बिलासपुर: ETV भारत की टीम प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा के उस घर पर पहुंची जहां वे बेहद ही सादगीपूर्ण जिंदगी जीते थे और यहीं से बैगा आदिवासियों के कल्याण के लिए काम करते थे.
लमनी गांव में एक झोपड़ीनुमा घर में एक 'गांधी' रहता होगा इसका अंदाजा शायद ही किसी को हो. उनके घर के अंदर जब ETV भारत की टीम पहुंची तो एक कच्चे मकान में सामान्य से सामान्य जरूरत की चीजें भी वहां नहीं दिखी. घर के अंदर कुछ किताब, लटके हुए एक-दो थैले, बिस्तर और कुछ बिखरे हुए सामान के अलावा वहां कुछ और नहीं दिखा.
प्रोफेसर खेरा कुछ महीने पहले तक खाना खुद ही बनाते थे, लेकिन चंद महीनों से उनके पड़ोसियों ने खुद खाना बनाने के लिए मना किया तो प्रोफेसर अपने पड़ोसियों के घर में ही खाने लगे थे.
बंधा हुआ था प्रोफेसर खेरा का रुटीन
उनको जाननेवाले बताते हैं कि, गम्भीर रूप से बीमार होने से पहले तक प्रोफेसर खेरा एक बेहद ही शिष्ट जीवन जीते थे. रोज सुबह 4 बजे से उनकी रोज की जिंदगी शुरू हो जाती थी.
- सुबह उठकर वो नियमित योगा करते और फिर नित्य क्रिया के बाद सुबह 8:30 में वो छपरवा स्थित अपने स्कूल के लिए रवाना हो जाते थे.
- स्कूल से 4 बजे लौटने के बाद खाना खाते और फिर घर से लगे एक दुकान में रोज नींबू वाली चाय पीया करते थे.
- फिर घर के पास ही एक तय जगह पर वो बच्चों को चना, मुर्रा और बिस्किट बांटते थे. शाम 7 बजे वो खाना खाते और फिर सो जाते.
प्रोफेसर प्रभुदत्त खेरा ने अपनी पूरी जिंदगी औरों के लिए बिता साबित कर दिया कि सही मायने में उन्होंने अपने जिंदगी गांधीवादी तरीके से जीते हुए समाज को एक नई दिशा दी है.