बिलासपुर : कोटा विधानसभा क्षेत्र के सबसे प्रसिद्ध रतनपुर महामाया मंदिर में इस साल भी श्रद्धालुओं को देवी के दर्शन नहीं मिल पाएंगे. कोरोना संकट को देखते हुए मां रतनपुर महामाया मंदिर के पट भक्तों के लिए बंद कर दिए गए हैं. हर साल जहां नवरात्र में लोगों की भीड़ और दर्शन के लिए लंबी लाइन लगी होती थी, उस मां का आंगन आज सूना है.
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108 शक्तिपीठों में से एक रतनपुर
विश्व के 108 शक्तिपीठों में से एक रतनपुर का महामाया मंदिर भी है. माता सती का दाहिना स्कंध रतनपुर में गिरा था. यहां मां कौमार्य शक्तिपीठ के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं. यहां मां की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली तीनों स्वरूपों में पूजा की जाती है. जानकार बताते हैं कि नवरात्र में शक्ति की उपासना होती है और इस दौरान तमाम ग्रहों को शांत किया जाता है.
राजा रत्नदेव के स्वप्न में आईं थी मां महामाया
किवदंती है कि तत्कालीन कल्चुरी शासक राजा रत्नदेव हजार साल पहले शिकार पर निकले और इस दौरान वे रतनपुर पहुंचे. शिकार के लिए जाते वक्त वे रास्ता भूल गए और रतनपुर में ही रात में आराम करने का मन बनाया. उन्होंने रतनपुर में एक वट वृक्ष के नीचे रात गुजारी. इस बीच उन्हें आभास हुआ कि यह जगह कोई सिद्ध स्थान है और दैवीय शक्ति से भरपूर है.
रतनपुर को बनाई थी राजधानी
राजा अगले दिन रतनपुर से निकल गए और फिर उन्हें दोबारा सपना आया. बताया जाता है कि राजा के सपने में मां महामाया ने मंदिर स्थापना और रतनपुर को ही राजधानी बनाने की बात कही थी. जिस पर राजा रत्नदेव ने तत्काल रतनपुर में एक भव्य मंदिर को स्थापित किया और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाई. बताया जाता है कि हजार वर्ष पहले घटित इस घटना के बाद से रतनपुर महामाया मंदिर अस्तित्व में आया और इस मंदिर की ख्याति बढ़ती चली गई.