बिलासपुर: छत्तीसगढ़ की प्रख्यात कठपुतली कलाकार नीलीमा मोइत्रा का निधन हो गया है. उनका अंतिम संस्कार सरकंडा के मुक्तिधाम में किया जाएगा. मुख्यमंत्री,राज्यपाल और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका नीलीमा मोइत्रा ने बिलासपुर के जरहाभाठा में अंतिम सांस ली. उनके निधन से कला जगत में शोक की लहर है.
![puppet-artist-nilima-moitra-passed-away](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/10522669_70_10522669_1612604594827.png)
मुख्यमंत्री बघेल ने जताया शोक
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर कठपुतली कला मंच की संस्थापिका नीलीमा मोइत्रा के निधन पर दुःख व्यक्त किया है. उन्होंने लिखा कि 'छत्तीसगढ़ में कठपुतली कला की सूत्रधार रहीं नीलीमा मोइत्रा का निधन एक अध्याय के समाप्त होने जैसा है. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें'.
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राज्यपाल ने भी जताया दुख
छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भी नीलीमा मोइत्रा के निधन पर संवेदना व्यक्त की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा 'कठपुतली कला मंच की संस्थापिका नीलीमा मोइत्रा जी के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें. उनके परिवार और प्रियजनों के प्रति संवेदना प्रकट करती हूं'
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सरकंडा मुक्तिधाम में किया जाएगा अंतिम संस्कार
नीलीमा मोइत्रा का अंतिम संस्कार सरकंडा मुक्तिधाम में किया जाएगा. उनकी शव यात्रा जरहाभाठा,वन विभाग कार्यालय के सामने से निकलेगी. बता दें कि नीलीमा मोइत्रा स्वर्गीय विष्णु मोइत्रा की धर्मपत्नी थीं और सुब्रत बॉबी मोइत्रा और अमित रोबी मोइत्रा की माता थीं.
जानिए कौन थी नीलीमा मोइत्रा ?
नीलीमा मोइत्रा सेंदरी हायर सेकेंडरी स्कूल बिलासपुर में शिक्षिका रही. उन्होंने वर्षों तक कठपुतली के खेल का प्रदर्शन किया. पात्र के अनुसार कठपुतलियों का डिजाइन वे खुद करती थी. समाज में फैली कुरितियों जैसे भ्रुण हत्या, बाल विवाह, दहेज, पल्स पोलियो, मलेरिया, पानी बचाओ आंदोलन और साक्षरता जैसे विषयों पर कठपुतलियों के माध्यम से जनमानस को जागृत करने के लिए वे हमेशा प्रयासरत रहीं.
कई बड़े कलाकारों से लिया था प्रशिक्षण
नीलीमा मोइत्रा ने देश के नामी कठपुतली कलाकारों से प्रशिक्षण लिया था. उन्होंने बिहारी भट्ट, निरंजन गोस्वामी, दिलीप मंडल, शम्पा घोष, चेतन शर्मा, शांतनु बनर्जी और सुरेंद्र कौल जैसे कलाकारों से प्रशिक्षण प्राप्त किया था. मोइत्रा छत्तीसगढ़ की संस्कृति, इतिहास और तत्कालिक सवाल-जवाब स्पर्धा का भी आयोजन कठपुतली के माध्यम से करती थी.