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लॉकडाउन का असर: पानी की किल्लत से लोगों को मिली निजात

कोरोना वायरस की वजह से लगे लॉकडाउन से प्रकृति को बेहद फायदा हुआ है. लॉकडाउन के दौरान प्रदूषण में भी भारी कमी आई है. इससे इंसानों को अब फिर से प्रकृति के करीब आने का मौका मिला है. साथ ही गर्मी के दिनों में होने वाली पानी की परेशानी से भी लोगों को पहले के मुकाबले राहत मिली है.

Effect of lockdown on environment
पर्यावरण पर लॉकडाउन का असर
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Published : Jun 5, 2020, 11:10 PM IST

बिलासपुर: कोरोना संक्रमण की वजह से भले ही आज पूरा विश्व दहशत में क्यों ना हो, लेकिन अब तक इस कोरोना काल ने हमें कुछ सीख भी दी है. कोरोना वायरस ने भले ही आज जनजीवन को प्रभावित किया है लेकिन इससे पर्यावरण को बेहद राहत पहुंची है. लॉकडाउन की वजह से बने प्राकृतिक संतुलन ने इंसान और प्रकृति के बीच उस रिश्ते को फिर से जोड़ दिया है जिसे इंसान ने अंधाधुन्ध विकास के नाम पर खो दिया था. वहीं इस बड़ी बात ये है कि गर्मी के दिनों में जहां लोगों को पानी की किल्लतों का सामना करना पड़ता था, उससे लोगों को राहत मिली है.

पर्यावरण पर लॉकडाउन का असर

पर्यावरण के जानकार नंद कश्यप बताते हैं कि कोविड-19 के इस दौर ने इंसान इंसान को आत्मनिरीक्षण का अवसर दिया है. हमने देखा कि सारी दुनिया में लॉकडाउन के कारण तकरीबन 25 से 30 फीसदी तक वायु प्रदूषण में कमी आई है. मौसम वैज्ञानिकों ने साल 2020 को सबसे गर्म साल होने का अनुमान लगाया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोविड-19 के कारण जो दुनिया पूरी थम सी गई थी, उससे प्रकृति में संतुलन बना है. इस दौरान किसी ना किसी रूप में ईंधन का जलना कम हुआ है, 30 से 40 फीसदी ईंधन कम जलने के कारण हवा में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा में कमी आई है. जिससे तापमान में भी फर्क पड़ा है.

पढ़ें: SPECIAL: प्रकृति से इतना प्रेम कि इस अधिकारी ने घर को ही बना लिया गार्डन

तापमान में आया फर्क

बिलासपुर शहर की बात करें तो बिलासपुर शहर में बीते साल 2017 में 49 डिग्री का रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया था. बीते दो सालों में गर्मी लगातार बढ़ रही थी. लेकिन इस साल मई महीने में सिर्फ एक दिन शहर का तापमान 45 डिग्री तक रहा. जिसके बाद से तापमान में लगातार गिरावट दर्ज की गई. अब तक के कोरोना के सफर ने उस मिथ को तोड़ दिया है जिसमें अंधाधुंध विकास को ही विकास माना जाता है.

अच्छी बारिश होने की उम्मीद

जानकार बताते हैं कि लगातार हम भूजल के दोहन के कारण विकराल स्थिति का निर्माण करते चले गए. बिलासपुर संभाग में वनों से घिरे मरवाही क्षेत्र में साल 2017 में बरसात के तीन महीने में महज साढ़े 3 घंटे ही बारिश दर्ज की गई थी और पूरे संभाग में महज हफ्तेभर ही बारिश हुई थी. साल 2018-19 में यह आंकड़ा बदला और कुल 100 दिन की बारिश दर्ज की गई. इस बार जब प्रकृति का दोहन कम हुआ है तो ऐेसे में जानकार आगे अच्छी बारिश की उम्मीद कर रहे हैं.

पढ़ें: विश्व पर्यावरण दिवस: सीएम ने लगाए पौधे, कहा- अगर पेड़ वाई-फाई देते तो बहुत से लग जाते

प्रकृति और धार्मिक मान्यताएं

प्रकृति को धार्मिक भावनाओं को युगों से जोड़ के रखा गया है. जिसका उद्देश्य प्रकृति का संरक्षण ही है. लेकिन हम प्रकृति से धार्मिक जुड़ाव की औपचारिकता को ज्यादा अपनाने लगे. या यूं कहें कि ये महज एक औपचारिकता बनकर रह गई. जिस कारण प्रकृति हमसे रूठती चली गई. अब जरूरत है कि कोरोना काल के इस दौर से मिली सीख को हम जीवन का हिस्सा बनाएं. ताकि मानव और प्रकृति के बीच की दूरी कम हो सके.

बिलासपुर: कोरोना संक्रमण की वजह से भले ही आज पूरा विश्व दहशत में क्यों ना हो, लेकिन अब तक इस कोरोना काल ने हमें कुछ सीख भी दी है. कोरोना वायरस ने भले ही आज जनजीवन को प्रभावित किया है लेकिन इससे पर्यावरण को बेहद राहत पहुंची है. लॉकडाउन की वजह से बने प्राकृतिक संतुलन ने इंसान और प्रकृति के बीच उस रिश्ते को फिर से जोड़ दिया है जिसे इंसान ने अंधाधुन्ध विकास के नाम पर खो दिया था. वहीं इस बड़ी बात ये है कि गर्मी के दिनों में जहां लोगों को पानी की किल्लतों का सामना करना पड़ता था, उससे लोगों को राहत मिली है.

पर्यावरण पर लॉकडाउन का असर

पर्यावरण के जानकार नंद कश्यप बताते हैं कि कोविड-19 के इस दौर ने इंसान इंसान को आत्मनिरीक्षण का अवसर दिया है. हमने देखा कि सारी दुनिया में लॉकडाउन के कारण तकरीबन 25 से 30 फीसदी तक वायु प्रदूषण में कमी आई है. मौसम वैज्ञानिकों ने साल 2020 को सबसे गर्म साल होने का अनुमान लगाया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोविड-19 के कारण जो दुनिया पूरी थम सी गई थी, उससे प्रकृति में संतुलन बना है. इस दौरान किसी ना किसी रूप में ईंधन का जलना कम हुआ है, 30 से 40 फीसदी ईंधन कम जलने के कारण हवा में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा में कमी आई है. जिससे तापमान में भी फर्क पड़ा है.

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तापमान में आया फर्क

बिलासपुर शहर की बात करें तो बिलासपुर शहर में बीते साल 2017 में 49 डिग्री का रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया था. बीते दो सालों में गर्मी लगातार बढ़ रही थी. लेकिन इस साल मई महीने में सिर्फ एक दिन शहर का तापमान 45 डिग्री तक रहा. जिसके बाद से तापमान में लगातार गिरावट दर्ज की गई. अब तक के कोरोना के सफर ने उस मिथ को तोड़ दिया है जिसमें अंधाधुंध विकास को ही विकास माना जाता है.

अच्छी बारिश होने की उम्मीद

जानकार बताते हैं कि लगातार हम भूजल के दोहन के कारण विकराल स्थिति का निर्माण करते चले गए. बिलासपुर संभाग में वनों से घिरे मरवाही क्षेत्र में साल 2017 में बरसात के तीन महीने में महज साढ़े 3 घंटे ही बारिश दर्ज की गई थी और पूरे संभाग में महज हफ्तेभर ही बारिश हुई थी. साल 2018-19 में यह आंकड़ा बदला और कुल 100 दिन की बारिश दर्ज की गई. इस बार जब प्रकृति का दोहन कम हुआ है तो ऐेसे में जानकार आगे अच्छी बारिश की उम्मीद कर रहे हैं.

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प्रकृति और धार्मिक मान्यताएं

प्रकृति को धार्मिक भावनाओं को युगों से जोड़ के रखा गया है. जिसका उद्देश्य प्रकृति का संरक्षण ही है. लेकिन हम प्रकृति से धार्मिक जुड़ाव की औपचारिकता को ज्यादा अपनाने लगे. या यूं कहें कि ये महज एक औपचारिकता बनकर रह गई. जिस कारण प्रकृति हमसे रूठती चली गई. अब जरूरत है कि कोरोना काल के इस दौर से मिली सीख को हम जीवन का हिस्सा बनाएं. ताकि मानव और प्रकृति के बीच की दूरी कम हो सके.

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