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असम से छत्तीसगढ़ लाये गए वन भैंसों का मामला, बिलासपुर हाईकोर्ट ने केंद्र समेत छत्तीसगढ़ और असम सरकार को नोटिस किया जारी

Order issued by Bilaspur High Court For Forest buffalo: बिलासपुर हाई कोर्ट ने असम से छत्तीसगढ़ लाये गए वन भैंसों के मामले में सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने वन भैंसों की वापसी की मांग से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और असम सरकार को नोटिस जारी किया है.

Forest buffalo brought to Chhattisgarh will be returned
छत्तीसगढ़ लाये गए वन भैसों की होगी वापसी
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Published : Jan 12, 2022, 7:25 PM IST

Updated : Jan 12, 2022, 8:19 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा (Chhattisgarh State Animal Forest Buffalo) की प्रजातियां विलुप्त हो गई थी. जिसके बाद राजकीय पशु का अस्तित्व बचाये रखने को छत्तीसगढ़ में असम से वन भैंसा लाया गया था.अप्रैल 2020 में मानस नेशनल पार्क असम से छत्तीसगढ़ वन विभाग (Chhattisgarh Forest Department), एक मादा वन भैंसा और एक नर वन भैंसा लेकर आया था. उसे बारनवापारा अभयारण्य के बाड़े में रख दिया था. छत्तीसगढ़ वन विभाग की योजना यह थी कि इन वन भैंसों को बाड़े में रखकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा. इस बीच राज्य में एनटीसीए से अनुमति लिए बिना लेन-देन के मामले में हाईकोर्ट में लगी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई. सुनवाई में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और असम सरकार को कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब तलब को कहा है. कोर्ट ने वन भैंसों की वापसी की मांग से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और असम सरकार को नोटिस जारी किया है.

बिलासपुर हाई कोर्ट ने जारी किया आदेश

नितिन सिंघवी ने हाइकोर्ट में दायर की थी याचिका

इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने असम, छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. जनहित याचिका में बिलासपुर हाई कोर्ट चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी की डबल बेंच ने मुख्य वन्यजीव संरक्षक को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है.

बंधक बनाये रखने से वन भैंसा का गुण होता है खत्म

याचिका में बताया गया है कि भारत सरकार ने 5 मादा भैंसा और एक नर भैंसा को असम के मानस नेशनल पार्क से पकड़ कर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य के जंगल में पुनर्वासित करने की अनुमति दी थी. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अनुसार शेड्यूल 1 के वन्य प्राणी को ट्रांसलोकेट करने के उपरांत वापस वन में छोड़ा जाना अनिवार्य है. जबकि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इन्हें बाड़े में कैद कर रखा है. असम से लाए गए वन भैंसों से पैदा हुए वन भैंसों को भी जंगल में नहीं छोड़ा जायेगा. यानी कि बाड़े में ही संख्या बढ़ाई जाएगी. छत्तीसगढ़ वन विभाग ने होशियारी से वन में वापस वन भैंसों को छोड़ने के नाम से अनुमति ली और उन्हें प्रजनन के नाम से बंधक बना रखा है. जो कि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध है. बंधक बनाये रखने के कारण कुछ समय में वन भैंसा अपना स्वाभाविक गुण खोने लगते है. वन विभाग ने शेष चार वन भैंसों को लाने की योजना बना रखी है.

यह भी पढ़ेंः मुंगेली में फर्जी जाति मामलाः कलेक्टर का आदेश जारी, महिला जनपद सदस्य का निर्वाचन रद्द

भारतीय वन्यजीव संस्थान ने जतायी थी आपत्ति

छत्तीसगढ़ में जब वन भैंसे लाए जाने थे, तब छत्तीसगढ़ वन विभाग ने प्लानिंग की थी कि असम से मादा वन भैंसा लाकर, उदंती के नर वन भैंसों से नई जीन पूल तैयार करवाएंगे. तब भारत सरकार की सर्वोच्च संस्था भारतीय वन्यजीव संस्थान ने आपत्ति दर्ज की थी कि छत्तीसगढ़ और असम के वन भैंसा के जीन को मिक्स करने से छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की जीन पूल की विशेषता बरकरार नहीं रखी जा सकेगी. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बताया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की जीन पूल विश्व में शुद्धतम है. सीसीएमबी नामक डी.एन.ए. जांचने वाली संस्थान ने भी कहा है कि असम के वन भैंसों में भौगोलिक स्थिति के कारण आनुवंशिकी फर्क है. सर्वोच्च न्यायालय ने टीएन गोदावरमन नामक प्रकरण में आदेशित किया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की शुद्धता बरकरार रखी जाए.

एनटीसीए के निर्देश भी नहीं माने गए

असम के जिस मानक नेशनल पार्क से वन भैंसा लाया गया है, वह टाइगर रिजर्व है. अतः एनटीसीए की अनुमति जरूरी थी. एनटीसीए की तकनीकी समिति ने असम के वन भैंसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में पुनर्वासित करने के करने के पूर्व परिस्थितिकी यानी कि इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट मंगवाई थी. जिससे यह पता लगाया जा सके कि असम के वन भैंसे छत्तीसगढ़ में रह सकते हैं कि नहीं.

कोर्ट से की गई थी ये मांगें

याचिकाकर्ता ने दोनों वन भैंसों को वापस असम भेजने की मांग कोर्ट से अपील की थी और 4 शेष वन भैंसों को छत्तीसगढ़ लाये जाने की अनुमति निरस्त करने की मांग की थी. साथ ही दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की थी.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा (Chhattisgarh State Animal Forest Buffalo) की प्रजातियां विलुप्त हो गई थी. जिसके बाद राजकीय पशु का अस्तित्व बचाये रखने को छत्तीसगढ़ में असम से वन भैंसा लाया गया था.अप्रैल 2020 में मानस नेशनल पार्क असम से छत्तीसगढ़ वन विभाग (Chhattisgarh Forest Department), एक मादा वन भैंसा और एक नर वन भैंसा लेकर आया था. उसे बारनवापारा अभयारण्य के बाड़े में रख दिया था. छत्तीसगढ़ वन विभाग की योजना यह थी कि इन वन भैंसों को बाड़े में रखकर उनसे प्रजनन कराया जाएगा. इस बीच राज्य में एनटीसीए से अनुमति लिए बिना लेन-देन के मामले में हाईकोर्ट में लगी याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई. सुनवाई में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और असम सरकार को कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब तलब को कहा है. कोर्ट ने वन भैंसों की वापसी की मांग से जुड़ी याचिका पर केंद्र सरकार, छत्तीसगढ़ सरकार और असम सरकार को नोटिस जारी किया है.

बिलासपुर हाई कोर्ट ने जारी किया आदेश

नितिन सिंघवी ने हाइकोर्ट में दायर की थी याचिका

इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने असम, छत्तीसगढ़ और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. जनहित याचिका में बिलासपुर हाई कोर्ट चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी की डबल बेंच ने मुख्य वन्यजीव संरक्षक को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है.

बंधक बनाये रखने से वन भैंसा का गुण होता है खत्म

याचिका में बताया गया है कि भारत सरकार ने 5 मादा भैंसा और एक नर भैंसा को असम के मानस नेशनल पार्क से पकड़ कर छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य के जंगल में पुनर्वासित करने की अनुमति दी थी. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के अनुसार शेड्यूल 1 के वन्य प्राणी को ट्रांसलोकेट करने के उपरांत वापस वन में छोड़ा जाना अनिवार्य है. जबकि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इन्हें बाड़े में कैद कर रखा है. असम से लाए गए वन भैंसों से पैदा हुए वन भैंसों को भी जंगल में नहीं छोड़ा जायेगा. यानी कि बाड़े में ही संख्या बढ़ाई जाएगी. छत्तीसगढ़ वन विभाग ने होशियारी से वन में वापस वन भैंसों को छोड़ने के नाम से अनुमति ली और उन्हें प्रजनन के नाम से बंधक बना रखा है. जो कि वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध है. बंधक बनाये रखने के कारण कुछ समय में वन भैंसा अपना स्वाभाविक गुण खोने लगते है. वन विभाग ने शेष चार वन भैंसों को लाने की योजना बना रखी है.

यह भी पढ़ेंः मुंगेली में फर्जी जाति मामलाः कलेक्टर का आदेश जारी, महिला जनपद सदस्य का निर्वाचन रद्द

भारतीय वन्यजीव संस्थान ने जतायी थी आपत्ति

छत्तीसगढ़ में जब वन भैंसे लाए जाने थे, तब छत्तीसगढ़ वन विभाग ने प्लानिंग की थी कि असम से मादा वन भैंसा लाकर, उदंती के नर वन भैंसों से नई जीन पूल तैयार करवाएंगे. तब भारत सरकार की सर्वोच्च संस्था भारतीय वन्यजीव संस्थान ने आपत्ति दर्ज की थी कि छत्तीसगढ़ और असम के वन भैंसा के जीन को मिक्स करने से छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की जीन पूल की विशेषता बरकरार नहीं रखी जा सकेगी. भारतीय वन्यजीव संस्थान ने बताया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की जीन पूल विश्व में शुद्धतम है. सीसीएमबी नामक डी.एन.ए. जांचने वाली संस्थान ने भी कहा है कि असम के वन भैंसों में भौगोलिक स्थिति के कारण आनुवंशिकी फर्क है. सर्वोच्च न्यायालय ने टीएन गोदावरमन नामक प्रकरण में आदेशित किया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैंसों की शुद्धता बरकरार रखी जाए.

एनटीसीए के निर्देश भी नहीं माने गए

असम के जिस मानक नेशनल पार्क से वन भैंसा लाया गया है, वह टाइगर रिजर्व है. अतः एनटीसीए की अनुमति जरूरी थी. एनटीसीए की तकनीकी समिति ने असम के वन भैंसों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा में पुनर्वासित करने के करने के पूर्व परिस्थितिकी यानी कि इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी रिपोर्ट मंगवाई थी. जिससे यह पता लगाया जा सके कि असम के वन भैंसे छत्तीसगढ़ में रह सकते हैं कि नहीं.

कोर्ट से की गई थी ये मांगें

याचिकाकर्ता ने दोनों वन भैंसों को वापस असम भेजने की मांग कोर्ट से अपील की थी और 4 शेष वन भैंसों को छत्तीसगढ़ लाये जाने की अनुमति निरस्त करने की मांग की थी. साथ ही दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की थी.

Last Updated : Jan 12, 2022, 8:19 PM IST
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