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EXCLUSIVE: ETV भारत पर देखिए प्रोफेसर पीडी खेरा की कुटिया - prabhudutt khera home bilaspur

ETV भारत की टीम प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा के घर पर पहुंची, जहां प्रोफेसर कितनी सादगी से अपना जीवनयापन करते थे इसके प्रत्यक्ष देखने को मिले और इसी आशियाने में उनकी पूरी दुनिया समाई हुई थी.

प्रोफेसर खेरा की कुटिया
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Published : Sep 24, 2019, 8:57 PM IST

Updated : Sep 25, 2019, 12:00 AM IST

बिलासपुर: ETV भारत की टीम प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा के उस घर पर पहुंची जहां वे बेहद ही सादगीपूर्ण जिंदगी जीते थे और यहीं से बैगा आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करते थे.

प्रोफेसर खेरा की कुटिया

लमनी गांव में एक झोपड़ीनुमा घर में एक 'गांधी' रहता होगा इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो. उनके घर के अंदर जब ETV भारत की टीम पहुंची तो एक कच्चे मकान में सामान्य से सामान्य जरूरत की चीजें भी वहां नहीं दिखी. घर के अंदर कुछ किताब, लटके हुए एक-दो थैले, बिस्तर और कुछ बिखरे हुए सामान के अलावा वहां कुछ और नहीं दिखा.

प्रोफेसर खेरा कुछ महीने पहले तक खाना खुद ही बनाते थे, लेकिन चंद महीनों से उनके पड़ोसियों ने खुद खाना बनाने के लिए मना किया तो प्रोफेसर अपने पड़ोसियों के घर में ही खाने लगे थे.

बंधा हुआ था प्रोफेसर खेरा का रुटीन
उनको जाननेवाले बताते हैं कि, गम्भीर रूप से बीमार होने से पहले तक प्रोफेसर खेरा एक बेहद ही शिष्ट जीवन जीते थे. रोज सुबह 4 बजे से उनकी रोज की जिंदगी शुरू हो जाती थी.

  • सुबह उठकर वो नियमित योगा करते और फिर नित्य क्रिया के बाद सुबह 8:30 में वो छपरवा स्थित अपने स्कूल के लिए रवाना हो जाते थे.
  • स्कूल से 4 बजे लौटने के बाद खाना खाते और फिर घर से लगे एक दुकान में रोज नींबू वाली चाय पीया करते थे.
  • फिर घर के पास ही एक तय जगह पर वो बच्चों को चना, मुर्रा और बिस्किट बांटते थे. शाम 7 बजे वो खाना खाते और फिर सो जाते.

प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा ने अपनी पूरी जिंदगी औरों के लिए बिता साबित कर दिया कि सही मायने में उन्होंने अपने जिंदगी गांधीवादी तरीके से जीते हुए समाज को एक नई दिशा दी है.

बिलासपुर: ETV भारत की टीम प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा के उस घर पर पहुंची जहां वे बेहद ही सादगीपूर्ण जिंदगी जीते थे और यहीं से बैगा आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करते थे.

प्रोफेसर खेरा की कुटिया

लमनी गांव में एक झोपड़ीनुमा घर में एक 'गांधी' रहता होगा इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो. उनके घर के अंदर जब ETV भारत की टीम पहुंची तो एक कच्चे मकान में सामान्य से सामान्य जरूरत की चीजें भी वहां नहीं दिखी. घर के अंदर कुछ किताब, लटके हुए एक-दो थैले, बिस्तर और कुछ बिखरे हुए सामान के अलावा वहां कुछ और नहीं दिखा.

प्रोफेसर खेरा कुछ महीने पहले तक खाना खुद ही बनाते थे, लेकिन चंद महीनों से उनके पड़ोसियों ने खुद खाना बनाने के लिए मना किया तो प्रोफेसर अपने पड़ोसियों के घर में ही खाने लगे थे.

बंधा हुआ था प्रोफेसर खेरा का रुटीन
उनको जाननेवाले बताते हैं कि, गम्भीर रूप से बीमार होने से पहले तक प्रोफेसर खेरा एक बेहद ही शिष्ट जीवन जीते थे. रोज सुबह 4 बजे से उनकी रोज की जिंदगी शुरू हो जाती थी.

  • सुबह उठकर वो नियमित योगा करते और फिर नित्य क्रिया के बाद सुबह 8:30 में वो छपरवा स्थित अपने स्कूल के लिए रवाना हो जाते थे.
  • स्कूल से 4 बजे लौटने के बाद खाना खाते और फिर घर से लगे एक दुकान में रोज नींबू वाली चाय पीया करते थे.
  • फिर घर के पास ही एक तय जगह पर वो बच्चों को चना, मुर्रा और बिस्किट बांटते थे. शाम 7 बजे वो खाना खाते और फिर सो जाते.

प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा ने अपनी पूरी जिंदगी औरों के लिए बिता साबित कर दिया कि सही मायने में उन्होंने अपने जिंदगी गांधीवादी तरीके से जीते हुए समाज को एक नई दिशा दी है.

Intro:आज ईटीवी भारत की टीम प्रोफेसर खेरा के उस घर पर पहुंची जहां प्रोफेसर खेरा बेहद ही सादगीपूर्ण जिंदगी को जीते थे और यहीं से बैगा आदिवासियों के कल्याण के लिए नई नई इबारत गढ़ा करते थे ।


Body:लमनी गांव में इसी झोंपड़ीनुमा घर में एक स्कॉलर रहता होगा इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो । उनके घर के अंदर जब हम गए तो एक कच्चे मकान में सामान्य से सामान्य जरूरत की चीजें भी हमें नहीं दिखी । घर के अंदर कुछ किताब,एक दो लटका हुआ थैला,बिस्तर और कुछ बिखरे हुए समान के अलावा हमें कुछ भी नहीं दिखा । प्रोफेसर खेरा कुछ महीने पहले तक खाना खुद ही बनाते थे लेकिन चंद महीनों से उनके पड़ोसियों ने उनसे खाना बनाने से मना किया तो उनके ही घर में खाने लगे ।


Conclusion:उनको जाननेवाले बताते हैं कि गम्भीर रूप से बीमार होने से पहले तक प्रोफेसर खेरा एक बेहद ही शिष्ट जीवन जीते थे । प्रायः सुबह 4 बजे से उनकी रोज की जिंदगी शुरू हो जाती थी । सुबह उठकर वो नियमित योगा करते और फिर नित्य क्रिया के बाद सुबह 8:30 में वो छपरवा स्थित अपने स्कूल के लिए रवाना हो जाते । फिर स्कूल से 4 बजे लौटने के बाद खाना खाते और फिर घर से लगे एक दुकान में रोज नींबू चाय पीया करते । फिर घर के पास ही एक तय जगह पर वो बच्चों को चना,मुर्रा और बिस्किट बांटते थे । शाम 7 बजे वो खाना खाते और फिर सो जाते । प्रो खेरा जी ने अपनी पूरी जिंदगी औरों के हित में बिताकर और सादगीपूर्ण जीवन जीकर यह साबित कर दिया कि सही मायने में उन्होंने अपने जिंदगी को गांधीवादी तरीके से जीकर समाज की एक नई दशा और दिशा तय की है ।
....वॉक थ्रू
विशाल झा.... बिलासपुर
Last Updated : Sep 25, 2019, 12:00 AM IST
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