बिलासपुर: जेल में बंद कैदी चुनाव तो लड़ सकता है, पर जेल में सजा काट रहा कैदी वोट नहीं दे सकता. दरअसल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) के तहत, हिरासत में रहा शख्स और कारावास की सजा काट रहा आदमी वोट नहीं डाल सकता. कानून में प्रावधान है कि रासुका के तहत जेल में बंद कैदी को डाक मतपत्र के जरिए वोट का अधिकार है, अगर कैदी इसके लिए आवेदन करता है, तब रासुका की सजा भुगत रहा कैदी अगर जेल प्रबंधन से वोट देने की मांग करता है, तो उसे ये सुविधा दी जाती है. चूंकि जेल में ईवीएम ले जाने की अनुमति नहीं है, लिहाजा बैलेट पेपर से कैदी वोट कर सकता है.
तो बढ़ जाता वोटिंग प्रतिशत: बिलासपुर जेल में बंद तीन हजार से ज्यादा कैदियों ने अपने वोट का इस्तेमाल नहीं किया. जिन कैदियों ने अपने वोट का इस्तेमाल नहीं किया, उनको मतदान का अधिकार नहीं मिला था. बिलासपुर बार काउंसिल के अध्यक्ष और सदस्य दोनों का कहना है कि, कैदियों को भी मतदान का अधिकार मिलना चाहिए. जिस तरह से रासुका के कैदी को वोट का अधिकार है, वैसे ही दूसरे कैदियों को भी वोट का अधिकार दिया जाना चाहिए. बार काउंसिल के अध्यक्ष और बार काउंसिल के सदस्य का मानना है कि, इसपर चुनाव आयोग को जरूर विचार करना चाहिए. 3000 कैदियों ने अगर वोट का इस्तेमाल किया होता तो वोटिंग प्रतिशत में और इजाफा होता.
निर्वाचन आयोग से मांग: कानून के जानकार अधिवक्ता भी ये मानते हैं कि, जिस तरह से चुनाव कार्य में लगे कर्मचारी डाक मत पत्र से वोट देते हैं. उसी पैटर्न को फॉलो कर कैदियों को भी मतदान का अधिकार दिया जाना चाहिए. बार काउंसिल के अध्यक्ष ने कहा कि, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत ऑर्डर के साथ ही चालान और समन भेजने की प्रक्रिया को डिजिटल किये जाने की प्रक्रिया का समर्थन किया. कोर्ट ने कहा है कि यह प्रक्रिया अगर शुरू हो गई तो जमानत मिलने की तिथि पर ही कैदी की रिहाई हो सकती है. इसी तरह मतदान में इस प्रक्रिया को क्यों अपनाया नहीं जाता. भारत निर्वाचन आयोग की पहल से कैदियों को मताधिकार का अधिकार मिल सकता है.