बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में पूर्व की बीजेपी सरकार और वर्तमान कांग्रेस सरकार दोनों ने ही जातीय आरक्षण के माध्यम से प्रदेश के एक बड़े वर्ग को साधने की कोशिश की. लेकिन मौजूदा समय में कांग्रेस सरकार के लाए गए आरक्षण विधेयक को राज्यपाल के सचिवालय से मंजूरी नहीं मिली .इस वजह से अब तक यह मामला अटका हुआ है. पहले की डॉ. रमन सिंह की सरकार ने जातीय आरक्षण में संशोधन कर एससी वर्ग के आरक्षण में कटौती कर एसटी को देने का निर्णय लिया था. जिसके बाद एससी वर्ग के लोग बीजेपी सरकार से नाराज होकर विरोध में प्रदर्शन पर उतर गए थे. वहीं इसी मामले को लेकर कांग्रेस की भूपेश सरकार ने भी वही किया.
चुनाव में किसको फायदा,किसको नुकसान ? भूपेश सरकार के फैसले को लेकर भी यही हुआ और अब तक यह मामला राज्यपाल सचिवालय में अटका हुआ है. इस मामले में अब तक कोई फैसला तो नहीं हो पाया है. किस जाति को कितना आरक्षण मिलेगा. लेकिन इसकी आग अब तक ठंडी नहीं हुई है. एससी समाज भले ही अब तक इस मामले में चुप्पी साध रखी है लेकिन अब इस मामले का जिन बोतल से बाहर भी आ सकता है. चुनावी वर्ष होने की वजह से ये बताना लाजमी होगा कि दोनों ही पार्टी प्रदेश की बड़ी आबादी वाली जातीय आदिवासी को साधने उनका आरक्षण में बढ़ोतरी करने की कोशिश की था. लेकिन दोनों को सफलता नहीं मिली थी. ले
क्या कहते है राजनीति के जानकार ? : राजनीति के जानकार राजेश दुआ ने कहा कि जातीय आधारित आरक्षण का जो लाभ मिलता है उसका असर हर चुनाव में पड़ता है. स्वाभाविक रूप से इस बार के चुनाव में यह मुद्दा काफी हावी रहेगा. ऐसा साफ प्रतीत हो रहा है इसके पहले की जो सरकार ने भी आरक्षण का खेल खेला था. कमोबेश उसी अंदाज में इस सरकार ने भी वही खेल खेला है. इस मामले को लेकर अभी लोगों में नाराजगी तो है.
''कांग्रेस के पास यह बताने के लिए जरूर है कि उन्होंने तो आरक्षण काफी प्रतिशत बढ़ा दिया था, बावजूद उसके वह इंप्लीमेंट नहीं हो पाया. एससी और एस टी वर्ग में नाराजगी तो है और चुनाव का नतीजा इस पर ज्यादा बेहतर प्रकाश डालेगा, लेकिन असर जरूर होगा.'' राजेश दुआ, राजनीति के जानकार
छत्तीसगढ़ विधानसभा में ये आरक्षण हुए पास : छत्तीसगढ़ विधानसभा में 1 दिसंबर को गहमागहमी के बीच आरक्षण विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था. विधानसभा में आरक्षण विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था. अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 13 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था. वहीं बीजेपी सरकार ने भी अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए इसे 32 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए कोटा 14 प्रतिशत कर दिया गया था.