बिलासपुर: मुस्लिम समुदाय का नया साल मोहर्रम से शुरू होता है. मोहर्रम से जुड़ी कई अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं. कुछ लोग ताजिया बनाते हैं, तो कुछ सवारियां उठाते हैं. कुछ शेर बनकर नाचते हैं. सभी अपने-अपने तरीके और मन्याताओं के मुताबिक मोहर्रम मनाते हैं. मानता के अनुरूप मोहर्रम में लोग अपने मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
98 साल से बनता आ रहा ताजिया: बिलासपुर में पिछले 98 साल से मोहर्रम में ताजिया बनता आ रहा है. इसका इतिहास काफी पुराना है. जानकारों के मुताबिक बिलासपुर में किसी समय लगभग 20 ताजिया तैयार हुआ करती थी. हालांकि अब 5 ही ताजिया तैयार होती है. छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा ताजिया बिलासपुर में ही तैयार होती थी. हालांकि समय के साथ-साथ इसकी परंपरा खत्म होती जा रही है.
जानिए मोहर्रम का इतिहास: इस्लाम धर्म में मोहर्रम का महीना बड़ा ही खास होता है. जहां एक ओर इस्लामिक कैलेंडर मोहर्रम से शुरू होता है. वहीं, कई लोग हसन, हुसैन की याद में मोहर्रम मनाते हैं. मोहर्रम में बिलासपुर में नजारा कुछ अलग ही रहता है. मोहर्रम के शुरुआत से ही बिलासपुर में इस्लामिक माहौल बना रहता है. ढोल, ताशा, शेर नाच, ताजिया और सवारियां सड़कों पर नजर आने लगती है.
ताजिया से जुड़ी मान्यताएं: मोहर्रम में ताजिया तैयार कर बिठाने और इसे घुमाने को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं. कुछ इस मामले में कर्बला की याद में ताजिया बनाने की बात कहते हैं. तो कुछ इसे परंपरा मानते हैं. कई लोग कहते हैं कि अरब देश के कर्बला को न देख पाने के कारण ताजिया बनाकर कर्बला का दीदार करते हैं.
ताजिया जैसा मकबरा अरब देश के कर्बला में है. हम कर्बला के मकबरा का दीदार नहीं कर पाते. इसलिए ताजिया बनाकर उसका दीदार करते हैं और दूसरों को भी इसका दीदार करवाते हैं. - जमशेर खान, बिलासपुर वासी
बताशे की भी बनती थी ताजिया: बिलासपुर के मसानगंज क्षेत्र में बताशे की ताजिया बनाई जाती थी. यह ताजिया बिलासपुर ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में फेमस थी.इसे देखने लोग दूर-दूर से आते थे. बतासे वाली ताजिया बतासे से नहीं बल्कि कागज से बनाई जाती थी, जिसे बताशे का रूप दिया जाता था. इसे खास तरह के कागज से तैयार किया जाता है. इसे तैयार करने वाले मसानगंज के फजलू खान अपनी विशेष कला से इसे तैयार करते थे. लेकिन उनकी यह कला इतनी कठिन थी कि इसे कोई दूसरा नहीं सिख पाया. उनके साथ ये कला भी चली गई.
शहर में बीस से ज्यादा बनाई जाती थी ताजिया:शहर के अलग-अलग मुस्लिम इलाकों में लोग अलग-अलग तरह के ताजिया तैयार करते थे. शहर में लगभग 20 ताजिया तैयार हुआ करती थी. लेकिन इसे तैयार करने वाले धीरे-धीरे इस दुनिया से जाते गए और उनके बाद फिर उनकी जगह कोई दूसरा ताजिया तैयार करना शुरू नहीं किया. यही वजह है कि शहर में अब केवल 5 ही ताजिया तैयार होती है. पहले बिलासपुर के चुचुहियापारा, मसानगंज, तालापारा, खपरगंज, कुदुदंड, जूनी लाइन और कई अलग-अलग मुस्लिम क्षेत्रों में ताजिया तैयार की जाती थी, लेकिन अब आधुनिकता और नए जमाने में लोग इसे भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि अब बहुत ही कम संख्या में ताजिया तैयार किया जाता है.
शहर की सड़कों पर घुमाया जाता है ताजिया: बिलासपुर में ताजिया घुमाने की भी परंपरा है. शहर के मुख्य मार्गों पर ताजिया शाम को घुमाया जाता है ताकि लोग इसका दीदार कर सके. मोहर्रम की 10 तारीख को शाम के ताजिया लेकर निकलते हैं और इसे मुख्य मार्गों पर बीच बीच में रोककर लोगों को दीदार कराया जाता है. इसके बाद इसे बिलासपुर के कर्बला स्थित तालाब में ठंडा कर दिया जाता था लेकिन अब तालाब का अस्तित्व बेजा कब्जा की वजह से खत्म हो रहा है इसलिए अब ताजिया को मुस्लिम कब्रिस्तान में ठंडा कर दिया जाता है.