बिलासपुर: हिंदुस्तान को आजाद कराने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्थापित की हुई आजाद हिंद फौज का उद्देश्य भले 1947 में ही पूरा हो गया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के जंगलों में बसे आजाद हिंद फौज के हजारों आदिवासी सिपाही आज भी सेना की वर्दी पहने 'असली आजादी' की लड़ाई लड़ रहे हैं.
समाज के उत्थान के लिए कर रहे हैं काम
आदिवासियों के लिए जल-जंगल-जमीन के संरक्षण और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार आज भी आदिवासी परंपरा और समाज के उत्थान के लिए काम कर रही है.
9 साल की उम्र में अंग्रेजों से लड़े थे
1896 में कांकेर (बस्तर) के तेलावट में जन्मे हीरा सिंह देव मांझी ने 1905 में 9 साल की उम्र से ही अंग्रेजी हुकूमत से लड़ना शुरू कर दिया था. मांझी ने 1910 में आदिवासी समुदाय के साथ अखिल भारतीय मददगार आदिमुलवासीजन संगठन बनाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. 1913 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की सदस्यता ली और 1914 में गांधी जी से पहली बार मुलाकात की.
आज भी बरकरार है सांगठनिक ढ़ांचा
1920 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कहने पर कांकेर के हीरा सिंहदेव मांझी ने 57 आदिवासी समुदायों को साथ लेकर आदिवासियों की एक अलग आजाद हिंद फौज का गठन किया, जिसे कंगला मांझी सरकार नाम दिया गया. कंगला मांझी सरकार के सैनिकों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर आजाद देश के लिए संघर्ष किया. आज आजादी के 72 साल जब देश में बहुत कुछ बदल गया है, आदिवासियों की इस फौज ने अपना सांगठनिक ढांचा आज भी बरकरार रखा है.
आज तक नहीं मिली सरकार से कोई मदद
आजादी बाद भी 72 साल से अपना सांगठनिक ढाला चला रहे कंगला मांझी सरकार के सामने अब आर्थिक परेशानियां आने लगी हैं. आजादी की लड़ाई में विशेष योगदान देने वाली कंगला मांझी सरकार को आजादी के बाद के केंद्र या राज्य सरकार कभी कोई आर्थिक मदद नहीं मीला. कंगला मांझी सरकार के सैनिक बताते हैं कि वे अपनी निजी जरूरतों को कम कर बचे हुए पैसे से संगठन चला रहे हैं.
बेहद खराब है माली हालत
आर्थिक तंगियों से जूझ रहे सैनिक लंबे वक्त से सरकार से कुछ मांग कर रहे हैं, जिसमें सैनिक के परिवार एक सदस्य को नौकरी, 5-5 एकड़ कृषि योग्य जमीन शामिल है, लेकिन इनकी मांगों पर कभी विचार तक नहीं किया गया. कंगला मांझी सरकार के इन सैनिकों की माली हालत बेहद खराब है.
आज भी बरकरार लड़ने का जज्बा
अपने फौज की वर्दी पहनने वाले बुजुर्ग और उनके बच्चों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार अब भी लगभग नगण्य है, लेकिन स्टार लगी हुई वर्दी और बैज लगाए इन जवानों में समाजवाद की कल्पना लेकर आज भी लड़ने का जज्बा बरकरार है. शायद यही कारण है कि चल-अचल संपत्ति की खरीद-बिक्री के लिए आज भी मांझी सैनिकों के बीच कंगला मांझी सरकार का स्टॉम्प पेपर चलन में है.