बिलासपुर: बीते दिनों देशभर में छठ पूजा बड़े धूमधाम से मनाई गई. बिलासपुर में भी इस पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिला. दूसरी ओर तोरवा छठघाट में छठ पर्व के बाद कचरे का अंबार नजर आया. जिसकी सफाई के लिए शहर के कुछ एनजीओ के सदस्य एवं सामाजिक कार्यकर्ता छठ घाट पर (Social workers engaged cleaning of Torwa Ghat) इकट्ठा हुए. उन्होंने साफ सफाई के साथ यह संकल्प लिया कि वे इस घाट की नियमित सफाई करेंगे, ताकि बिलासपुर की अरपा नदी और छठ घाट की पवित्रता बनी रहे. Torwa Ghat in Bilaspur
पूजा के बाद लगा गंदगी का अंबार: छठ पूजा के बाद लोग अपने पीछे कूड़ा करकट का अंबार छोड़कर गए हैं. छठ पूजा से पहले नियमित रूप से बिलासपुर नगर निगम, अलग अलग एनजीओ और छठ पूजा समिति द्वारा छठ घाट की सफाई की परंपरा रही है. लेकिन पूजा के बाद घाट को अक्सर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है. पूजा खत्म होने के बाद पूजन सामग्री, गन्ना के अवशेष, दीपक, मिट्टी के कुंड आदि यहां वहां बिखरे पड़े रहते हैं. निगम के सफाई कर्मचारी घाट के ऊपरी हिस्से की सफाई कर देते हैं. लेकिन घाट की सीढ़ियों पर चीजें जस की तस पड़ी रहती है.
सामाजिक संस्था ने की सफाई: छठ पूजा समिति से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं, ख्वाब वेलफेयर फाउंडेशन के सदस्य और लॉरेंस सामाजिक संस्था द्वारा मंगलवार को तोरवा छठ घाट की सफाई की. समिति के सदस्य झाड़ू आदि लेकर दोपहर से सफाई में जुटे रहे. उन्होने घाट पर बिखरे पड़े दीये, फूल, प्लास्टिक की थैलियों, पूजन सामग्री, गन्ना के अवशेष आदि को एकत्रित किया.
घाट पर सफाई करने पहुंचे एनजीओ के सदस्यों ने कहा कि "वे एक निश्चित अंतराल पर नियमित रूप से घाट की सफाई करेंगे. ताकि छठ के अवसर पर जिस तरह की सफाई तोरवा छठ घाट पर नजर आती है, वैसी ही स्थिति वर्ष भर रहे. जिससे मां अरपा की पवित्र नदी और घाट हमेशा पवित्र रहे."
यह भी पढ़ें: बिलासपुर के एनटीपीसी सीपत प्लांट में हादसा, स्टोरेज टैंक ब्लास्ट में एक कर्मी की मौत
घाटों की सफाई आम नागरिकों की भी जिम्मेदारी: छठ घाट की सफाई कर रहे वॉलिंटियर्स का उत्साहवर्धन के लिए छठ पूजा समिति के कोषाध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र दास पहुंचे. उन्होंने इस पहल के लिए सब के प्रति आभार जताया. डॉ धर्मेंद्र दास ने भी सफाई में हाथ बंटाया. उन्होंने कहा कि "पूजा के बाद घाट पर अवशेष स्वाभाविक है. इसकी सफाई हम सबको मिलकर करनी होगी. आम नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वे घाट पर गंदगी ना फैलाएं."
भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहां नदी को माता का दर्जा दिया जाता है. साथ ही उसकी पूजा की जाती है. बावजूद इसके नदी में ही दुनियाभर की गंदगी डाली जाती है. घर में पूजा करने के बाद पूजन सामग्री, फूल आदि भी नदी में फेंके जाते हैं. गंदी नालियों का पानी भी नदी में उड़ेला जाता है. प्लास्टिक की पन्नियां, डिस्पोजल आदि भी नदी में डाल दी जाती है. अगर हम अपनी इन आदतों में ही बदलाव करेंगे, तो फिर नदी का कायाकल्प संभव ही नहीं है. वैसे अगर घाट पर नियमित आयोजन होने लगे, पिकनिक आदि के लिए लोग जुटने लगे, तो भी घाट की स्थिति बेहतर हो सकती है. इन विकल्पों पर भी विचार करने की जरूरत है.