जांजगीर-चांपा : चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र और ग्रामीण अंचलों में शुक्रवार को छेरछेरा का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. छेरछेरा त्योहार के मद्देनजर क्षेत्र में लगभग 1 महीने पहले से ही ग्रामीणों और युवाओं की तरफ से डंडा नृत्य करने का सिलसिला जारी रहता है. ये परंपरा बरसों से चली आ रही है. सालभर की मेहनत के बाद मिलने वाली फसल को समेटने की खुशी में किसान ये त्योहार मनाते हैं.
प्रेम प्रदर्शन का प्रतीक है छेरछेरा
परंपरा के मुताबिक जब किसान अपनी फसल को प्राप्त कर उसे कोठी में भरता है, तो गांव के लोग उसमें से कुछ धान की मांग करते हैं, जिसे वह खुशी-खुशी मुट्ठी भर दे देता है. छेरछेरा एक-दूसरे के साथ खुशी बांटने और प्रेम प्रदर्शन का प्रतीक है.
ग्रामीणों का मानना है कि कोठी का धान बांटने से कोठी में धान हमेशा भरा रहता है. वैसे तो मांगने वालों में बच्चों की संख्या ज्यादा होती है, लेकिन बड़े-बुजुर्ग और महिला सभी वर्ग के लोग टोली बनाकर 'छेरछेरा-छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेर-हेरा' बोल कर छेरछेरा मांगते हैं.
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पौष पूर्णिमा के दिन को छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोक त्योहार के रूप में मनाया जाता है. आज के दिन गांव- गांव में बच्चे और बूढ़े घर-घर जाकर छेरछेरा मांगते हैं, जिसमें उन्हें दान के रूप में रुपए और धान मिलता है. आज के दिन को अन्न दान के रूप में मनाने की मान्यता है. इस कारण शुक्रवार को जांजगीर-चांपा जिले के चन्द्रपुर क्षेत्र के सभी गांव में छेरछेरा को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया गया. पौष पूर्णिमा के आने से लगभग 15 दिन पहले ही गांव के लोग टोली बनाते हैं.