बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में मजदूरों का पलायन कोई नहीं बात नहीं है. बात चाहे फिर फसल कटाई की हो या फिर ईंट-भट्ठों में मजदूरी करने की, हर साल मजदूरों का पलायन पहले से ही बदस्तूर जारी है. बात अगर बिलासपुर की करें तो यहां से अधिकांश मजदूर दूसरे प्रदेशों के ईंट-भट्ठे पर काम करने के लिए हर पलायन कर जाते हैं. विभागीय सूत्रों की मानें तो एक मोटे तौर पर छत्तीसगढ़ से हर साल करीब 10 लाख मजदूर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं.
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बिलासपुर से बाहर दूसरे प्रदेश जाने वाले मजदूरों ने अपनी मजबूरी बताई. रुंधे गले से उन्होंने कहा कि अपने प्रदेश में हमें बहुत कम मजदूरी मिलती है, जबकि दूसरे प्रदेशों में यहां से सीधी दोगुनी मजदूरी. इस कारण हम दूसरे प्रदेश जाने के लिए विवश हो जाते हैं. कमाई से थोड़े-बहुत पैसे बचाकर ये मजदूर उससे अपना घर और घरवालों की जरूरतें पूरी करते हैं.
छत्तीसगढ़ से मजदूरों के पलायन को लेकर श्रम विभाग की अधिकारी ने बताया कि बिलासपुर के अधिकांश मजदूर ईंट-भट्ठे में काम करते हैं. ये परिवार समेत पलायन कर जाते हैं और वहां इनके साथ इनका पूरा परिवार काम करता है. वहीं उन्होंने कहा कि बंधक मजदूरों के लिए समय-समय पर प्रशासन स्तर पर नए नियम बनते रहे हैं. बंधक मजदूरों को छुड़ाने के लिए शिकायत पत्र मिलना चाहिए. स्थानीय प्रशासन के सहयोग से बंधक मजदूरों को सकुशल अपने प्रदेश लाया भी जाता है.
दिहाड़ी मजदूरों में पलायन की प्रवित्ति सालों से चली आ रही है. मजदूर देश के कई उन्नत राज्यो में पलायन करते हैं. ये मजदूर सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, जम्मू कश्मीर आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और गुजरात मे रोजी रोजगार की तलाश में जाते हैं. मजदूरों की अगर बात करें तो उनका इस मामले में कहना है कि छत्तीसगढ़ में उन्हें बहुत कम रोजी मिलती है. वे यहा पूरा दिन काम करते हैं तो उन्हें मात्र ढाई सौ से तीन सौ और अधिक से अधिक 4 सौ और साढ़े चार सौ ही मिलते हैं, जबकि अन्य प्रदशों में उन्हें 5 सौ से 7 सौ रुपए मिलते हैं. मजदूर अक्टूबर-नवंबर से पलायन शुरू करते हैं और जून-जुलाई तक वापस अपने घर की ओर लौटने लगते हैं. मजदूरों ने बताया कि उन्हें यहां काम ठीक तरीके से नहीं मिलता इसलिए बाहर चले जाते हैं.
सरकारी आकड़ों में मजदूरों का पलायन बहुत कम
प्रदेश के साथ बिलासपुर जिले की अगर बात करें तो सरकारी आंकड़ों में पलायन करने वालों की संख्या बहुत ही कम है. उसका कारण यह है कि शासकीय विभाग यानी श्रम विभाग पलायन करने वाले उन मजदूरों का लेखा-जोखा रखता है जो लाइसेंसी ठेकेदारों के सहयोग से अन्य प्रदेशों में काम करने पलायन करते हैं. र विभाग इन्हीं आंकड़ों के दम पर दावा करता है. जबकि निजी तौर पर पलायन करने वाले और गैर लाइसेंसी ठेकेदार चोरी-छिपे हजारों मजदूरों को अन्य प्रदेशों में लेकर जाते हैं और उन्हें वहां की फैक्ट्री, ईंट भट्ठा के अलावा बड़े ठेकेदारों को सौंपते हैं. विभाग उन्हीं आंकड़ों को सही मानता है, जिनमें लाइसेंसी ठेकेदार मजदूरों को लेकर जाते हैं. जबकि यह आंकड़े वास्तव में कहीं ज्यादा हैं.
कई बार बंधक भी बना लिए जाते हैं मजदूर
पलायन करने वाले मजदूरों को लाइसेंसी ठेकेदार ले जाते हैं. ये वो ठेकेदार होते हैं जो पांच से अधिक मजदूरों को ले जाने वाले ठेकेदार श्रम विभाग से अनुमति लेते हैं. इस अनुमति में कितने मजदूर हैं. कहां जा रहे हैं और किसके यहां काम करने वाले हैं, इसका ब्योरा रहता है. इसकी समय-समय पर विभाग मॉनिटरिंग करता है, लेकिन कई बार निजी तौर पर और गैर लाइसेंसी ठेकेदार ले जाते हैं, तब कई बार मजदूरों की कमाई भी पूरी नहीं देते और उन्हें बंधक बना लेते हैं. ऐसे में श्रम विभाग को उन्हें न्याय दिलाने में काफी परेशानी हो जाती है और उनका सिर्फ उन्हें छुड़ाने का ही उद्देश्य रह जाता है. जिसमें मजदूरों की कमाई रकम उन्हें नहीं मिल पाती.
बिलासपुर श्रम विभाग की अधिकारी ने बताया कि बंधक मजदूरों को छुड़ाने के लिए उन्हें शिकायत पत्र मिलना चाहिए. वहां की स्थानीय प्रशासन उन्हें छुड़ाती है और फिर वो मजदूरों को वहां से सकुशल अपने प्रदेश भी लाते हैं.
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पलायन जरूरी या मजबूरी...?
पलायन की अगर बात करें तो राज्य सरकार सहित श्रम विभाग को भी जानकारी है कि मजदूर बड़ी संख्या में रोजी की तलाश में अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं, लेकिन सरकार इसे मजदूरों की पलायन करने की प्रवृत्ति मानती है. वहीं मजदूर कहते हैं कि उन्हें यहां पूरा साल काम नहीं मिलता. इसलिए वह मजबूरी में पलायन करते हैं. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत उन्हें काम तो मिलता है, लेकिन परिवार के पूरे सदस्यों को नहीं और इसमें भी सीमित संख्या में मजदूरों को रखा जाता है, जिन्हें रोजगार मुहैया कराया जाता है. ऐसे में बड़ी संख्या में मजदूरों को काम नहीं मिलता. साथ ही मजदूरी भी कम मिलती है. इसलिए वह मजबूरी में अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं.
वन नेशन वन कार्ड
केंद्र सरकार की योजना के तहत उन्हें अब अन्य प्रदेशों में भी राशन कार्ड के माध्यम से राशन मिलने लगा है. केंद्र सरकार ने वन नेशन 1 कार्ड योजना शुरू की थी, जिसके तहत उन्हें गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गरीबों को उनका राशन कार्ड से दूसरे प्रदेशों में भी राशन मिल जाता है. मजदूर कहते हैं कि उन्हें राशन मिलने में तकलीफ नहीं है और अधिक रोजी मिलने की वजह से मोटी रकम जमा करने में उन्हें आसानी होती है. इसलिए भी पलायन कर अधिक रकम कमाते हैं और फिर वापस आकर उस पैसे का उपयोग अन्य कामों में करते हैं.