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SIMS Hospital: 11 महीने में 425 नवजातों की मौत, क्यों नहीं थम रहा मौत का सिलसिला

सिम्स में सभी बीमारियों के साथ ही एक्सिडेंटल और एमरजेंसी सुविधा उपलब्ध है. शरीर की सभी बीमारियों का ईलाज यहां होता है. सिम्स में करोड़ों रुपए की मशीन है. बावजूद इसके नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला यहा नहीं थम रहा है.

case of newborn death did not stop
सिम्स मेडिकल कॉलेज
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Published : Oct 21, 2021, 5:32 PM IST

Updated : Oct 21, 2021, 8:14 PM IST

बिलासपुर: संभाग का सबसे बड़ा हॉस्पिटल सिम्स मेडिकल कॉलेज (Sims Medical College) है. यह 700 बिस्तर वाला हॉस्पिटल है. जहां मल्टी स्पेशलिटी फैसिलिटी (Multi Specialty Facility) उपलब्ध है. सिम्स में सभी बीमारियों के साथ ही एक्सिडेंटल और एमरजेंसी सुविधा उपलब्ध है. जिनका उपचार किया जाता है. शरीर की सभी बीमारियों का ईलाज यहां किया जाता है. सिम्स में करोड़ों रुपए की मशीन है. बावजूद इसके नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला यहा नहीं थमने का नाम नहीं ले रहा है.

11 महीने में 425 नवजातों की मौत

जनवरी से लेकर अक्टूबर माह के अब तक यहां पर लगभग 425 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं प्रबंधन का इस मामले में कहना है कि उन्होंने 2,980 नवजात बच्चों की जान बचाई है और उन्हें स्वस्थ्य कर हॉस्पिटल से उन्हें उनके घर भेजा है. पिछले दिनों अंबिकापुर में 7 नवजात बच्चों की मौत के मामले में जांच चल रही है. जिसकी आखिरी रिपोर्ट आना अभी बाकी. लेकिन बिलासपुर के सिम्स मेडिकल कॉलेज (Sims Medical College) की बात करें तो वही स्थिति यहां भी निर्मित हो गई है.

आंकड़ों की अगर बात करें तो सिम्स मेडिकल कॉलेज में अस्पताल जनवरी से लेकर अब तक यानी (11 महीनों में) 425 नवजात की मौत हो चुकी है. यह आंकड़ा बताता है कि संभाग के सबसे बड़े हॉस्पिटल की इलाज की सुविधा कितनी बेहतर है. 425 बच्चों की मौत हो चुकी है और इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि यहां 2,830 बच्चों को ठीक भी किया जा चुका है.

इस मामले में सिम्स प्रबंधन का कहना है कि हमने 3,255 बच्चों के इलाज में बेहतर काम किया है. सिम्स के बेहतर सुविधा के साथ उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर इलाज किया है और यही कारण है कि 2,830 बच्चों को ठीक भी किया है.

इतनी बड़ी संख्या क्यों है मरीजों की सिम्स में

छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (Chhattisgarh Institute of Medical Science) बिलासपुर संभाग के 5 जिलों के साथ ही छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के शहडोल संभाग अनूपपुर, उमरिया, शहडोल के अलावा मध्य प्रदेश के दूसरे शहरों से भी यहां मरीज इलाज करवाने आते हैं. कई बार मरीजों की हालत इतनी गंभीर होती है कि उनका इलाज संभव ही नहीं हो पाता है. बावजूद इसके उन्हें यहां भर्ती किया जाता है, लेकिन अगर इलाज के व्यवस्था की बात करें तो यहां इलाज बेहतर तो है लेकिन लापरवाही भी बहुत ज्यादा है. बिलासपुर संभाग का सबसे बड़े हॉस्पिटल होने के नाते यहां राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए की मशीनें हैं. जिससे मरीजों का इलाज किया जाता है. लेकिन आए दिन मशीनें खराब रहती है और इलाज के अभाव में मरीजों दम तोड़ देते हैं.

सिम्स प्रबंधन लाख सफाई देता है कि उनके यहां सबसे बेहतर इलाज होता है. लेकिन लापरवाही भी यहा बहुत है. 11 महीने में भर्ती हुए और यही पैदा हुए नवजात की संख्या मेडिकल कॉलेज यही डिलीवरी हुए नवजात बच्चे और भर्ती हुए बच्चों की संख्या की बात करें तो बहुत बड़े पैमाने पर यहां नवजात बच्चों का इलाज किया है. अगर आंकड़ों की बात करें तो यहां लगभग 3,255 नवजात भर्ती हैं. जिनमें 425 बच्चों की मौत हुई है और 2,830 बच्चे ठीक होकर यहां से गए हैं. हर महीने भर्ती बच्चों के ठीक होने और मौत होने के आंकड़े इस प्रकार हैं.

माह भर्तीस्वास्थ्य नवजातमौत
जनवरी 393 367 26
फरवरी27925029
मार्च 347 29948
अप्रैल123 8538
मई 219 184 35
जून278 24137
जुलाई 36931356
अगस्त 416 34373
सितंबर516 45957
अक्टूबर315 28926

मौत के क्या कारण

सिम्स मेडिकल कॉलेज आसपास के संभाग के मरीजों को भर्ती करता है और यहां दूर-दूर से मरीज इलाज कराने यहां आते हैं. सिम्स प्रबंधन की माने तो यहा वह मरीज आते हैं जो पहले से ही गंभीर अवस्था में होते हैं. जिनका इलाज दूसरे सरकारी अस्पताल या निजी अस्पतालों में होते रहता है और जब वह अस्पताल मरीजों के केस संभाल नहीं पाते और मरीज की स्थिति लगातार खराब होता देख अपना सिर दर्द सिम्स के ऊपर थोप देते हैं. यानी केस बिगाड़ देने के बाद वह मरीज के परिजनों को सिम्स में भर्ती कराने की सलाह देते हैं और रेफर कर देते हैं. यही कारण है कि गंभीर अवस्था में मरीजों के पहुंचने की वजह से यहा ज्यादा मौतें होती है और सारा जिम्मा सिम्स के माथे चढ़ जाता है.

बिलासपुर: संभाग का सबसे बड़ा हॉस्पिटल सिम्स मेडिकल कॉलेज (Sims Medical College) है. यह 700 बिस्तर वाला हॉस्पिटल है. जहां मल्टी स्पेशलिटी फैसिलिटी (Multi Specialty Facility) उपलब्ध है. सिम्स में सभी बीमारियों के साथ ही एक्सिडेंटल और एमरजेंसी सुविधा उपलब्ध है. जिनका उपचार किया जाता है. शरीर की सभी बीमारियों का ईलाज यहां किया जाता है. सिम्स में करोड़ों रुपए की मशीन है. बावजूद इसके नवजात बच्चों की मौत का सिलसिला यहा नहीं थमने का नाम नहीं ले रहा है.

11 महीने में 425 नवजातों की मौत

जनवरी से लेकर अक्टूबर माह के अब तक यहां पर लगभग 425 बच्चों की मौत हो चुकी है. वहीं प्रबंधन का इस मामले में कहना है कि उन्होंने 2,980 नवजात बच्चों की जान बचाई है और उन्हें स्वस्थ्य कर हॉस्पिटल से उन्हें उनके घर भेजा है. पिछले दिनों अंबिकापुर में 7 नवजात बच्चों की मौत के मामले में जांच चल रही है. जिसकी आखिरी रिपोर्ट आना अभी बाकी. लेकिन बिलासपुर के सिम्स मेडिकल कॉलेज (Sims Medical College) की बात करें तो वही स्थिति यहां भी निर्मित हो गई है.

आंकड़ों की अगर बात करें तो सिम्स मेडिकल कॉलेज में अस्पताल जनवरी से लेकर अब तक यानी (11 महीनों में) 425 नवजात की मौत हो चुकी है. यह आंकड़ा बताता है कि संभाग के सबसे बड़े हॉस्पिटल की इलाज की सुविधा कितनी बेहतर है. 425 बच्चों की मौत हो चुकी है और इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि यहां 2,830 बच्चों को ठीक भी किया जा चुका है.

इस मामले में सिम्स प्रबंधन का कहना है कि हमने 3,255 बच्चों के इलाज में बेहतर काम किया है. सिम्स के बेहतर सुविधा के साथ उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर इलाज किया है और यही कारण है कि 2,830 बच्चों को ठीक भी किया है.

इतनी बड़ी संख्या क्यों है मरीजों की सिम्स में

छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (Chhattisgarh Institute of Medical Science) बिलासपुर संभाग के 5 जिलों के साथ ही छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के शहडोल संभाग अनूपपुर, उमरिया, शहडोल के अलावा मध्य प्रदेश के दूसरे शहरों से भी यहां मरीज इलाज करवाने आते हैं. कई बार मरीजों की हालत इतनी गंभीर होती है कि उनका इलाज संभव ही नहीं हो पाता है. बावजूद इसके उन्हें यहां भर्ती किया जाता है, लेकिन अगर इलाज के व्यवस्था की बात करें तो यहां इलाज बेहतर तो है लेकिन लापरवाही भी बहुत ज्यादा है. बिलासपुर संभाग का सबसे बड़े हॉस्पिटल होने के नाते यहां राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए की मशीनें हैं. जिससे मरीजों का इलाज किया जाता है. लेकिन आए दिन मशीनें खराब रहती है और इलाज के अभाव में मरीजों दम तोड़ देते हैं.

सिम्स प्रबंधन लाख सफाई देता है कि उनके यहां सबसे बेहतर इलाज होता है. लेकिन लापरवाही भी यहा बहुत है. 11 महीने में भर्ती हुए और यही पैदा हुए नवजात की संख्या मेडिकल कॉलेज यही डिलीवरी हुए नवजात बच्चे और भर्ती हुए बच्चों की संख्या की बात करें तो बहुत बड़े पैमाने पर यहां नवजात बच्चों का इलाज किया है. अगर आंकड़ों की बात करें तो यहां लगभग 3,255 नवजात भर्ती हैं. जिनमें 425 बच्चों की मौत हुई है और 2,830 बच्चे ठीक होकर यहां से गए हैं. हर महीने भर्ती बच्चों के ठीक होने और मौत होने के आंकड़े इस प्रकार हैं.

माह भर्तीस्वास्थ्य नवजातमौत
जनवरी 393 367 26
फरवरी27925029
मार्च 347 29948
अप्रैल123 8538
मई 219 184 35
जून278 24137
जुलाई 36931356
अगस्त 416 34373
सितंबर516 45957
अक्टूबर315 28926

मौत के क्या कारण

सिम्स मेडिकल कॉलेज आसपास के संभाग के मरीजों को भर्ती करता है और यहां दूर-दूर से मरीज इलाज कराने यहां आते हैं. सिम्स प्रबंधन की माने तो यहा वह मरीज आते हैं जो पहले से ही गंभीर अवस्था में होते हैं. जिनका इलाज दूसरे सरकारी अस्पताल या निजी अस्पतालों में होते रहता है और जब वह अस्पताल मरीजों के केस संभाल नहीं पाते और मरीज की स्थिति लगातार खराब होता देख अपना सिर दर्द सिम्स के ऊपर थोप देते हैं. यानी केस बिगाड़ देने के बाद वह मरीज के परिजनों को सिम्स में भर्ती कराने की सलाह देते हैं और रेफर कर देते हैं. यही कारण है कि गंभीर अवस्था में मरीजों के पहुंचने की वजह से यहा ज्यादा मौतें होती है और सारा जिम्मा सिम्स के माथे चढ़ जाता है.

Last Updated : Oct 21, 2021, 8:14 PM IST
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