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अमन-चैन का संदेश देता है...सबसे मोहब्बत करना सिखाता है ईद-मिलाद-उन-नबी... - bilaspur news

हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम के जन्मदिवस के मौके पर मुस्लिम समुदाय पूरे विश्व में ईद-मिलाद-उन-नबी का पर्व मनाता है. इसमें मुस्लिम परिवार मीठे पकवान और खीर बनाकर फातिहा करता है. फिर लोगों में बांटता है. यह पर्व मुस्लिम परिवार काफी धूमधाम से मनाता है. साथ ही लंगर, फातिहा और जुलूस जैसे कार्यक्रम भी आयोजित करता है.

The enthusiasm seen in the children prepared by decorating the mosque
मस्जिद सज-धज कर तैयार बच्चों में दिख रहा उत्साह
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Published : Oct 18, 2021, 10:26 PM IST

Updated : Oct 18, 2021, 10:58 PM IST

बिलासपुर : हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम (Hazrat Mohammad Sallallaho Alehi Wasallam) का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का (makkah) में 570 ईसवी में हुआ था. वे उर्दू की तारीख रबुव्वल 12 में जन्मे थे. इसीलिए मुस्लिम समुदाय उनका जन्मदिवस इसी तारीख में मनाता है. पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. जब वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. मोहम्मद साहब बचपन से ही इस्लाम के प्रचारक के रूप में जाने जाते रहे हैं. वह हमेशा से ही इस्लाम की बातें लोगों तक पहुंचाया करते थे. वे अपनी जवानी में घूम-घूमकर अमन-चैन और एक-दूसरे से मोहब्बत करने का संदेश दिया करते थे. उन्होंने पूरी दुनिया में इस्लाम की जानिब अमन का संदेश दिया था. उन्हें मालूम था कि उनकी मृत्य भी उनके जन्मदिवस पर ही होगी. इसलिए उन्होंने ये कह रखा था कि उनकी मृत्यु का गम नहीं बल्कि उनके जन्म की खुशियां मनाई जानी चाहिए. इसीलिए उनके जन्मदिवस पर हर साल मुस्लिम समुदाय खुशियां मनाता है.

मस्जिद सज-धज कर तैयार

बिलासपुर में पर्व की धूम

बिलासपुर शहर में भी ईद-उल-मिलादुन्नबी को जश्न के तौर पर मनाया जा रहा है. यहां रोजाना मस्जिदों में तकरीर और मोहम्मद साहब की याद में लंगर का इंतजाम किया जाता है. छोटे-छोटे बच्चे घरों से निकलकर जुलूस के रूप में गली-मोहल्ले में घूम-घूमकर लोगों को अमन-चैन और भाईचारे का संदेश देते हैं. इस दौरान बच्चों के हाथों में इस्लामिक झंडे रहते हैं और वे हुजूर की जिंदाबाद के नारे लगाते हैं. शहर के मदीना मस्जिद के इमाम ने बताया कि यह बहुत ही शुभ दिन होता है. इस दिन को मुस्लिम बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाते हैं. इसलिए सभी मुस्लिम अपने घरों में साफ-सफाई कर फातिहा का इंतजाम करते हैं. एक-दूसरे को पर्व की बधाई भी देते हैं. मुस्लिम समुदाय इस दिन गरीबों को खाना खिलाने और उनकी जरूरतें पूरी करने की व्यवस्था भी करते हैं. युवा वर्ग भी शहर में घूम-घूमकर इस पर्व की बधाई देने के साथ ही अमन-चैन और भाईचारे का संदेश देते हैं.

बिलासपुर : हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम (Hazrat Mohammad Sallallaho Alehi Wasallam) का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का (makkah) में 570 ईसवी में हुआ था. वे उर्दू की तारीख रबुव्वल 12 में जन्मे थे. इसीलिए मुस्लिम समुदाय उनका जन्मदिवस इसी तारीख में मनाता है. पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. जब वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. मोहम्मद साहब बचपन से ही इस्लाम के प्रचारक के रूप में जाने जाते रहे हैं. वह हमेशा से ही इस्लाम की बातें लोगों तक पहुंचाया करते थे. वे अपनी जवानी में घूम-घूमकर अमन-चैन और एक-दूसरे से मोहब्बत करने का संदेश दिया करते थे. उन्होंने पूरी दुनिया में इस्लाम की जानिब अमन का संदेश दिया था. उन्हें मालूम था कि उनकी मृत्य भी उनके जन्मदिवस पर ही होगी. इसलिए उन्होंने ये कह रखा था कि उनकी मृत्यु का गम नहीं बल्कि उनके जन्म की खुशियां मनाई जानी चाहिए. इसीलिए उनके जन्मदिवस पर हर साल मुस्लिम समुदाय खुशियां मनाता है.

मस्जिद सज-धज कर तैयार

बिलासपुर में पर्व की धूम

बिलासपुर शहर में भी ईद-उल-मिलादुन्नबी को जश्न के तौर पर मनाया जा रहा है. यहां रोजाना मस्जिदों में तकरीर और मोहम्मद साहब की याद में लंगर का इंतजाम किया जाता है. छोटे-छोटे बच्चे घरों से निकलकर जुलूस के रूप में गली-मोहल्ले में घूम-घूमकर लोगों को अमन-चैन और भाईचारे का संदेश देते हैं. इस दौरान बच्चों के हाथों में इस्लामिक झंडे रहते हैं और वे हुजूर की जिंदाबाद के नारे लगाते हैं. शहर के मदीना मस्जिद के इमाम ने बताया कि यह बहुत ही शुभ दिन होता है. इस दिन को मुस्लिम बहुत बड़े पर्व के रूप में मनाते हैं. इसलिए सभी मुस्लिम अपने घरों में साफ-सफाई कर फातिहा का इंतजाम करते हैं. एक-दूसरे को पर्व की बधाई भी देते हैं. मुस्लिम समुदाय इस दिन गरीबों को खाना खिलाने और उनकी जरूरतें पूरी करने की व्यवस्था भी करते हैं. युवा वर्ग भी शहर में घूम-घूमकर इस पर्व की बधाई देने के साथ ही अमन-चैन और भाईचारे का संदेश देते हैं.

Last Updated : Oct 18, 2021, 10:58 PM IST
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