बिलासपुर: खेरा साहब को जो लोग नजदीक से जानते हैं उनकी मानें तो खेरा साहब काली चाय और मीठा खाने के शौकीन थे. वो जिस पड़ोसी के घर काली चाय पीते थे तो बदले में चाय की तारीफ करना चूकते नहीं थे. बता दें, सोमवार को प्रभुदत्त खेरा का बिलासपुर में निधन हो गया.
उनकी इसी सादगी के कारण उन्हें लमनी गांव के लोगों से भरपूर प्यार मिलता था. वो शाम को रोज जब स्कूल से लौटते थे तो अपने पड़ोसी के यहां नियम से काली चाय जरूर पीते थे. कई बार हिचकिचाहट में खेरा साहब अपने पड़ोसियों से यह भी कहते थे चाय पिलाकर उनकी आदत ना बिगाड़ी जाए.
पड़ोसी रखते थे उनका ध्यान
बीमार होने से चंद महीने पहले तक वो खुद का खाना खुद ही बनाते थे, लेकिन तबीयत बिगड़ते देख उनके पड़ोसी ने उनके देख रेख का बीड़ा उठाया और बखूबी निभाया. खेरा साहब को जाननेवाले बताते हैं कि गरीब बच्चों की सेवा कर उन्होंने पूरे क्षेत्र के लोगों के दिलों में एक खास स्थान बना लिया था.
कहलाते वो जरूर दिल्लीवाले साहब थे, लेकिन आदिवासी कल्चर में उन्होंने खुद को इस कदर ढाल लिया था, कि उनको देख कभी ऐसा लगता ही नहीं था कि वो कभी दिल्ली की चमकीली दुनिया को छोड़कर यहां आए हो. खेरा साहब ने अपनी जिंदगी से हमें सहजता,त्याग और प्रगतिशीलता की बखूबी पाठ पढ़ाया है.