बिलासपुर: सिम्स छत्तीसगढ़ के बड़े अस्पताल में गिना जाता है. ये अस्पताल जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी लापरवाही की है. बिलासपुर में 30 मई को 9 साल की बच्ची की मौत हो गई थी, एक जून को रिपोर्ट आई कि वो कोरोना पॉजिटिव है. खबर यहां से शुरू होती है कि मृतका को लेकर उसका मजदूर पिता 29 मई को सिम्स पहुंचा. वो खून की उल्टी कर रही थी, हालत गंभीर थी, लेकिन उसकी इलाज के लिए कोई गंभीर नहीं था. हालांकि बच्ची का सैंपल लिया गया था, लेकिन इसी बीच बच्ची के पिता से कहा गया कि उसकी हालत गंभीर है. बच्ची की हालत बिगड़ते देख पिता ने जैसे ही निजी अस्पताल में इलाज की बात कही जिम्मेदारों ने तुरंत जरूरी औपचारिकता पूरी कर बच्ची को उसके पिता के साथ रवाना कर दिया.
इससे पहले सिम्स पहुंचने पर बच्ची को आइसोलेशन वार्ड में रखा गया था. मृत बच्ची के पिता के मुताबिक भर्ती होने से पहले बच्ची की तबीयत बहुत ज्यादा खराब नहीं थी, वहीं डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची को खून की कमी हो गई थी और उसके जान को खतरा था. इसी बीच उसके कोरोना जांच के लिए सैंपल भी लिए गए थे. इस पूरे मामले में सिम्स का सबसे ज्यादा असंवेदनशील रवैया तब सामने आया जब सिम्स प्रशासन ने गुमराह करते हुए बीमार बच्ची के पिता से अंगूठे के निशान ले लिए.
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इलाज के बजाए किया रवाना
बच्ची के पिता को यह बताया गया कि बच्ची की जान को खतरा है लिहाजा आपके हस्ताक्षर जरूरी हैं. इस बीच बच्ची की हालत बिगड़ती जा रही थी और फिर बच्ची के पिता ने जैसे ही निजी अस्पताल में इलाज की बात छेड़ी, जरूरी औपचारिकता पूरी कर बच्ची को उसके पिता के साथ रवाना कर दिया गया.
बच्ची ने रास्ते में तोड़ा दम
30 मई को बच्ची सिम्स अस्पताल से घर के लिए निकली, लेकिन वह घर नहीं पहुंच सकी, रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया. इस पूरी कहानी के दौरान सिम्स प्रशासन के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल यह कि क्या सिम्स प्रशासन ने खुद ऐसा माहौल तो नहीं बनाया जिससे मजबूरन एक मजदूर को अपनी बीमार बेटी के साथ बाहर का रास्ता देखना पड़ा ?
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उठ रहे कई सवाल
इस मामले में सिम्स अस्पताल की लापरवाही तो तब उजागर हुई जब 1 जून को मृत बच्ची की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई. अब सवाल यह उठता है कि बच्ची कोरोना की संदिग्ध मरीज थी उसके इलाज को लेकर सिम्स प्रशासन इतना लापरवाह क्यों था ? तब जबकि बिलासपुर में अलग से एक कोविड अस्पताल भी है और सिम्स अस्पताल में ही संदिग्धों के लिए कोरोना वार्ड भी बनाया गया है. क्या सिम्स प्रशासन बच्ची की रिपोर्ट का एक से दो दिन का इंतजार नहीं कर सकता था ? क्या कोरोना महामारी के दौर में सरकारी अस्पताल बच्ची को उपचार नहीं दे सकता था.
सीएचएमओ ने स्वीकारी लापरवाही
इस मामले में सिम्स कोरोना वार्ड प्रभारी डॉ. आरती पांडेय ने कहा कि मृत बच्ची के पिता ने खुद से बाहर इलाज करवाना चाहा, इसलिए उन्हें बाहर भेजा गया. वहीं शोक में डूबा पिता कहता है कि उस समय ऐसी स्थिति बनाई गई थी कि उसके लिए सिम्स से बाहर जाने के अलावा कोई रास्ता बचा नहीं था. दूसरी ओर सीएचएमओ प्रमोद महाजन भी इस मामले में सिम्स प्रशासन की लापरवाही स्वीकार रहे हैं और कहीं न कहीं कोरोना की गंभीरता को देखते हुए उच्च अधिकारियों से को-आर्डिनेशन न करने की बात भी मान रहे हैं.
परिजनों को क्वॉरेंटाइन किया गया है
फिलहाल, मृत बच्ची के तमाम परिजनों को उनके ही गांव में एहतियातन क्वॉरेंटाइन किया गया है, लेकिन सवाल, आखिर कब तक इलाज जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए गरीब मजदूर परिवार को जुझना पड़ेगा?