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छत्तीसगढ़ी भाषा की अस्मिता के लिए नंद किशोर शुक्ल कैसे कर रहे संघर्ष, जानिए ! - छत्तीसगढ़ी भाषा की अस्मिता

बिलासपुर के 81 वर्षीय बुजुर्ग नंद किशोर शुक्ल सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ रहे (Nand Kishore Shukla fighting for Chhattisgarhi language in Bilaspur) हैं. हालांकि इस भाषा को उचित सम्मान न मिलने पर वो काफी दु:खी हैं.

Nand Kishore Shukla
नंद किशोर शुक्ल
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Published : Jul 17, 2022, 5:02 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ के बिलासपुर के रहवासी नंद किशोर शुक्ल सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे (Nand Kishore Shukla fighting for Chhattisgarhi language in Bilaspur) हैं. दरअसल, नंद किशोर शुक्ल सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा को सरकारी स्कूल में दर्जा दिलाने को संघर्ष कर रहे हैं. छत्तीसगढी भाषा स्कूल में शामिल तो हो गया, लेकिन उसमें भी कमी है.

छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए संघर्ष

सालों से लड़ रहे भाषा की लड़ाई: बता दें कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में यह पढ़ाई का माध्यम नहीं बन सका है. पिछले कई वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे 81 वर्षीय बुजुर्ग नंद कुमार शुक्ल ने अपनी वेशभूषा को भी छत्तीसगढ़ी कर लिया है. एक हाथ में लाठी रखे हुए, सर पर बंधे कपड़ों पर छत्तीसगढ़ी लिखा हुआ. इसी वेशभूषा में रहकर शुक्ल छत्तीसगढ़ी की लगाई लड़ रहे हैं.

हिन्दी पढ़कर करते हैं छत्तीसगढ़ी में अनुवाद: बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2007 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला. बावजूद इसके प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम छत्तीसगढ़ी भाषा नहीं बन सका. विडंबना यह है कि इसे कक्षा पहली व दूसरी में एक सम्पूर्ण विषय तक नहीं माना गया. हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी भी पढ़ाई जा रही है. इसमें दिक्कत यह है कि शिक्षक पहले हिंदी पढ़कर उसका छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करवाते हैं. यानी सीधे छत्तीसगढ़ी नहीं पढाई जा रही. एक किताब में दो भाषा समाहित कर दी गई है.

यह भी पढ़ें: बिलासपुर के ये स्कूल मौत को दे रहे हैं दावत!

त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए: इस विषय में छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संस्थापक नंद किशोर शुक्ल का कहना है कि "शिक्षा से विकास के द्वार खुलते है. शिक्षा माध्यम छत्तीसगढ़ी होना चाहिए. लेकिन मानसिकता की बात है. अंग्रेजी की तरह हिंदी को मातृभाषा की जगह प्रयुक्त किया जा रहा है. होना यह चाहिए की त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए".

बिलासपुर: छत्तीसगढ के बिलासपुर के रहवासी नंद किशोर शुक्ल सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे (Nand Kishore Shukla fighting for Chhattisgarhi language in Bilaspur) हैं. दरअसल, नंद किशोर शुक्ल सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा को सरकारी स्कूल में दर्जा दिलाने को संघर्ष कर रहे हैं. छत्तीसगढी भाषा स्कूल में शामिल तो हो गया, लेकिन उसमें भी कमी है.

छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए संघर्ष

सालों से लड़ रहे भाषा की लड़ाई: बता दें कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में यह पढ़ाई का माध्यम नहीं बन सका है. पिछले कई वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए लड़ाई लड़ रहे 81 वर्षीय बुजुर्ग नंद कुमार शुक्ल ने अपनी वेशभूषा को भी छत्तीसगढ़ी कर लिया है. एक हाथ में लाठी रखे हुए, सर पर बंधे कपड़ों पर छत्तीसगढ़ी लिखा हुआ. इसी वेशभूषा में रहकर शुक्ल छत्तीसगढ़ी की लगाई लड़ रहे हैं.

हिन्दी पढ़कर करते हैं छत्तीसगढ़ी में अनुवाद: बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2007 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला. बावजूद इसके प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम छत्तीसगढ़ी भाषा नहीं बन सका. विडंबना यह है कि इसे कक्षा पहली व दूसरी में एक सम्पूर्ण विषय तक नहीं माना गया. हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी भी पढ़ाई जा रही है. इसमें दिक्कत यह है कि शिक्षक पहले हिंदी पढ़कर उसका छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करवाते हैं. यानी सीधे छत्तीसगढ़ी नहीं पढाई जा रही. एक किताब में दो भाषा समाहित कर दी गई है.

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त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए: इस विषय में छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संस्थापक नंद किशोर शुक्ल का कहना है कि "शिक्षा से विकास के द्वार खुलते है. शिक्षा माध्यम छत्तीसगढ़ी होना चाहिए. लेकिन मानसिकता की बात है. अंग्रेजी की तरह हिंदी को मातृभाषा की जगह प्रयुक्त किया जा रहा है. होना यह चाहिए की त्रिभाषा सूत्र लागू किया जाए".

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