गौरेला पेंड्रा मरवाही: मरवाही वन मंडल के गौरेला वन परिक्षेत्र में चाय बागान के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला ( chaybagan scam in Gaurela) सामने आया है, जिसमें अमरकंटक की तराई इलाके में एफआरए योजना के तहत आदिवासी को मिली जमीन को विकसित करने के नाम पर 2 करोड़ रुपये से अधिक का स्कैम किया गया है. योजना के तहत हजारों चाय के पौधों में से एक भी जीवित नहीं है. दो करोड़ रुपये के चाय पौधों की जगह सिर्फ गाजर घास रह गए हैं. देखरेख के अभाव में हजारों चाय के पौधे मर गए. बिना खाद और पानी के पौधों को रोपकर छोड़ दिया गया. एफआरए योजना के तहत वन विभाग ने बैगा आधिवासियों के साथ छल किया है.
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दरअसल चाय बागान के नाम पर 2 करोड़ रुपये से अधिक स्वीकृति प्राप्त कर विभाग के अधिकारी कर्मचारियों ने पैसे का बंदरबांट कर दिया. मौके पर चाय बागान के नाम पर सिर्फ गाजर घास नजर आती है. बैगा आदिवासियों का जीवन स्तर उठाने के लिए करोड़ों रुपये अधिकारी कर्मचारियों की जेबों में चले गए और बैगा आदिवासी एक बार फिर ठगे गए.
चाय बागान फर्जीवाड़ा: मरवाही वन मंडल में साल 2020-21 में नया घोटाला सामने आया था. गौरेला वन परिक्षेत्र में आमानाला ठाड़पथरा बीट में रहने वाले बैगा आदिवासियों की भूमि पर एफआरए योजना के तहत उनकी आय बढ़ाने के लिए वन विभाग ने मनरेगा के तहत चाय बागान बनाने की महत्वपूर्ण योजना बनाई. योजना के तहत 73 आदिवासी किसानों को मिली वन भूमि पर चाय बागान बनाकर उनकी आय बढ़ाने का सब्जबाग दिखाते हुए चाय बागान की बड़ी योजना स्वीकृत कराई गई. योजना में प्रत्येक हितग्राही के नाम पर 3 लाख रुपये स्वीकृत हुआ. वन विभाग ने पूरी योजना में एजेंसी के रूप में कार्य करते हुए 73 किसानों की भूमि पर चाय के लाखों पौधे रोपित करना बताया.
हितग्राही बैगा आदिवासी नंगू बैगा, अमर लाल और जनक राम के अनुसार , "रोपाई के बाद पौधे कुछ दिनों तक तो जीवित थे. बाद में वन विभाग ने पौधों में ना तो खाद डाला न ही पानी डाला, गर्मी के दिनों में तो 2 हफ्ते में एक बार ही पानी डाला जाता था. पौधों को पूरी तरह प्रकृति पर छोड़ दिया गया. बिन पानी के सूख कर सारे पौधे मर गए. पौधे रोपित करने के बाद कुछ दिनों तक तो अधिकारी आते रहे बाद में किसी ने भी इस ओर मुड़कर नहीं देखा".
बैगा आदिवासी नंगू बैगा, अमर लाल और जनक राम ने बताया कि "महात्मा गांधी रोजगार गारंटी के तहत अमरकंटक के चाय बागान के अनुकूल वातावरण में चाय के पौधे लगा गए थे. इसके लिए अधिकारियों ने जानबूझकर ऐसी जगह का चयन किया जो लगभग पहुंचविहीन है. हमें भी वहां पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर पहाड़ी रास्तों में पैदल चलना पड़ा. मौके पर कई पहाड़ी नाले और पतली पगडंडी है. मौके पर जाने से पता चला कि जहां चाय के पौधे लहलहाने चाहिए थे, वहां सिर्फ गाजर घास नजर आ रही है. मौके पर पानी सिंचाई की कोई व्यवस्था विभाग द्वारा नहीं की गई. जबकि मनरेगा के अंतर्गत लगभग 7 करोड़ रुपए के पुल पुलिया और स्टाफ डैम इसी इलाके में बनाए गए".
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चाय बागान के बारें में क्या बोले वन अधिकारी: उप वन मंडल अधिकारी मोहर सिंह मरकाम का कहना है कि "फिलहाल योजना के संबंध में किसी तरह की शिकायत प्राप्त नहीं हुई है. शिकायत मिलेगी तो जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी फिर भी योजना की स्थिति विभाग से मांगी गई है. जानकारी आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी. मरवाही वन मंडल के अधिकारियों को एफआरए योजना के तहत लगाए गए सारे पौधे मृत्यु हो जाने की जानकारी है. उनके पास शिकायत भी है लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं हुई है. हालांकि विभाग के अधिकारी यह जरूर कह रहे हैं कि जांच के बाद जिम्मेदारियां तय की जाएगी और कार्रवाई भी होगी."