपने फौज की वर्दी पहनने वाले बुजुर्ग और उनके बच्चों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अब भी लगभग नगण्य है, लेकिन स्टार लगी हुई वर्दी और बैज लगाए इन जवानों में समाजवाद की कल्पना लेकर आज भी लड़ने का जज्बा बरकरार है. शायद यही कारण है कि चल-अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिए आज भी मांझी सैनिकों के बीच कंगला मांझी सरकार का स्टॉम्प पेपर चलन में है.

Intro:हीरा सिंह देव मांझी अंतर्राष्ट्रीय समाजवाद सरकार - इतिहास के पन्ने में दबा आदिवासियो 57 समुदाय का अधिकार अंधेरे में !!! श्री मांझी अन्तरराष्ट्रीय कार्यालय छत्तीसगढ़ राष्ट्र बोर्ड बिन्दु के सदस्य शोषित!!Body:कर- अंग्रेजी शासन के समय सन् 1896 में कांकेर बस्तर के तेलावट गावँ में जन्में हीरा सिंह देव मांझी पिता रैनू मांझी,माता चैती बाई थी । मांझी 1905 सन 9 वर्ष के उम्र से ही अन्ग्रेज सरकार के द्वारा आदिवासी 57 समुदाय पर हो रहे अत्याचार के विरोध में मोर्चा खोला । उन्होनें सन् 1910 में आदिवासी 57 समुदाय की अखिल भारतीय मददगार आदिमुलवासीजन संगठन बनाकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया। सन् 1913 में भारत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का सदस्यता ग्रहण किया।सन् 1914 में मोहनदास करमचंद गाँधी और हीरा सिंह देव मांझी के प्रथम मुलाकात बस्तर के आदिवासियों के देवगुडी दंतेवाडिन मंदिर में हुई।वर्ष 1920 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात के बाद कांकेर के हीरा सिंहदेव मांझी ने आदिवासी 57 समुदायों को साथ लेकर मध्य भारत के आदिवासियों का किसान मजदूर सैनिक गठन किया और स्वतंत्र सत्ता स्वशासन श्री मांझी अंतर्राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की ।
ब्रिटिश शासन से आजादी के लिए 40 लाख मांझी किसान मजदूर सैनिक 1942 तक बिना रुके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी 57 समुदाय के सहयोग से गैर आदिवासियों भारत छोड़ो आंदोलन चलाया । मांझी अंतर्राष्ट्रीय सरकार के किसान मजदूर सैनिक के बढते कदमों को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस सैन्य कमाण्डर के निर्देश ने अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद की स्थापना के लिए सहयोग किया । सन 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुआ। सन् 1942-1946 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध में मांझी अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद किसान सैनिक मांझी दफ्तर के लगभग एक लाख पचास हजार सैनिक शहीद हुए। अंतरराष्ट्रीय स्तर में मांझी सैनिक की संख्या लगभग 80 लाख थे।
मांझी अन्तरराष्ट्रीय सरकार को सौंपा तिरंगा- सन् 1956 में आदिवासी 57 समुदाय की विकास की धारा धरती के कोने कोने में बसे आदिवासियों को अन्तरराष्ट्रीय अधिकार देने तथा सर्वागीण विकास के लिए 9महिला 15पुरुष समिति का गठन कर राष्ट्रीय सम्पत्ति पर सामुहिक विकास के लिए तत्कालिक दुर्ग कलेक्टर स्वरूप सिंह पोर्ते ने भारत गोंडवाना तिरंगा झंडा सौंपा था। उस दिन से लेकर आज तक मांझी अन्तरराष्ट्रीय सरकार के सदस्यों के द्वारा भारत-गोंडवाना भूमि के आदिवासी 57 समुदाय को पंजीकृत समिति से विकास के लिए जागरूक किया जा रहा है।

मांझी अन्तरराष्ट्रीय सरकार की स्वायत्तता,स्वशासन, स्वतंत्र सत्ता संरचना - 1- प्रतिनिधि 2- प्रेसीडेंट 3- सेक्रेटरी 4- चपरासी एवं 5- सेण्डूल ट्राइव महिला मंडल अध्यक्ष सदस्य है। अंतरराष्ट्रीय पंचशील राष्ट्र परगना पंचायत के तहत 40गांव, 20गांव, 10 गांव, 05गांव का गोस्वारा रिकार्ड बना कर 9 महिला, 15 पुरुष समिति के माध्यम से आदिवासी की 57 समुदाय का विकास ही मूलउद्देश्य है। ज़ाहिर है, इन सैनिकों की पूरी लड़ाई समाजवाद विकास की इसी मुद्दे पर केंद्रित है।
श्री मांझी अन्तरराष्ट्रीय सरकार सैनिक पहचान - 1- हक भारत ताज ( सन 1951 राष्ट्रीयकरण लागू मोनो )2- मांझी अंतरराष्ट्रीय रिजर्व आदिवासी प्रतिनिधि बिल्ला- सोल्डर 3- भारत गोंडवाना का बटन,सीटीडोरी 4- खाकीवर्दी (खाकी, पंचशील राष्ट्र परगना पंचायत के स्टार, अशोक स्तम्भ,तिरंगा लगी हुयी वर्दी), अशोक चक्र क्रास बेल्ट 5- भारत गोंडवाना आदिवासी पंजीयन समिति बैच । (आदिवासी 57 समुदाय के जल जंगल जमीन संविधान और संस्कृति पहचान तीर कमान भाला बरछी कला नृत्य करमा डंडा इत्यादि है)
आदिवासियों के 57 समुदाय का 50 करोड़ वर्ष के इतिहास जानकर "परम्परा राष्ट्र ताज हिन्द रात कानून " के तहत मांझी अन्तरराष्ट्रीय सैनिक मांझी दफ्तर दुर्ग छत्तीसगढ़ राष्ट्र बोर्ड बिन्दु , मांझी देव विकास बघमार बालोद 500 एकड़ भूमि संरक्षित है , आदिवासी कैम्प रणजीत सिंह तूकमार्ग नई दिल्ली शाखा बनाया गया।
आजादी के बाद भारतवर्ष (गोंडवाना लैण्ड) में रहने वाले आदिवासियों तथा गैर आदिवासियों को पंजीकृत समिति से विकास के लिए भारत-गोंडवाना का राजस्व सील का अधिकार प्राप्त है । इस तरह 17/09/1974 को मध्यप्रदेश सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1973 के धारा 27 एवं 28 के अधीन संस्था श्री कंगला मांझी आदिवासी कल्याण समिति छत्तीसगढ़ राष्ट्र बोर्ड बिन्दु पंजीयन क्रमांक 3937 दिनांक 17/09/1974 से संचालित है।
मांझी अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद किसान सैनिक मांझी दफ्तर - अन्तरराष्ट्रीय स्तर में मांझी दफ्तर दुर्ग छत्तीसगढ़ राष्ट्र बोर्ड बिन्दु को "भारत गोंडवाना आदिवासी प्रतिनिधि बस्तर शाखा विलीन रियासत कांकेर स्टेट जिला दुर्ग " के रूप में जाना जाता है।
देश की आज़ादी के बाद मांझी अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद सरकार के अध्यक्षता में ,गाँधीवाद सैन्य कमाण्डर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्थापित की हुई मांझी अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद किसान सैनिक मांझी दफ्तर का उद्देश्य भले पूरा हो गया हो ,परन्तु आज भी प्रकृति के गोद में धरती के 156 (वर्तमान 300) राष्ट्र के बीच छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र,बिहार-झारखंड,ओडिसा,उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश के नगर शहर जंगलों में बसे भारत गोंडवाना के हज़ारों आदिवासी प्रतिनिधि सैनिक अब भी मांझी अन्तरराष्ट्रीय सेना की वर्दी पहने समाजवाद 57 समुदाय आदिवासी के 'स्वायत्तता का अधिकार' का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।

मांझी अन्तरराष्ट्रीय समाजवाद किसान सैनिक मांझी दफ्तर 57 समुदाय के सैनिकों के अपने परम्परागत पीढी दर नियम-क़ायदे हैं, अपना क़ानून और संविधान है, अपनी सरकार है। मांझी अन्तरराष्ट्रीय आदिवासी प्रतिनिधि सैनिकों की वर्तमान सरकार में आस्था तो है लेकिन ये मानते हैं कि जब तक देश की बागडोर भारत गोंडवाना आदिवासी (प्रतिनिधि प्रेसीडेंट सेक्रेटरी चपरासी एवं सेण्डूल ट्राइव महिला मंडल अध्यक्ष )सदस्यों के हाथ में नहीं आ जाती तब तक ये आज़ादी अधूरी है.।

देश आज़ाद हुआ और इस बात को 73 साल होने को आ गए लेकिन देश की आज़ादी के बाद भी आदिवासियों 57 समुदाय की इस सैनिकों ने अपना सांगठनिक ढ़ांचा बरक़रार रखा है।श्री कंगला मांझी अन्तरराष्ट्रीय कार्यालय राष्ट्र बोर्ड बिन्दु दुर्ग छत्तीसगढ़ के राष्ट्र अध्यक्ष राम चरण सिंह उइके हैं। Conclusion: भारत सरकार के मददगार मांझी अन्तरराष्ट्रीय सरकार के प्रतिनिधि प्रेसीडेंट सेक्रेटरी चपरासी एवं सेण्डूल ट्राइव महिला मंडल अध्यक्ष सदस्यों का "हक भारत ताज " और अप्राप्य गोंडवाना राज की मांग है।
यही कारण है कि मांझी सैनिकों के बीच आज भी श्री मांझी अन्तरराष्ट्रीय कार्यालय की भारत गोंडवाना का राजस्व सील , भारत राज्य शासन सेवार्थ सील , जरनल सेक्रेटरी आदिवासी प्रतिनिधि बस्तर शाखा सील एवं 17/09/1974 पंजीकृत समिति का दौरा पत्र ,सहमति पत्र ,आदिवासी सर्टिफिकेट, आदेश पत्र, स्वशासन का अधिकार पत्र चलन में है । परन्तु राज्य सरकारों द्वारा भारत गोंडवाना के आदिवासियों का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर से दूर करने का आरोप सैनिक द्वारा लगा रहे हैं।
मगर मांझी अंतरराष्ट्रीय सरकार के 57समुदाय आदिवासी प्रतिनिधि प्रेसीडेंट सेक्रेटरी चपरासी एवं सेण्डूल ट्राइव महिला मंडल अध्यक्ष सदस्यों का संगठन प्रधान कार्यालय में प्रत्येक 5 दिसम्बर पुण्यतिथि,26 जनवरी,15अगस्त पर सभाओं का आयोजन किया जाता रहा है।
प्रकाश निषाद सचिव का byte श्री मांझी अन्तरराष्ट्रीय कार्यालय राष्ट्र बोर्ड बिन्दु दुर्ग छत्तीसगढ़ ( भारत गोंडवाना बस्तर शाखा कांकेर स्टेट विलिन रियासत छत्तीसगढ़ जिला दुर्ग आदिवासी प्रतिनिधि बिल्ला नम्बर 283)

रिपोर्ट नरेन्द्र ध्रुव तखतपुर बिलासपुर।
Last Updated : Dec 5, 2019, 7:00 PM IST
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